क्या आपका शिशु सोते हुए बिस्तर पर पेशाब करता है ? |
क्या आपका शिशु सोते हुए बिस्तर पर पेशाब करता है ?
शिशुओं का कहीं भी पेशाब कर देना आम बात होती है, खास करके रात में सोते समय नींद में पेशाब करना। यदि ३-४ वर्ष की आयु होने पर भी बच्चा बिस्तर पर पेशाब करे तो यह एक बीमारी मानी जायेगी। यदि इसकी उचित चिकित्सा न की जाए तो बच्चा पाँच वर्ष से ज्यादा उम्र होने पर भी बिस्तर में पेशाब कर दिया करते हैं। बच्चे को इस बीमारी से बचने के लिए शैशवकाल से हि कुछ सावधानियां रखना जरूरी होता है। उन्हें शाम को ८ बजे के बाद ज्यादा पानी नही पिलानी चाहिए।
जिस कमरे में बच्चा सोता है, उस कमरे में रात्रि में मंद लाइट जलाकर रखें, जिससे बच्चा रात्रि में खुद अकेले जाकर बाथरूम में मूत्र का त्याग कर सकें । अगली सुबह जब बच्चा उठे और बिस्तर सूखा मिले तो बिस्तर गीला नहीं करने के लिए उसकी तारीफ करें। किसी योग्य चिकित्सक से भी सलाह लेने में संकोच न करें। कुछ बच्चों में बिस्तर में पेशाब करने कि आदत सी हो जाती है। इस आदत को दूर करने के लिए बच्चे के साथ अत्यंत स्नेहपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। उसे डांटना,फटकारना, धिक्कारना या शर्मिंदा करना कदापि उचित नहीं है। उसके साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करना चाहिए और धर्यपूर्वक प्यार से समझना चाहिए। यदि बच्चा दस वर्ष की उम्र के बाद भी बिस्तर पर पेशाब करता है, तो फिर किसी बीमारी का पता लगाने के लिए विशेषज्ञ की सेवा लेना जरूरी होता है। इसे उचित चिकित्सा से ठीक क्या जा सकता है।
१. अगर शिशु बिस्तर में पेशाब करता हो तो एक कप ठण्डे फीके दूध में एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम चालिस दिनों तक पिलाइए और तिल-गुड़ का एक लड्डू रोज खाने को दीजिए। अपने शिशु को लड्डू चबा-चबाकर खाने के लिए कहिए और फिर शहद वाला एक कप दूध पीने के लिए दें। बच्चे को खाने के लिए तिल औऱ गुड़ का लड्डू सुबह के समय खाने को दें। इस लड्डू के सेवन करने से कोई नुकसान नहीं होता। अत: आप जब तक चाहें इसका सेवन करा सकते हैं।
२. सोने से पूर्व 1 ग्राम अजवाइन का चूर्ण कुछ दिनों तक नियमित रूप से खिलाएं या अजवाइन को पानी में काढ़ा बनाकर भी सेवन कराया जा सकता है।
३. जायफल को पानी में घिस कर पाव चम्म्च मात्रा में लेकर एक कप कुनकुने दूध में मिला कर सुबह शाम पिलाने से भी यह बीमारी दूर हो जाती है।
होमियोपैथिक चिकित्सा :
इस बीमारी में होमियोपैथी में दो मुख्य औषधियाँ व्यवहार में लायी जाती है-कैलिफास और क्रियोजोटम। इनमें से किसी भी दवा को लक्षणानुसार चुन कर २-३ गोली ३० शक्ति की, दिन में तीन बार बच्चे के मुहँ में डालकर चूसने के लिए कहें। लाभ होने पर दवा बंद कर दें।
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