थाइरॉयड (अवटु) ग्रन्थि
थायराइड के मरीज के लिये आहार चार्ट |
थाइरॉयड (अवटु) ग्रन्थि ग्रीवा में श्वसन तंत्र ( Trachea ) के सामने सर्वाइकल और पहली थॉरेसिक वर्टिब्री (कशेरुका) के स्तर पर स्थित रहती है।
थाइरॉयड (अवटु) ग्रन्थि दो खण्डों से बनी होती है जो स्वर यन्त्र (larynx) एवं श्वास प्रणाली (Trachea) के मध्य जंक्शन के दोनों तरफ स्थित रहती हैं। ये दोनों खण्ड थाइरॉयड ऊतक के एक ब्रिज (इस ब्रिज को इस्थमस (Isthmus) कहते हैं) के द्वारा ट्रैकिया के आर-पार आपस में जुड़े रहते हैं। लगभग आधे मामलों (cases) में एक पिरामिडल प्रवर्ध (pyramidal process) होता है जो इस्थमस से ऊपर की ओर फैला होता है।थाइरॉयड ग्रन्थि में एक बहुत ज्यादा वाहिकीय ग्रन्थि (vascular gland) होती है।
इसका वजन लगभग 25 ग्राम होता है तथा यह चारों ओर से एक तन्तुमय कैप्सूल से घिरी होती है। यह ग्रन्थि घनाकार उपकला (cuboidal epithelium) से बनी होती है जो अनेकों गोलाकार फॉलिक्ल्स बनाती है। इन फॉलिकल्स में एक गाढ़ा, चिपचिपा प्रोटीन पदार्थ कोलॉयड (colloid) भरा होता है जिसमें थाइरॉयड हॉर्मोन्स जमा (store) रहते हैं।
थाइरॉयड (अवटु) ग्रन्थि दो तरह की कोशिकाओं फॉलिक्यूलर एवं पैराफॉलिक्यूलर कोशिकाओं से बनी होती है।
फॉलिक्यूलर कोशिकाएं (follicular cells) चारों ओर फैली हुई होती हैं थाइरॉयड हार्मोन्स (थाइरॉक्सीन एवं ट्राइआयडो थाइरोनीन) का निर्माण एवं स्राव करती हैं जो हमारे शरीर की अधिकांश कोशिकाओं में चयापचय (metabolism) की गति को बढ़ाते हैं।
पैराफॉलिक्यूलर कोशिकाएं (parafollicular cells) फॉलिक्यूलर कोशिकाओं से बड़ी होती हैं लेकिन संख्या में इनसे कम रहती हैं। इन्हें C-cells भी कहते हैं। ये कोशिकाएं फॉलिक्ल्स के मध्य समूहों में पायी जाती हैं तथा कैल्सिटोनिन (Calcitonin) नामक हॉर्मोन का निर्माण एवं स्राव करती हैं। यह हॉर्मोन रक्त में कैल्शियम सान्द्रता (कन्सन्ट्रेशन) को कम करता है।
थाइरॉक्सीन (T4) थाइरॉयड स्रावों का लगभग 90 प्रतिशत भाग होता है, जबकि ट्राइआयडोथाइरोनीन (T3) बहुत ज्यादा सान्द्र (conecentrated) और सक्रिय होता है। इन दोनों हॉर्मोन्स में मुख्यतः आयोडीन एवं टाइरोसिन नामक एमिनो एसिड शामिल रहते हैं।
हमारे शरीर को आयोडीन हमारे रोज किये जाने वाले भोजन से प्राप्त होता है। टाइरोसिन का संश्लेषण (synthesis) शरीर द्वारा भोजन से होता है इसलिए इसे प्राप्त करने में शरीर को कोई परेशानी नहीं होती । इन दोनों हॉर्मोन्स का एण्डोक्राइन कार्य एक जैसा होता है। ये हमारे शरीर कि चयापचय की क्रिया को तथा ऊतकों की वृद्धि एवं विकास को नियंत्रित करने का काम करते है । ये हॉर्मोन्स मूत्र को ज्यादा बनाते हैं तथा प्रोटीन के विभाजन और कोशिकाओं के द्वारा ग्लूकोज के अन्तर्ग्रहण को बढ़ाते हैं।
थाइरॉयड (अवटु) ग्रन्थि के ज्यादा बढ़ने से या अधिक मात्रा में हॉर्मोन्स का स्राव होने से हाइपर थाइरॉयडिज्म़ (hyper thyroidism) कि स्थिति पैदा हो जाती है, जिसमें अक्सर नेत्रोत्सेधी गलगण्ड (exophthalmic goitre) नामक रोग हो जाता है। इस रोग में रोगी की आंखें बाहर की ओर निकली हुई दिखाई देती हैं, रोगी चिन्तित और बेचैन रहता है तथा नाड़ी की गति तेज हो जाती है। रोगी की त्वचा मुलायम एवं नम रहती है तथा उसे गर्मी ज्यादा लगती है। इस रोग में अच्छी भूख लगने के बावजूद रोगी का वजन कम होने लगता है, अंगुलियों में कंपन होने लगता है और दिल की धड़कन बढ़ जाती है।
थाइरॉयड अल्पक्रिया या हॉर्मोन्स के कम स्राव से हाइपोथाइरॉयडिज्म (hypothyroidism) नामक स्थिति पैदा हो जाती है। गर्भ में शिशु के विकास अथवा शैशवावस्था (शिशु अवस्था) के दौरान थाइरॉयड अल्पक्रिया से जड़वामनता या क्रेटिनिज्म (cretinism) नामक रोग कि स्थिति पैदा हो जाती है। इस रोग में रोगी की याददाश्त कमजोर होने लगती है (mental retardation), हडिडयों एवं पेशियों का विकास अनियमित होता है, दांत देर से निकलते हैं। वयस्कों में इस हॉर्मोन का स्राव कम होने से मिक्सीडीमा (myxedema) नामक रोग कि स्थिति पैदा हो जाती है।
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