जरा सोचिए ! सम्बन्धो में शारिरिक और अल्पकालिक आकर्षण
जरा सोचिए ! सम्बन्धो में शारिरिक और अल्पकालिक आकर्षण |
स्वतंत्रता के नाम पर पारिवारिक बंधन टूट रहे हैं । पति और पत्नी परस्पर अविश्वास और शंकाओ से ग्रस्त हैं। सारा पारिवारिक जीवन एक बेहद नाजुक धागे से बंधा प्रतीत होता होता हैं। सम्बन्धों में शारिरिक और अल्पकालिक आकर्षण से परे शायद ही कोई गहराई शेष रह गई हैं। जैसे ही बच्चा अपने पैरों पर चलने लायक होता हैं उसे स्कूल का रास्ता दिखा दिया जाता हैं। ऐसा लगता हैं की माता - पिता को अब बच्चे भी भारस्वरूप लगने लगे हैं और उन्हें अपने स्वछन्द जीवन की एक बड़ी बाधा मनाने लगे हैं। ऐसे बच्चे कम ही है , जिन्हें माता-पिता की ममता मिल पाती हो,अधिकतर बच्चे समय से पहले परिपक्व हो जाते हैं।पांच साल का बच्चा वयस्को जैसी बाते करने लगता हैं , उसके भीतर जानकारीया ठूस - ठूसकर भर दी जाती हैं । नतीजन उनमे अबोधता , भोलापन औऱ निश्छल आनंद का प्रायः अभाव ही रहता हैं । जिंदगी की शुरुआत में ही आधुनिक जीवन के तनाव औऱ दबाओ का सिलसिला प्रारम्भ हो जाता हैं ।
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