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शिव स्वरोदय से करे सपनो को साकार

स्वरोदय विज्ञान

शिव स्वरोदय से करे अपने सपनो को साकार और साथ ही पाए रोगों से निजात 
( Make Your Dreams In Reality by Shiv Swarodya )

स्वरोदय अर्थात नाक के छिद्रों से ग्रहण किया जाने वाला साँस जो कि हवा की शक्ल में होता हैं ।
शिव स्वरोदय से करे अपने सपनो को साकार और साथ ही पाए रोगों से निजात ( Make Your Dreams In Reality by Shiv Swarodya )
शिव स्वरोदय

विज्ञान अर्थात जहाँ पर किसी विषय की सभी बातों का अध्ययन किया जाता हैं ।

जन्मान्तरीयसंस्कारारात्प्रसादादथवा गुरो: ।
केषचिंज्जायते तत्ववासना विमलात्मनाम ।।

अर्थात - कई जन्मों के शुभ संस्कारो के कारण ही स्वरोदय विज्ञान का गुरू मिलता है और शुद्ध स्वच्छ आत्मा वाले व्यक्ति ही इसे समझने की चेष्टा करते है ।



स्वरोदय विज्ञान एक अत्यंत आसान प्रणाली हैं जिसे प्रत्येक मनुष्य समझ कर अपने दैनिक जीवन में प्रयोग कर सकता हैं । शिव स्वरोदय शिव और पार्वती के बीच हुआ संवाद है शिवजी इस विषय पर पार्वती से कहते है कि अनेक जन्मों में किए गए शुभ कर्मों के कारण ही मनुष्य को स्वरोदय का ज्ञान होता हैं और इसके प्रति रुचि बढ़ती है और वह इसे समझने का प्रयास करता है ।





इस विज्ञान का लाभ पाने के लिए अत्यंत सरल व सुविधाजनक क्रियाये है । आपको केवल कुछ अनुभव करने हैं और वह सभी अनुभव आपको सबसे पहले अपने नाक के द्वारा करने होंगे । आप कुछ भी कर रहे हो , आपको अपने नासाछिद्र से चलने वाली हवा रूपी सांस का अनुभव करना है । आप अभ्यास करने के दौरान पाएंगे कि कभी नाक के दाहिने छिद्र से सांस ली जाती हैं तथा छोड़ी जाती हैं और कभी बाएं नासाछिद्र के द्वारा सांस का लिया जाना तथा छोड़ा जाना होता हैं । कभी - कभी आपको लगेगा कि नाक के दोनों छिद्रों से ही सांस की क्रिया चल रही हैं , यही आपको अनुभव करना है ।




सांस जीव का प्राण है और इसी सांस को स्वर कहा जाता हैं । इस स्वर के चलने की क्रिया को उदय होना मानकर स्वरोदय कहा जाता हैं । इसी सांस के द्वारा प्रत्येक जीव के प्राण स्थिर होते है । दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यही सांस प्रत्येक जीव का प्राण है । सांस की क्रिया के बंद हो जाने पर जीव को मृत घोषित कर दिया जाता हैं । अतः समझा जा सकता हैं कि प्रत्येक जीव के लिये साँस की क्रिया अत्यंत आवश्यक क्रिया है और जीवन का ठहराव इसी के बलबूते पर होता हैं ।

स्वर

नाक के दाहिने छिद्र से चलने वाले स्वर को सूर्य स्वर कहते है ।
नाक के बाएं छिद्र से चलने वाले स्वर को चंद्र स्वर कहते है ।
नाक के दोनों छिद्रों से चलने वाली सांस को सुषुम्ना कहते है 



सूर्य स्वर ( पिंगला ) साक्षात शिव स्वरूप है ।

चन्द्र स्वर ( इड़ा ) साक्षात पार्वती स्वरूप है ।
सुषुम्ना स्वर साक्षात काल स्वरूप हैं ।



हमारा शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना हुआ है ।। जिसे पृथ्वी तत्व , जल तत्व , वायु तत्व , अग्नि तत्व तथा आकाश तत्व कहा जाता हैं । हमारे हाथों की पांचो अंगुलियां इन्ही तत्वों का प्रतीक हैं । यह तत्व सदा हमारे साथ चलते रहते है 





सवरोदय विज्ञान भारत की अत्यंत प्राचीन तथा महा विद्या है । एक समय ऐसा भी था कि भारत के घर - घर मे इस विद्या की पूजा तथा इसके प्रयोग किये जाते थे । इसी समय को स्वर्णकाल कहा गया क्योंकि इस काल मे कोई दुख नही थे । कोई समस्या नही थी । प्रतिदिन स्वरोदय का अभ्यास किया जाता था । सभी सुखी थे । सभी सुविधाएं थी । इसकी महिमा को संत समुदाय ने भी स्वीकारा और इस पर अनगिनत प्रयोग किये गए ।





इड़ा चंद्रमा में तथा पिंगला सूर्य ग्रह में निवास करती हैं सुषुम्ना इन दोनों ग्रहों के बीच निवास करती है । जब चंद्र और सूर्य का सहज और समान रूप से उदय हो जाता है तो शून्य में शब्द का प्रकाश होता है । मन मे अजर अमृत झरने लगता है और सुखरूपी अमृत का आस्वादन होने लगता है 

' इड़ा पिंगला शोधन करिके , पकड़ो सुखमन डगरी ।
पाँच को मारि , पच्चीस वश कीन्हो , जीत लिये नौ नगरी ।।

स्वरूप प्रकाश के तेरह पृष्ट के इस श्लोक का अर्थ है पाँच को मारि अर्थात तत्व पाँच होते हैं , इन्हें मारो । पच्चीस वश कीन्हा अर्थात पच्चीस प्रकृतियाँ होती है , इन्हें वश में करो । जीत लिए नौ नगरीअर्थात नौ नगरी कहा गया है , नव द्वारो को । इन नव द्वारो को जीत लिया

भजन रत्नमाला के पृष्ठ 19 तथा 20 पर स्वरोदय के विषय मे कहा गया है कि 


सोहंग शब्द विचार के , वोहंग में बन लाई ।
इंगला पिंगला दोनों द्वार है , सुखमन में ठहराई ।।

स्वरोदय को जानकर आप क्या - क्या कर सकते हो -

  • आप रोग नाश कर सकते हैं ।
  • आप साधना सिद्ध कर सकते हैं ।
  • आप जिसे चाहे वश में कर सकते हैं ।
  • आप शिव से साक्षात्कार कर सकते हैं ।
  • आप परीक्षा में पास हो सकते हैं ।
  • आप इच्छानुसार गर्भधान कर सकते हैं ।
  • आप जैसा चाहे लाभ उठा सकते हैं ।
शिव स्वरोदय से करे अपने सपनो को साकार और साथ ही पाए रोगों से निजात ( Make Your Dreams In Reality by Shiv Swarodya )
स्वरोदय के प्रयोग

स्वरोदय के प्रयोग

1 - सोते समय चित्त होकर न सोए क्योकि इसमे सुषुम्ना स्वर चलने लगता हैं । सुषुम्ना स्वर के चलने पर कार्यो में ही विघ्न नही आते बल्कि रात्रि को नींद भी ठीक नही आती और स्वप्न भी डरावने आते है ।




2 - भोजन को सदा सूर्य स्वर में ही ग्रहण करे । भोजन के बाद कम से कम आधा घंटा आराम करे । भोजन के बाद आराम करने के लिए लेटे तो सर्वप्रथम बाईँ करवट से लेटे इसके बाद दाहिनी करवट लेटे इस प्रकार करने से भोजन आसानी से पच जाता हैं ।


3 - भोजन के पश्चात तुरंत मूत्र त्याग करे । मूत्र त्याग हमेशा बाएँ स्वर में करे ।


4 - दाएँ स्वर में मल त्याग करें ।

प्रकृति का विधान

  • एक नवजात शिशु अपनी आयु के प्रथम वर्ष तक बाँए स्वर में मूत्र त्याग करता है और दाएँ स्वर में मल त्याग करता है । जिसके कारण वह पूर्णतः स्वस्थ रहता है ।

  • दांत निकलने के समय जब दर्द होता हैं तभी उसकी यह स्वर प्रक्रिया भंग हो जाती है , जिसके कारण वह तकलीफ उठाता हैं ।

  • शिशु को तांबे का कड़ा ( चूड़ी ) पहनाने से दाँत सरलता से निकलते है । ऐसा क्यों ? ताम्बा सूर्य तथा मंगल की धातु हैं अर्थात ताम्बा गर्म प्रभाव रखता हैं । अतः जब इसे धारण किया जाता हैं तो शरीर मे उष्णता बढ़ जाती हैं । जिसके कारण सूर्य स्वर अधिक चलता रहता हैं । उल्टी तथा दस्त आदि के कारण शरीर कमजोर होकर शीतल हो जाता हैं । ऐसे समय मे सूर्य स्वर की अत्यधिक आवश्यकता होती हैं जिससे कि शरीर का तापक्रम बना रहे इसी कारण बच्चो को तांबे का कड़ा धारण कराया जाता है ।

  • सूर्य स्वर से गर्मी की प्राप्ति होती हैं तथा चंद्र स्वर से शीतलता प्राप्त होती हैं । रात में वातावरण शीतल होता हैं अतः सूर्य स्वर को चलाना चाहिए जबकि दिन में वातावरण गर्म होता हैं तब चंद्र स्वर चलना चाहिए ।

  • जब किसी रोग ने आपको घेर लिया है तो आप स्वर विज्ञान के सहारे बहुत ही शीघ्र रोग को समाप्त कर सकते है । रोग होते ही अपने स्वर को देखे की कौन सा चल रहा है । यह अनुभव करके दूसरा स्वर चला दे और इसे चलाते ही रहे । आप स्वयं ही अनुभव करेंगे कि रोग की शक्ति कम होती जा रही है और रोग समाप्त हो रहा है ।

  • कैसा भी रोग हो स्वर बदलने से शांत हो जाता हैं बस आपको रोगों की प्रकृति को समझना होगा कि कौन सा रोग सर्दी से हैं तथा कौन सा रोग गर्मी से है । इस प्रकार सर्दी के रोगों में सूर्य स्वर चलाये और गर्मी के रोगों में चंद्र स्वर को चला दे ।

स्वरोदय से औषधि का निर्माण

 

  • स्वरोदय औषधि वास्तव में कोई औषधि नही है बल्कि पानी मात्र है । इसे तैयार करने तथा संभाल कर रखने के लिए लाल रंग की तथा सफेद रंग की शीशी की आवश्यकता होगी ।

  • सर्वप्रथम आप एक कांसे के पात्र में जल भर करके अपनी नाक के पास ला करके नाक से आठ या दस इंच दूर रख करके जल को टकटकी लगाकर देखते रहे तथा अपनी सांस की हवा को जल तक पहुंचने दे । यह क्रिया स्वस्थ व्यक्ति ही करे । लगभग 15 मिनट बाद इस जल को शीशी में रख ले ।

  • सावधानी चंद्र स्वर में अलग जल तैयार होगा तथा सूर्य स्वर में अलग जल बनेगा । इन्हें आपस मे न मिलाये । सूर्य स्वर से तैयार जल को लाल शिशी में रख ले और चंद्र स्वर वाले जल को सफेद शीशी में । अब इस जल से आप किसी की भी चिकित्सा कर सकते हैं ।

औषधि प्रयोग

  • उपरोक्त बनाई गई औषधि तीन दिन तक शक्तिकृत रहती है 
    शितजनित रोगों में सूर्य स्वर चलवा करके लाल शीशी से आधा कप जल पिलायें । एक - एक घंटे के अंतर से चार खुराकें दे दे । आप स्वयं ही अनुभव करेंगे कि कितने शीघ्र ही यह औषधि रूपी जल रोग का नाश कर डालता है ।

  • गर्मी जनित रोगों में सफेद शीशी वाला जल चंद्र स्वर चला करके एक - एक घंटे के अंतर से चार खुराक दे अवश्य ही लाभ होगा ।

शिव स्वरोदय से करे अपने सपनो को साकार और साथ ही पाए रोगों से निजात ( Make Your Dreams In Reality by Shiv Swarodya )
स्वरोदय से इच्छीत सन्तान की प्राप्ति

स्वरोदय से इच्छीत संतान की प्राप्ति

  • सभी शास्त्रों में मनचाही संतान प्राप्त करने के उपाय बताए गए है यदि किसी को लड़कियाँ ही जन्मती हो तो पुत्र की प्राप्ति तथा जिसे पुत्र ही जन्मते हो तो पुत्री की इच्छा 

  • जब पुरूष का सूर्य स्वर चल रहा हो और स्त्री का चन्द्र स्वर चल रहा हो तो विषय भोग करने से यदि गर्भ ठहरेगा तो पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी । इस स्तिथि में उल्टा करने से कन्या का गर्भाधान होता हैं ।

  • यह माना जाता हैं कि स्त्री को मासिक स्त्राव के बाद स्नान करने के पश्च्यात चौथे दिन से सोलहवें दिन तक विषय भोग करने से गर्भ की प्राप्ति होती हैं ।

पुराणों के अनुसार यह कथन है कि मासिक स्नान के पश्चात -


  • चौथी रात्री को विषयभोग करने से अल्पायु तथा दरिद्री पुत्र होता हैं 



  • पाँचवी रात्रि में - सुखदायक पुत्री



  • छठी रात्रि में - मध्यम आयु वाला पुत्र



  • सातवी रात्रि में - बाँझ पुत्री



  • आठवीं रात्रि में - ऐश्वर्यवान पुत्र

  • नवीं रात्रि में - ऐशर्व्यवती पुत्री



  • दसवीं रात्रि में - चालाक पुत्र



  • ग्यारहवी रात्रि में - दुश्चरित्र पुत्री



  • बारहवीं रात्रि में - सर्वोत्तम पुत्र



  • तेरहवीं रात्रि में - वर्णसंकर ? कोखवाली पुत्री



  • चौदहवीं रात्रि में - सर्वगुण सम्पन्न पुत्र



  • पंद्रहवीं रात्रि में - भाग्यशाली पुत्री



  • सोलहवीं रात्रि में - सभी भांति से उत्तम पुत्र का गर्भाधान होकर निश्चित समय पर सन्तान की प्राप्ति होती हैं ।


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