> जरा सोचिए ! सम्बन्धो में शारिरिक और अल्पकालिक आकर्षण

जरा सोचिए ! सम्बन्धो में शारिरिक और अल्पकालिक आकर्षण

जरा सोचिए ! सम्बन्धो में शारिरिक और अल्पकालिक आकर्षण

जरा सोचिए ! सम्बन्धो में शारिरिक और अल्पकालिक आकर्षण
जरा सोचिए ! सम्बन्धो में शारिरिक और अल्पकालिक आकर्षण

स्वतंत्रता के नाम पर पारिवारिक बंधन टूट रहे हैं । पति और पत्नी परस्पर अविश्वास और शंकाओ से ग्रस्त हैं। सारा पारिवारिक जीवन एक बेहद नाजुक धागे से बंधा प्रतीत होता होता हैं। सम्बन्धों में शारिरिक और अल्पकालिक आकर्षण से परे शायद ही कोई गहराई शेष रह गई हैं। जैसे ही बच्चा अपने पैरों पर चलने लायक होता हैं उसे स्कूल का रास्ता दिखा दिया जाता हैं। ऐसा लगता हैं की माता - पिता को अब बच्चे भी भारस्वरूप लगने लगे हैं और उन्हें अपने स्वछन्द जीवन की एक बड़ी बाधा मनाने लगे हैं। ऐसे बच्चे कम ही है , जिन्हें माता-पिता की ममता मिल पाती हो,अधिकतर बच्चे समय से पहले परिपक्व हो जाते हैं।पांच साल का बच्चा वयस्को जैसी बाते करने लगता हैं , उसके भीतर जानकारीया ठूस - ठूसकर भर दी जाती हैं । नतीजन उनमे अबोधता , भोलापन औऱ निश्छल आनंद का प्रायः अभाव ही रहता हैं । जिंदगी की शुरुआत में ही आधुनिक जीवन के तनाव औऱ दबाओ का सिलसिला प्रारम्भ हो जाता हैं ।

जैसे - जैसे बालक युवावस्था की ओर कदम बढ़ाता हैं , उसमे आत्मनिर्भर बनने की ललक बढ़ने लगती हैं । किसी भी तरह अपने ही पैरों पर खड़े होने की कोशिश करता हैं और अवसर मिलते ही शीघ्र पारिवारिक बन्धनों से छुटकारा पाकर एक नई आजादी का अनुभव करता हैं ।

अपने जीवन के इस अहम समय मे जब उन्हें बड़ो के अनुभवों का फायदा मिलना चाहिए , उनके मार्गदर्शन की आवश्यकता थी, वे अपने घरों से बाहर हो जाते हैं । जिनमे से कई भावनात्मक संघर्ष के कारण अपनी मानसिक स्थिरता खो बैठते हैं और जीवन मे कठिन संघर्ष करते हैं ।

उधर जैसे - जैसे माता - पिता वृद्धता की ओर बढ़ते हैं , उनका अपनी संतानो से संपर्क कम होता चला जाता हैं । पीढ़ी की खाई बड़ी हो जाती हैं । बात करने , दुःख - सुख बाटने औऱ अपना प्यार बरसाने के लिए तरसने लगते हैं , लेकिन अब क्या हो सकता हैं ? ऐसे में वे किसी भी युवक से अपने दिल की बात कहना चाहते हैं , यदि कोई उनकी बात सुन लेता हैं तो वो अपने आपको धन्य भाग समझते हैं ।

जरा सोचिए ! सम्बन्धो में शारिरिक और अल्पकालिक आकर्षण

जरा सोचिए ! सम्बन्धो में शारिरिक और अल्पकालिक आकर्षण

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के ये अप्रत्यक्ष प्रभाव जो विकसित देशो में आमतौर पर देखे जाते हैं , हमारा समाज भी इनसे ग्रसित नजर आने लगा है । विकास यह दूसरा पहलू हैं । आज हमारा भारतीय समाज एक नए रूपांतरण की दिशा में तेजी से अग्रसर हो रहा है।


तलाक , असन्तोष , अपराध जैसी बुराइया बढ़ रही हैं । विज्ञान और प्रौद्योगिकी के भौतिक विकास से संपन्न इस आधुनिक युग ने मानव समाज की भौतिक जरूरतों को तो पूरा किया , लेकिन व्यक्तिगत और मानसिक स्तर पर यह अशांति , दुख और तनाव को लाया हैं । 

क्या हम राष्ट्रव्यापी स्तर पर इस बात का दावा कर सकते हैं कि हम एक शानदार समाज की रचना में सफल हो गए है ? यह सत्य हैं कि हमने अत्यंत सम्पन्नता और बहुलता की दिशा में कदम बढ़ाए हैं । हमारा सारा जीवन पैसा कमाने और दौलत का ढेर लगाने का कल पुर्जा हो गया हैं ।

आज पैसा ही जीवन का सबसे बड़ा मूल्य हो गया हैं । अर्थशास्त्र,विकास के मापदंड के नियम बन गए हैं ।लेकिन क्या इससे जीवन के किसी महान आदर्श का परिपोषण हो सकेगा ? क्या इससे सामंजस्य पूर्ण , सहकारी सामाजिक व्यवस्था का निर्माण हो सकेगा ? 

जरा सोचिए !

जय हिंद जय भारत



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