शक्ति स्वरूपा माँ दुर्गा समस्त मानवों के दुःखो को दुर करने वाली है। अपने भक्तो पर शीघ्र प्रसन्न होकर उनकी मनोकामना पूर्ण कर समस्त सुखों का आशीर्वाद प्रदान करती है। माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिये पूजा-आराधना के साथ-साथ कुछ ऐसे विशिष्ट एवं अत्यन्त प्रभावशाली मंत्र प्रयोगों का उल्लेख भी मिलता है, जिनके मंत्र जप से माँ की कृपा शीघ्र ही प्राप्त होती है। यहां पर ऐसे ही कुछ विशेष मंत्रो का उल्लेख किया जा रहा है। आवश्यकतानुसार किसी भी मंत्र का जप कर लाभ प्राप्त करें:
माँ दुर्गा मंत्र |
भक्ति एवं आस्था प्राप्ति के लिये मंत्र
दुं दुर्गाय नमः।
कृपा एवं आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये मंत्र
हीं दुं दुर्गायै नम
समस्त प्रकार के कल्याण हेतु मंत्र
ह्रीं श्रीं क्लीं दुं दुर्गायै नम
विद्या प्राप्ति एवं प्राप्ति हेतु मंत्र
ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं दुं दुर्गायै नमः।
अपने या किसी अन्य के अरिष्ट के विनाश के लिये मंत्र
हौं दुं दुर्गाय सों दुं दुर्गाय जूं दुं दुर्गाय हौं दुं दुर्गायै मम्। अमुकस्य सर्वारिष्ट काटय काटय नाशय नाशय फट स्वाहा। सभी प्रकार के अरिष्टों के निवारण हेतु यह सर्वश्रेष्ठ तंत्र शीघ्र फल देने वाला है। इसका प्रभाव महामृत्युंजय जैसा होता है।
सभी प्रकार के अभीष्ट की सिद्धि के लिये मंत्र
ऐं दुं दुर्गाय ह्रीं दुं दुर्गाय श्रीं दुं दुर्गाय क्लीं दुं दुर्गायै मम् अरिष्टमासद्धि कुरु कुरु स्वाहा।
समस्त मनोरथ पूर्ण करने एवं व्यापार वृद्धि के लिये मंत्र
ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं दुं दुर्गायै नम मम् व्यापार वृद्धि देहि देहि दापह-दापह स्वाहा। यह मंत्र मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिये लक्ष्मी मंत्रों की तरह प्रभावी है।
उपरोक्त मंत्रों में से अपनी मनोकामनानुसार दुःख की निवृत्ति एवं सुखों की आवृत्ति हेतु अनुकूल मंत्रों का चुनाव अपनी स्वेच्छा से कर सकते हैं।
सुरयोगा के पाठकों की सुविधा के लिये दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम का उल्लेख किया जा रहा है। शेष दुर्गा स्तोत्र एवं स्तुतियां श्री दुर्गा सप्तशती से प्राप्त कर सकते हैं।
श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र
ईश्वर उवाच (दु.अष्ट. १)
शतनाम प्रवक्ष्यामि शृणुष्व कमलानने।
यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती।। (१)
सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी ।
आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी।। (दु.अ.२)
पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपा
मनो बुद्धिरहंकारा चिन्तरूपा चिता चिति।। (दु.अ.३)
सर्वमंत्रमयी सत्ता सत्यानंद स्वरूपिणी ।
अनन्ता भाविनी भाव्या भव्या भव्या सदागति।। (दु.अ.४)
शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा।
सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी ।। (दु.अ.५)
अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटला वती।
पटाम्बरपरीधाना कलमर्जीररंजिनी ।। (दु.अ.६)
अयेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी ।
वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनि पूजिता ।। (दु.अ.७)
ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा।
चामुण्डा चैव बाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृति।। (दु.अ.८)
विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना किया नित्या च बुद्धिदा ।
बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहन वाहना।। (दु.अ.९)
निशुम्भशुम्भहननी महिषासुर मर्दिनी ।
मधु कैटमहन्त्री च चण्डमुण्ड विनाशिनी।। (दु.अ.१०)
सर्वासुरविनाशा च सर्वदानव धातिनी।
सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा।। (दु.अ.११)
अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी|
कुमारी चैक कन्या च किशोरी युवती यति।। (दु.अ. १२)
अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा।
महोदरी मुक्तकेशी घोरूपा महाबला।। (दु.अ.१३)
अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी ।।
नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी।। (दु.अ.१४)
शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी।
कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी।। (दु.अ.१५)
य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम्।
नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति।। (दु.अ.१६)
धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिम मेव च।
चतुर्वर्ग तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं चशाश्वतीम्।। (दु.अ. १७)
कुमारी पूजयित्वातु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम्।
पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्ट कम्।। (दु.अ. १८)
तस्यसिद्धिंभवेद् देवि सर्वे सुरवरैरपि।
राजानो दातां यान्ति राज्यश्रियम वाप्रुयात्।। (दु.अ. १९)
गोरेचनालक्त ककुंकुमेन सिन्दूर कर्पूरमधुत्रयेण ।
विलिस्य यंत्रं विधिनाविधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारि ।।(दु.अ.२०)
भौमावास्या निशाभग्रे चन्द्रे शतभिषां गते ।
विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम्।। (दु.अ.२१)
संपुटित दुर्गा सप्तशती पाठ करने के लिये निम्न श्लोकों की जानकारी दी जा रही है। गुरु एवं आचार्य की अनुमति से उन्हें ग्रहण किया जा सकता है अथवा वे जिन मंत्रों-श्लोकों का निर्देश करें, उनको संपुट रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है
दुख दारिद्रय एवं भय विनाश और धन प्राप्ति के लिये -
दुर्गेस्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तो,
स्वस्थै स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्रय दुख भय हारिणी का त्वदन्या,
सर्वोपकार करणाय सदाऽऽर्द्रचिन्ता ।।
शत्रु विनाश एवं स्वयं की विजय के लिये
अचिन्त्य रूप चरिते सर्व शत्रु विनाशिनि ।
रूपं देहि जयंदेहि यशोदेहि द्विषो जहि ।।
समस्त उपद्रवों एवं ज्ञात अज्ञात भय निवारण के लिये
सर्व स्वरूपे सर्वेषे सर्व शक्ति समन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गेदेवि नमोस्तुते ।।
अथवा
एतहे वदनं सौम्यं लोचनत्रय भूषितम् ।
पातु न सर्वभीतिभ्य कात्यायानि नमोस्तुते ।।
अथवा
ज्वाला करालमत्युग्रमशेषासूर सूदनम्।
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्कालि नमोस्तुते।।
विपत्ति नाश एवं शुभत्व प्राप्ति के लिये
शरणागत दीनार्त, परित्राण परायणे।
सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोस्तुते ।।
शुभत्व प्राप्ति के लिये
करोतु सा न शुभ हेतु रीश्वरी ।
शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद ।।
बाधा विनाश एवं स्वकार्य सिद्धि के लिये
सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्या खिलेश्वरी।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि विनाशनम् ।।
विद्या प्राप्ति एवं विभागीय परीक्षाओं की सफलता के लिये
विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
अथवा
विद्या समस्तास्तव देवि भेदा।
स्त्रिय समस्ता सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्ब यैत त् ।
का ते स्तुति स्तव्यपरा परोक्ति ।।
भूत-प्रेत बाधाओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिये
खड्गिनी शूलिनी धोरा गदिनी चक्रिणी तथा ।
शंखिनी चापिनी वाणभुशुंडी परिधायुधा ।।
सौम्या सौम्यतरा शेष सौम्येभ्यस्त्वति सुंन्दरी।
परा पराणां परमा त्वमेव परमेश्वरी ।।
स्वप्नों में अपने प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करने के लिये
दुर्गेदेवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थ साधिके ।
मम् सिद्धिसिद्धिं वा स्वप्ने सर्व प्रदर्शय् ।।
योग्य पत्नी एवं शीघ्र विवाह के लिये
पत्नी मनोरमां देहि मनोवृन्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्ग संहार सागरस्थ कुलोद्रभवाम् ।।
सुयोग्य एवं शीघ्र वर प्राप्ति के लिये हे
गौरि ! शंकरार्धागि यथा त्वं शंकर प्रिया ।
तथा मां कल्याणी कांत कांतहां शुदुर्लभाम् ।।
समस्त मंगल कामनाओं के लिये -
सर्व मंगल मंगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नरायणि नमोस्तुते ।।
स्वयं की रक्षा एवं सुरक्षा के लिये
देवि प्रसीद परिपालय नोरिभीतेर्नित्यं,
यथा सुर वधादधुनैव सदा।
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु,
उत्पातपाक जनितांश्च महोपसर्गान।।
यात्रा अथवा अन्यत्र रहने पर रक्षा मंत्र
रक्षांसि यत्रोप्रविषाश्च नागा यचारयोदस्य बलानियत्र। दाबानलो यत्र तथाविधमध्ये तत्रस्थिता त्वं परिपासि विश्वम् ।।
सम्मोहन करने के लिये
ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादा कृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ।।
महामारी, रोगादि दूर कर सुख-सौभाग्य पाने के लिये
जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी,
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।
अथवा
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि में परमं सुखम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
बालकों के विषम रोग एवं टोना-टोटका से बचाने के लिये
बालाग्रहामि भूतानां बालानां शान्ति कारकम् ।
संघातभेदे च नृणां मैत्रीकरणमुक्तमम् ।।
चेचक के प्रकोप से बचने के लिये
शीतले तुम जगन्माता शीतले तुम जगत पिता ।
शीतले तुम जगत धात्री शीतलाय नमो नम।।
स्वर्ग एवं मुक्ति प्राप्त करने के लिये
सर्वस्व बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते ।
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोस्तुते ।।
माँ दुर्गा की कृपा प्राप्ति के लिये नवरात्र का विशेष महत्त्व माना गया है, किन्तु दैनिक पूजा में माँ दुर्गा का ध्यान करने से भी पर्याप्त लाभ की प्राप्ति होती है। जब भी आप माँ दुर्गा का कोई मंत्र जप करना चाहे तब प्रातःकाल शीघ्र उठकर स्नान आदि दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। तत्पश्चात अपने निकट के किसी भी माँ दुर्गा के मन्दिर में अथवा किसी भी देवी शक्ति के मन्दिर में जायें हाथ जोड़कर माँ से प्रार्थना करें कि आप अमुक प्रयोजन के लिये अमुक मंत्र का जप अथवा स्तोत्र पाठ कर रहे हैं. इसे स्वीकार कर मेरी मनोकामनायें पूर्ण करें। इसके पश्चात् वापिस लौट आयें। अपने आवास में जिस स्थान पर आप मंत्र जप करना चाहते हैं, उसे गंगाजल अथवा गोमूत्र मिले जल से स्वच्छ करें। सूती आसन बिछाकर पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठे अपने सम्मुख एक बाजोट अथवा लकड़ी का पाटा रखें। इसके ऊपर लाल रेशमी बिछायें। वस्त्र के ऊपर सवा किलो पाँच प्रकार के अनाज की ढेरी बनाकर मी दुर्गा की तस्वीर को स्थान दें। जल का लोटा रखे, दीपक प्रज्वलित करें तथा तीव्र सुगन्ध की अगरबत्ती लगाये। नैवेद्य के रूप में कोई भी मिठाई अर्पित करें। अब माँ का ध्यान करते हुये मंत्र जप प्रारम्भ करें। मंत्र जपने में यह ध्यान रखें कि यह हमेशा विषम संख्या में ही करें अर्थात 1 3. 5 अथवा 11 माला जितनी भी आप कर सके करे। मंत्र जप पूर्ण करके कुछ समय तक शांतचित्त से बैठकर मानसिक रूप से माँ का ध्यान करें। तत्पश्चात आसन से उठे। जब तक प्रज्वलित रहे, तब तक सभी कुछ यथावत रहे। दीपक ठण्डा होने के पश्चात् माँ की तस्वीर को अपने पूजाकक्ष में स्थापित करें। नैवेद्य को प्रसाद के रूप में परिवार सहित स्वयं भी ग्रहण करें। बाजोट पर रखा हुआ अनाज या तो किसी ब्राह्मण को दान कर दे अथवा पक्षियों को चुगने के लिये डाल दें। इसके साथ-साथ प्रयास करें कि प्रतिदिन किसी भी छोटी कन्या को कुछ न कुछ राशि अवश्य दें। अगर आप किसी विशेष प्रयोजन के लिये निश्चित दिन अथवा निश्चित संख्या में मंत्र जप कर रहे है, तब पूर्णाहुति के समय 7 अथवा 11 कन्याओं को भोजन करा कर वस्त्रों सहित कुछ दक्षिणा दें। आप यह अनुभव करेंगे कि मंत्र जप के प्रभाव से आपके समक्ष आने वाली समस्याओं के समाधान प्राप्त होने लगेंगे, जो आपके विरोध में है अथवा जो प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष शत्रु हैं, उनकी समस्यायें दूर होने लगेगी। और आपकी कामनाओं के पूर्ति के मार्ग प्रशस्त होने लगेंगे। हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि हमारे द्वारा की गई पूजा माँ को अर्पित हो जाती है। प्रतिफल में माँ अपनी असीम कृपा से हमे परिपूरित कर देती है। इसलिये माँ दुर्गा के यथाशक्ति पूजा-उपासना अवश्य करते रहे।
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