> भारतीय सनातन संस्कृति की प्राचीन प्रथाओ का वैज्ञानिक कारण

भारतीय सनातन संस्कृति की प्राचीन प्रथाओ का वैज्ञानिक कारण

क्या आप जानते हैं ? शिव लिंग काले रंग का ही क्यों होता हैं ! भारतीय प्राचीन सनातन संस्कृति


हमारे पूर्वजों ने हमारे जीवन को सरल बनाने के लिए बहुत सारी प्रथाओ का निर्माण किया था और आज विज्ञान की कसौटीयो पर आज भी वो प्रथायें शत प्रतिशत खरी उतरती दिखाई देती हैं । जिनका हमारे दैनिक जीवन पर बहुत ही गहरा सकारात्मक असर दिखाई देता है परन्तु पश्चिमी सभ्यता की नकल करते हुए हम उन प्रथाओ को भुला कर पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण कर रहे हैं जिसका हमारे शरीर पर नकारात्मक का असर दिखाई देने लगा है अब समय आ गया है कि जनसाधारण तक हमारी प्राचीन सनातन धर्म का प्रचार प्रसार कर जनमानस को ऊर्जावान व सकारात्मक विचारों से ओत प्रोत किया जाए ।


आइये जानने का प्रयास करते है कि इन प्राचीन सनातन संस्कृति की प्रथाओ के पीछे छुपे अद्धभुत वैज्ञानिक रहस्यो को 


1 - खड़ाऊ का उपयोग व खड़ाऊ पहनने के फायदे


हमारा शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना हुआ है । आज कल हर व्यक्ति को पाचन की समस्या है शरीर मे पाचक अग्नि की कमी हो गई है और जीवन मे निराशा अवसाद ने स्थान ले लिया है अग्नि तत्त्व की कमी के कारण हम जो भी खाते हैं पचा नही पाते और अपचन से शुरू होकर बहुत सी समस्याओं से घिर जाते है हमारे शरीर मे पैंक्रियाज को अग्नि का स्थान माना जाता है और अग्नि तत्व के साथ - साथ वायु तत्व की भी हमारे शरीर मे कमी होती जा रही है हमे ऊर्जा वान रहने के लिए इस तत्व की उचित मात्रा होना जरूरी है हमारी हर छोटी सी छोटी कोशिकाओं को ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है परन्तु वायु तत्व की कमी से हम पर्याप्त ऑक्सिजन हमारे शरीर की कोशिकाओं तक नही जा पाती वायु तत्व का स्थान हमारे फेफड़ों में है वायु तत्व के कारण ही रचनात्मक कार्यो को कर पाते है ।

खड़ाऊ पहनने के फायदे
 खड़ाऊ


हमारे शरीर मे हमारे हाथों और पैरों की पांचो अंगुलियां पांच तत्वों को प्रदर्शित करती हैं और हर एक उंगली का सम्बंध एक तत्व से है । हाथ और पैर का अंगूठा अग्नि तत्व को दर्शाता है और अंगूठे के बाजू वाली अनामिका उंगली वायु तत्व को प्रदर्शित करती है । जब हम खड़ाऊ पहनते है तब चलते समय अंगूठे और अनामिका के बीच मे जोर लगता था जैसे ही हम जोर लगाते हैं तो वायु तत्व शरीर मे ज्यादा जाने लगता था और अग्नि और वायु तत्व यानी अंगूठा और अनामिका पास में जुड़ जाती थी और हम जानते हैं जब अग्नि वायु के सम्पर्क में आती है तो अग्नि तेजी से बढ़ने लगती हैं । इसीलिए जब खड़ाऊ पहनते है तो हम पाचन संस्थान और श्वास सम्बन्धित बीमारी होने से बच जाते हैं।


2 - भगवा व गेरुआ रंग का झंडा


हमारे ब्रम्हांड में निरंतर ब्रम्हांडीय ऊर्जा निरंतर प्रवहित होती रहती है और जो गहरे रंग होते है वो ऊर्जा को अपनी और आकर्षित करते है इसिलए हमारी प्राचीन सनातन परंपरा में झंडो का रंग गहरा ही चुना गया था गहरा रंग निरन्तर ब्रम्हांड से सकारात्मक ब्रम्हांडीय ऊर्जा को अपने और आकर्षित करते रहता है इसीलिए हमे मंदिरो में जाने पर मन प्रसन्न हो जाता है क्योंकि झंडे से होकर ब्रम्हांडीय ऊर्जा उस जमीन में संचित होती रहती हैं और हमे वहां जाकर सकारात्मकता अनुभव होता हैं । 


गहरे रंग ब्रम्हांडीय ऊर्जा को अपनी और आकर्षित करते है इसलिए हम ठंड के दिनो में काले रंग के कपड़ों को पहनते है और हमे गर्मी का अनुभव होने लगता है । इसिलए हमे अपने घरों की छत पर भी भगवा या गेरुआ झंडा अवश्य लगाना चाहिए जिससे हमारे आस पास की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाये और हमारे सम्पूर्ण परिवार में सकारात्मकता वातावरण बना रहे जिन घरों पर झंडे होते है उन परिवार के लोगो पर नकारात्मक शक्तियों का असर नही होता ।


3 - शिव लिंग का रंग काला क्यों होता हैं ?


हम ऊपर चर्चा कर चुके है कि गहरे रंग ब्रम्हांडीय ऊर्जा को अपनी और आकर्षित करते है शिव लिंग का रंग भी काला होता है और शिव मंदिर पर लगे झण्डे से होकर ब्रह्मांडीय ऊर्जा वहा बहुत अधिक हो जाती हैं शिव लिंग पर पानी चढ़ाने से वह ऊर्जा और अधिक मात्रा में हमारे शरीर मे प्रवेश करती है इसलिए शिव जी के लिंग के ऊपर जल चढ़ाने की प्रथा है अब तो विज्ञान से भी हम जानते है जब हम किसी गीली जगह पर करंट लगता है तो उस करंट की त्रिवता ( गति ) तेज होती है।

शिव लिंग पर पानी क्यों चढ़ाते हैं
शिव लिंग



इसीलिए बरसात के दिनों में बिजली वृक्षो के ऊपर गिरने की संभावना ज्यादा होती है क्योंकि जब आकाश में बादल छाए हो तब पेड़ पौधों का रंग गहरे काले रंग का दिखाई देती हैं और इसी कारण वहां बिजली गिरने की संभावना बढ़ जाती है ।


4 - सूर्य को सुबह अर्ध देने  की प्रथा


सात रंगों को अगर मिला दिया जाए तो सफेद रंग बन जाता है जब भी हम उदय होते सूर्य को जल चढ़ाते है तो सूर्य से आने वाली ब्रम्हांडीय ऊर्जा उस जल के सम्पर्क में आती है और उस जल से सम्पर्क के बाद हमारे शरीर पर पड़ती है जिससे हमारे शरीर मे उर्जा का स्तर बढ़ने लगता है जब भी सूर्य को जल चढ़ाया जाता है तब कम से कम वस्त्रो में हाथो को ऊपर उठाकर जल चढ़ाया जाता हैं स्नान के तुरंत बाद दिए गए अर्ध का असर दुगना होता है ।

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