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आयुर्वेद की दिव्य औषधियां

आयुर्वेद की दिव्य औषधियां जो देवराज
इंद्र ने हिमालय पर्वत पर ऋषियों को
बताया था

आयुर्वेद की दिव्य औषधियां
(1)इन्द्रायण ( लाल और सफेद) लाल को विशाला महाफला ,महेंद्र्वारुनी नाम से सम्बोधित किया जाता है। श्वेत्पुश्पी यानि सफेद कोनाग्द्न्ति वारुणी और गर्ज़चिभटा बोलते हैं। इसका उपयोग उदर संस्थान के रोग और पित्त विकृति में होता है। मूढ़ गर्भ कोनिकालने में भी इसका सफल प्रयोग होता है।



(2) ब्राह्मी---ब्राह्मी हिमालय पर पायी जाती है। ब्राह्मी को कपोतबंका सरस्वती व् सोमवल्ली भी कहते हैं। इसके छोटे गोल पत्ते होते हैं। ब्राह्मी मस्तिस्क रोगों में एवं वात नाडी दोष उन्माद और ह्रदय के लिए हितकारी है। यह  एक परम रसायन है यह कुष्ठ , शोथ  , प्रमेह , रक्त विकार  और पांडू में भी लाभदायक है। आजकल बाजार में जो ब्राम्ही
 मिलती है वो असल में  ब्राह्मी का विकल्प मंडूकपर्णी  है।


(3) शंखपुष्पी---सफेद फूलों वाली ज्यादाअच्छी है। मानसिक विकार अपस्मार उन्माद अनिद्रा स्वर एवं कांति के लिए अच्छी है।

(4) जीवन्ती--मधुस्र्वा भी कहते हैं। हिमालय की ज्यादा ऊंचाई पर मिलती
है। तोड़ने के बाद भी छह माह नही सूखती है। त्रिदोष नाशक परम रसायन है।
बलकारी दस्त को बाँधने वाली नेत्रों के लिए हितकारी शीतवीर्य है। विष को
नष्ट करती है.



(5) ब्रह्मदंडी-- अजदंडी भी कहते हैं। यह उष्ण वीर्य है। वायु और कफ को नष्ट करती है स्मृति बढ़ाती है। स्वेत कुष्ट चर्मरोग और कृमि नाशक है। अपस्मार उन्माद और नपुंसकता में हितकारी है। पारद बांधने में काम आती है। हिमालय महाबलेश्वर मद्रास मैसूर और मध्य भारत के पर्वतों पर पायी जाती है।


(6)रूद्रवंती।--रूद्रवंती को चणपली और संजीवनी भी कहते हैं। यह एक परम रसायन है और च्यवन ऋषि को युवा बनाने वाली औषधियों में यह भी शामिल है।


(7) जीवक -ऋषभक 

                                   (8)मेदा -महामेदा 

                               (9) काकोली- क्षीर काकोली


(10) ऋद्धि - वृद्धि यह सब दिव्य

औषधियां है।


इन्ही औषधियों की बदौलत च्यवन ऋषि की नेत्र ज्योति लौट आई थी और वो युवा बन गये थे।यह औषधियां बहुत दुर्लभ है इसलिए इनके गुण जैसी अन्य औषधियां खोजी गयी। मेदा महामेदा, काकोली क्षीर काकोली के स्थान पर सालम मिस्री श्काकुल मिस्री बहमन सफेद और बहमन सुर्ख का उपयोग होता है।

आचार्य भावमिश्र ने महामेदा के स्थान पर
शतावरी जीवक और ऋषभक के लिए
बिदारीकंद, काकोली क्षीर काकोली
के लिए अश्वगंधा और ऋद्धि और वृद्दि के
लिए वाराही कंद का उपयोग करने को
कहा है।

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