> भगंदर और मलद्वार का चिरेदार घाव व उपचार विधि

भगंदर और मलद्वार का चिरेदार घाव व उपचार विधि

भगन्दर और मलद्वार का चिरेदार घाव

कपटी शत्रु की तरह आक्रमण करने वाला गुदा रोग - भगन्दर की शुरुआत एक मामूली सी फुंसी से होती हैं , जिस पर ध्यान न दिए जाने पर वह बढ़ते - बढ़ते भगन्दर के रूप में बदलकर रोगी को अत्यंत कष्टकारी स्तिथी में पहुचा देती हैं ।

भगंदर और मलद्वार का चिरेदार घाव व उपचार विधि
भगंदर और मलद्वार का चिरेदार घाव व उपचार विधि 

रोग का रूप क्या होता हैं ? 


गुदा के करीब दो अंगुल अंदर कि तरफ एक या अधिक फुंसी निकलती है , जो धीरे - धीरे गहरी होती हुई पकने लगती है , बाद में ये नासूर में बदल जाती है , इसे ही भगन्दर कहा जाता हैं । 

कई बार यह नासूर आगे बढ़कर दूसरी तरफ अपना मुख खोल लेता हैं और फिर दोनों तरफ खुली हुई नली जैसी स्तिथि बन जाती हैं । कई बार रोग ऐसी विषम स्तिथि में पहुच जाता हैं जब भगन्दर का यह दूसरा मुख नितम्ब या जांघ तक पहुंच कर खुलता है । भगन्दर की दर्दनाक स्तिथि में भगन्दर के नासूर से रोगी का खून , लसिका और बदबूदार मल रिसता रहता है । इससे रोगी के कपड़े खराब होते रहते है । 


जीवन को दुखदायी बनाने वाले इस रोग के पूर्व रूप इस प्रकार देखने मे आते हैं - 


  • गुदा प्रदेश में एक या आधिक फुंसी हो जाती है जो एक बार मिट जाने के बाद बार - बार उभर आती है ।

  • गुदा में खुजली , जलन और दर्द होता हैं जो मलत्याग के समय और बढ़ जाता है ।

  • रोगी को ऐसा लगता हैं कि गुदा में कोई घाव या फोड़ा हो गया है ।

  • गुदा से चिकना - चिकना मवाद रिसता रहता हैं ।

  • पहले से ही रहने वाली कब्ज और उग्र हो जाती है ।

भगन्दर क्यो होता हैं ? जानिये भगन्दर होने के कारण


  • स्कूटर , साइकिल चलाना , अधिक ड्राईविंग करना ।

  • कब्ज की बीमारी प्रायः बनी रहना , जिससे मलत्याग के समय रोगी को काफी जोर लगाना पड़ता है , ऐसे में स्नायुओं पर बढ़ता दबाव भगन्दर का कारण बन जाता है ।

  • ठंडी और गीली जगह पर अधिकता से बैठना ।

  • प्रायः उकड़ू बैठने की आदत से मूलाधार प्रदेश पर अधिक दबाव पड़ता हैं जो अंततः भगन्दर का कारण बन जाता हैं ।

  • मलद्वार में किसी वजह से चोट या घाव से भी भगन्दर हो जाता हैं ।

  • मलद्वार के आसपास पनपे कृमि भी भगन्दर की वजह बन सकते है ।

  • कोई फुंसी या फोड़ा जब मलद्वार में बने और उपचार में लापरवाही बरती जाये तो यह पककर भगन्दर का रूप धारण कर लेता है ।

भगंदर और मलद्वार का चिरेदार घाव व उपचार विधि
भगन्दर के प्रकार

भगन्दर के प्रकार

आधुनिक मतानुसार भगन्दर के दो भेद है , 

( 1 ) पूर्ण भगन्दर 

( 2 ) अपूर्ण भगन्दर

पूर्ण भगन्दर ( Complete Fistula ) -


इसमे नासूर के दोनों सिरे खुले रहते है यानी नासूर आरपार होता हैं जिससे मल या मवाद एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुचकर बाहर निकल सकता हैं । इसे ' द्विमुख भगन्दर ' या ' पूर्ण भगन्दर ' कहा जाता हैं ।


अपूर्ण भगन्दर ( Incomplete Fistula )


इसमे नासूर का एक ही सिरा खुला रहता हैं , जबकि दूसरा सिरा बंद रहता हैं । भगन्दर का नासूर जिस जगह खुलता है , उसके आधार पर भगन्दर के दो उपविभाग होते है ।

( 1 ) अन्तर्मुख ( Blind Internal ) - इसका मुख मलाशय में खुलता है ।

( 2 ) बहिर्मुख ( Blind External ) - इसका मुख केवल बाह्य त्वचा पर खुलता है ।

आयुर्वेद में भगन्दर के निम्न प्रकार बताये गए है 

शतपोनक भगन्दर



एक से अधिक मुख वाला , वातिक भगन्दर होता हैं , जिसमे से चिकना , फैनिल , मलयुक्त स्त्राव होता हैं । मलद्वार में चलनी जैसे छिद्रों के कारण इसमें सुई चुभोने जैसी पीड़ा का अनुभव होता है ।

उष्ट्रग्रीव भगन्दर

इस पित्त जन्य भगन्दर में लाल रंग की एक छोटी फुन्सी धीरे - धीरे फैलकर ऊंट की गर्दन जैसे मोड़दार नासूर में बदल जाती है । बदबूदार गर्म स्त्राव वाले इस भगन्दर में जलन और पीड़ा होती रहती है ।

परिस्त्रावी भगन्दर

इस कफज भगन्दर में पहले एक सफेद रंग की फुन्सी होती है जो धीरे - धीरे बढ़कर चिकने और खुजली पैदा करने वाले स्त्राव वाले नासूर में बदल जाती है।

शम्भूक भगन्दर

इस त्रिदोषजन्य भगन्दर में पैर के अंगूठे के आकार जैसा फोड़ा नासूर में बदलकर चिकना स्त्राव करता है । जलन और वेदना इसमे होती रहती है ।

उन्मार्गी भगन्दर 

चोट लगने , काटा चुभने जैसी बाहरी कारणों से जब गुदा प्रदेश में घाव हो जाता है , तब वह उचित उपचार के अभाव में धिरे - धिरे नासूर में बदलकर कृमि तथा दुर्गंड्युक्त स्त्राव करने लगता है ।

परिक्षेपी भगन्दर

इस द्विदोषज भगन्दर में वात - पित्त का प्रकोप होता है । इसमें गुदा के चारो ओर चीरे जैसे घाव हो जाते हैं । इसमे स्त्राव नही के बराबर ही होता है ।

ऋजु भगन्दर

इस द्विदोषज भगन्दर में वात - कफ का प्रकोप होता है । इसका नासूर सीधा होता है , जिसमे से प्रायः स्त्राव नही होता

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भगन्दर का उपकार

भगन्दर का उपचार

भगन्दर के उपचार में ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे पनप चुकी फुन्सी बिना पके बैठ जाये । लेकिन यदि फुन्सी पककर फुट गयीं हो तब घाव भर जाये । यदि घाव ने नासूर का रूप बना लिया हो तब नासूर भरकर ठीक हो जाये । इस हेतु निम्न उपचार प्रभाव रहता है ।

रोगी को शुरू में कांचनार गुग्गुल , कैशोर गुग्गुल , त्रिफला गुग्गुल की 2 - 2 गोलियां और आरोग्यवर्धिनी वटी की 2 गोली यानी कुल 8 गोली फोड़कर हल्के गर्म जल से हर 4 - 4 घंटे पर लेना चाहिए । जब रोग की उग्रता कम हो जाये तब इन्हें दिन में 3 बार - सुबह , दोपहर और शाम को लेना चाहिए ।

जब रोग मिट जाने का अनुभव हो जाये , उसके बाद इस उपचार को बदलकर इन चारों औषधियों की मात्रा आधी करके यानी 1 - 1 गोली दिन में 2 बार सुबह - शाम महीने भर और देते रहे ।

इसके साथ बाह्य उपचार के तौर पर जात्यादि तेल या निम तेल से रुई का फाहा तह करके गुदा पर दिन में 6 - 7  बार रखना चाहिए । बाद में आराम महसूस होते रहने पर फाहा रखने का क्रम क्रमशः कम करते जाये ।

यदि रोग काफी बढ़ चुका हो और औषधियों से लाभ न हो रहा हो तब आयुर्वेदिक क्षारसूत्र का प्रयोग करना उपयुक्त रहता है ।

पथ्यापथ्य


पथ्य - भगन्दर के रोगी के लिये गेंहू , जौ , चावल , मूंग , बेंगन परवल ,लौकी , तोरई , आंवला , अंगूर , ताजा छाछ , मक्खन दूध , प्याज लाभदायक रहते है । मूंग की पतली खिचड़ी , मूंग की दाल , मूंग का पानी भी लाभदायक है ।

अपथ्य - गर्म , गरिष्ट , तीखे  और वातकारक आहार का सेवन न करे । खट्टी चीजो और मिर्च का सेवन भी बिल्कुल न करे । वाहन की सवारी और व्यायाम से भी भगन्दर के रोगी को परहेज करना चाहिए ।

जब गुदा में चिरेदार घाव हो जाता है ( Fissure in Ano )


गुदा के बाहरी या अंदरूनी भाग में एक या अधिक चिरयुक्त घाव होने का प्रमुख कारण कठिन कब्ज होता है । इस रोग में मलद्वार की ऊपरी त्वचा ( Mucous Membrane ) के कटाव से पैरों में बिवाई जैसे चीरे हो जाते है । जिनमे बहुत दर्द और जलन होती रहती है । यह वेदना मलत्याग के समय असह्य हो जाती है । इन घावों में कभी - कभी रक्तस्त्राव भी होता है ।

इस रोग में कष्ट को कम करने के लिए मल का ढीला और मुलायम होना जरूरी है , इसके लिये रोगी को मलाई या मक्खन के साथ 5 -10 ग्राम इसबगोल की भूसी का सेवन रोज रात को सोने से पहले करते रहना चाहिए ।

जय हिंद जय भारत








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