गिलोय के फायदे व नुकसान
गिलोय की लताएं लगभग पूरे भारत में सभी जगह पायी जाती है। सदा हरी-भरी रहने वाली यह लताए कई वर्षो तक फूलती व बढ़ती रहती है। इसकी लतााएँ वृक्ष की सहायता से बढ़ती रहती है।नीम के वृक्ष पर चढ़ने वाली गिलोय को सबसे उत्तम गिलोय माना जाता है। इसकी लताएँ खेतों की मेड़ों, पहाड़ों की चट्टानों पर भी फैल जाते हैं। गिलोय के पत्ते दिल के आकार के पान के पत्तों के समान होते हैं। इन पत्तों का व्यास 2 से 4 इंच होता है तथा ये चिकने होते हैं। गिलोय के फूल छोटे-छोटे गुच्छों में लगते हैं जो गर्मी के मौसम में आते हैं। गिलोय के फल मटर के दानों के समान अण्डाकार और चिकने गुच्छों में लगते हैं जो पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं तथा इसके बीज मुडे़ हुए सफेद व चिकने , तिरछे दानों के समान होते हैं।
गिलोय हरे रंग की होती है।गिलोय खाने में तीखी होती है।गिलोय की प्रकृति गर्म होती है।गिलोय की तुलना सत गिलोय से की जा सकती है।
मात्रा
गिलोय की 20 ग्राम मात्रा में सेवन कर सकते हैं।
गुण
यह खांसी,पीलिया,उल्टीऔर बेहोशीपन को दूर करने के लिए लाभकारी है। यह कफ को छांटता है। धातु को पुष्ट करता है। भूख को खोलता है।वीर्य को पैदा करता है तथा उसे गाढा करता है, यह मल का अवरोध करती है तथा दिल को बलवान बनाती है।
आयुर्वेद के अनुसार गिलोय बुखार को दूर करने की सबसे अच्छी औषधि मानी जाती है। यह सभी प्रकार के बुखार जैसे टायफाइड(मियादी बुखार),मलेरिया, मंद ज्वर तथा जीर्ण ज्वर(पुराने बुखार) आदि के लिए बहुत ही उत्तम औषधि है। इससे गर्मी शांत करने की शक्ति होती है।गिलोय गुण में हल्की, चिकनी, प्रकृति में गर्म, पकने पर मीठी, स्वाद में तीखी, कड़वी, खाने में स्वादिष्ट, भारी, शक्ति तथा भूख को बढ़ाने वाली, वात-पित्त और कफ को नष्ट करने वाली, खून को साफ करने वाली, धातु को बढ़ाने वाली है।
गिलोय की रासायनिक संरचना का अध्ययन करने पर यह पता चला है कि इसमें गिलोइन नामक कड़वा ग्लूकोसाइड, वसा अल्कोहल ग्लिस्टेराल, बर्बेरिन एल्केलाइड व अनेक प्रकार की वसा अम्ल एवं उड़नशील तेल पाये जाते हैं। पत्तियों में कैल्शियम,प्रोटीन,फास्फोरस और तने में स्टार्च भी मिलता है। कई प्रकार के परीक्षणों से ज्ञात हुआ हैं की किसी भी वायरस पर गिलोय का प्राणघातक असर होता है। इसमें सोडियम सेलिसिलेट होने के कारण इसमें अधिक मात्रा में दर्द निवारक गुण पाये जाते हैं। यह क्षय रोग के जीवाणुओं की वृद्धि को भी रोकती है। गिलोय इन्सुलिन की उत्पत्ति को बढ़ाकर ग्लूकोज का पाचन करना तथा रोग के संक्रमणों को रोकने का कार्य भी करती है।
मुलेठी 10 ग्राम , गिलोय 10 ग्राम और मुनक्का 10 ग्राम को लेकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं। इस काढ़े को 1 कप रोजाना 2-3 बार पीने से रक्तपित के रोग में लाभ मिलता है।
गिलोय के पत्तों के रस के साथ हल्दी को पीसकर खुजली वाले अंगों पर लगाने से खुजली पूरी तरह से खत्म हो जाती है।
गिलोय 3 ग्राम और त्रिफला चूर्ण 3 ग्राम को सुबह शाम शहद के साथ चाटने से मोटापा कम होता जाता है।
सोंठ का बारीक चूर्ण और गिलोय का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर सूंघने से हिचकी का आना बंद हो जाता है।
सोंठ, धनियां, गिलोय, चिरायता तथा मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर इसे पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को रोजाना दिन में 3 बार 1-1 चम्मच की मात्रा में लेने से हर प्रकार के बुखार में आराम मिलता है।
गिलोय और काली मिर्च का चूर्ण 10-10 ग्राम की मात्रा में मिलाकर इसमें से 3 ग्राम की मात्रा में हल्के गर्म पानी से सेवन करने से हृदय के दर्द में लाभ मिलता है।
7 से 14 मिलीलीटर गिलोय के तने का ताजा रस शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से बवासीर, कोढ़ और पीलिया का रोग ठीक हो जाता है।
मट्ठा (छाछ) के साथ गिलोय का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में मिलाकर दिन में सुबह और शाम को लेने से बवासीर में लाभ होता है।
गिलोय के फलों को पीसकर चेहरे पर मलने से चेहरे के मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयां दूर हो जाती है।
सफेद दाग के रोगो में 10 से 20 मिलीलीटर गिलोय के रस को रोज 2-3 बार कुछ दिनों तक सफेद दाग के स्थान पर लगाने से लाभ मिलता है।
गिलोय के पांच ग्राम का चूर्ण, दूध के साथ दिन में 2 से 3 बार सेवन करने से गठिया रोग ठीक हो जाता है।
गिलोय का रस और मिश्री को मिलाकर 2-2 चम्मच रोजाना 3 बार पीने से वमन (उल्टी) का आना बंद हो जाता है।
गिलोय के रस में त्रिफला को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसे पीपल के चूर्ण और शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है ।
गिलोय, कालीमिर्च, वंशलोचन, इलायची आदि को बराबर मात्रा में लेकर मिला लें। इसमें से 1-1 चम्मच की मात्रा में 1 कप दूध के साथ कुछ हफ्तों तक रोजाना सेवन करने से क्षय रोग दूर हो जाता है।
वात के बुखार होने के 7 वें दिन की अवस्था में गिलोय, पीपरामूल, सोंठ और इन्द्रजौ को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से लाभ मिलता है।
गिलोय 5 अंगुल लम्बा टुकड़ा और 15 कालीमिर्च को मिलाकर कुटकर 250 मिलीलीटर पानी में डालकर उबाल लें।जब यह 58 ग्राम बच जाए तो इसका सेवन करें इससे मलेरिया बुखार की अवस्था में लाभ मिलेगा।
गिलोय का रस, हल्दी का चूर्ण और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर इसमें से 1-1 चम्मच दिन में 3 बार रोजाना 10-15 दिनों तक सेवन करने से प्रमेह के रोग में लाभ मिलता है।
एक ग्राम गिलोय के रस में तीन ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम चाटने से प्रमेह के रोग में लाभ मिलता है।
गिलोय के रस को शहद के साथ चाटने से कफ विकार दूर हो जाता है।
गिलोय (गुरुच) का रस दस मिलीलीटर से बीस मिलीलीटर की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर खायें फिर जीरा तथा मिश्री का शर्बत पीयें। इससे गले में जलन के कारण होने वाले मुंह का सूखापन दूर होता है।
रक्त कैंसर से पीड़ित रोगी को गिलोय के रस में जवाखार मिलाकर सेवन कराने से उसका रक्त कैंसर ठीक हो जाता है।
5 ग्राम गिलोय का रस को थोड़े से शहद के साथ मिलाकर चाटने से आन्त्रिक बुखार ठीक हो जाता है। गिलोय का काढ़ा भी शहद के साथ मिलाकर पीना लाभकारी है।
गिलोय का रस और अलसी वशंलोचन बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसमें से 2 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ एक हफ्ते तक सेवन करने से वीर्य गाढ़ा होता है।
गिलोय, बड़ा गोखरू और आंवला सभी बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से 5 ग्राम चूर्ण प्रतिदिन मिश्री और घीके साथ खाने से संभोग शक्ति में वृद्धि होती है।
गिलोय के रस को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से प्रदर में आराम मिलता है।
गिलोय के काढ़े में शहद मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पुनरार्तक बुखार ठीक होता है।
6 ग्राम गिलोय का रस, 2 ग्राम इलायची और 1 ग्राम की मात्रा में वंशलोचन शहद में मिलाकर खाने से क्षय और श्वास-रोग ठीक हो जाता है।
गिलोय के शर्बत में चीनी डालकर पीने से पित्त बुखार में आराम हो जाता है।
गिलोय का रस निकालकर उसका शर्बत बनाकर पीने से प्रदर रोग में लाभ होता है।
गिलोय के रस का सेवन करने से हृदय की निर्बलता (दिल की कमजोरी) दूर होती है। इस तरह हृदय (दिल) को शक्ति मिलने से विभिन्न प्रकार के हृदय संबन्धी रोग ठीक हो जाते हैं।
गिलोय का रस शरीर मे खून को बढ़ाता है जिसके फलस्वरूप शरीर में खून की कमी (एनीमिया) दूर हो जाता है।
गिलोय (गुरुच) को पकाकर उसका काढ़ा बनाकर एक दिन में 2 खुराक के रूप में बच्चे को जन्म देने वाली मां (प्रसूता स्त्री) को पिलाने से स्तन की शुद्धि होती है और नवजात बच्चों को स्वच्छ और पौष्टिक दूध मिलता है तथा स्तनों में दूध कम होने की शिकायत भी दूर हो जाती है।
चार ग्राम से छह ग्राम गिलोय का काढ़ा प्रतिदिन पीने से घाव ठीक हो जाता है।
गिलोय के पत्तों के रस को गुनगुना करके इस रस को कान में बूंद-बूंद करके डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है।
20-50 मिलीलीटर गिलोय का रस सुबह-शाम बराबर मात्रामें पानी के साथ मधुमेह रोगी को सेवन करायें या रोग को जब-जब प्यास लगे तो इसका सेवन कराएं इससे लाभ मिलेगा।
गिलोय का रास 7 मिलीलीटर से लेकर 10 मिलीलीटर की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
15 ग्राम गिलोय का बारीक चूर्ण और 5 ग्राम घी को मिलाकर दिन में 3 बार रोगी को सेवन कराऐं इससे मधुमेह (शूगर) रोग दूर हो जाता है।
गिलोय को पानी में घिसकर और गुनगुना करके कान में 2-2 बूंद दिन में 2 बार डालने से कान का मैल निकल जाता है और कान साफ हो जाता है।
गिलोय और सोंठ कि एक ही मात्रा लेकर उसका काढ़ा बनाकर पीने से पुराने से पुराना गठिया रोग में भी फायदा मिलता है।
गोमूत्र को गिलोय के रस के साथ पीने से फीलपांव रोग ठीक हो जाता है।
गिलोय के काढ़े को ब्राह्मी के रस के साथ पीने से उन्माद या पागलपन दूर हो जाता है।
गिलोय के 10 से 20 पत्तों को पीसकर एक गिलास छाछ (मट्ठा) में मिलाकर सुबह के समय पीने से पीलिया रोग में आराम हो जाता है।
शरीर में खून की वृद्धि के लिए 250 मिलीलीटर गिलोय के रस में घी मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करना चाहिए
गिलोय का तेल दूध में मिलाकर गर्म करें। वातरक्त दोष के कारण से जो त्वचा फटी हो उस पर इस तेल को लगाए इससे लाभ मिलेगा।
मलेरिया के कारण होने वाले सिर के दर्द को ठीक करने के लिए गिलोय का काढ़ा सेवन करें।
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