अनेक रोग मिट जाते हैं , जल चिकित्सा से
Water Therapy |
समस्त रोगों का मूल कारण शरीर के अन्दर विजातीय पदार्थों का इकट्ठा हो जाना है । जब वायु दूषित हो जाती है , शरीर मलग्रसित हो जाता है , तभी रोगों का प्रकोप होता है । शरीर की गंदगी को निकाल देने से ही शरीर स्वस्थ हो जाता है । जिस तरह कपड़े गंदे होने पर हम जल से उसे साफ करते है , ठीक उसी तरह शरीर के भीतर की गंदगी भी जल द्वारा निकाली जा सकती है और शरीर को रोगमुक्त किया जा सकता है ।
रोग निवारण में जल की सहायता दो प्रकार से ली जाती है - एक तो जल को पीने से दूसरे जल से स्नान द्वारा ।
जल ही जीवन हैं । जल जीवन देने वाला होता हैं । भोजन के बिना तो एक बार काम चल भी सकता हैं किंतु जल के बिना मनुष्य जीवित नही रह सकता हैं । जल भोजन को पचाता है । शरीर के रक्त को शुद्ध करता है । शरीर के भीतरी महीन नसों में पहुचता हैं तथा उन्हें सशक्त बनाकर शरीर का पोषण करता है । यही नही अपितु जल शरीर के विषैले तत्वों को पसीने तथा मल - मूत्र के रूप में शरीर से बाहर भी निकलता है ।
हमारे शरीर की रचना पांच तत्वों से मिलकर हुई है । ये है - पृथ्वी, जल,अग्नि,वायु और आकाश । इन तत्वों के निश्चित अनुपात में बने रहने पर हम स्वस्थ रहते है किंतु जब इनके अनुपात में गड़बड़ी पैदा होती है तब हमारे ऊपर रोगों का आक्रमण होना प्रारंभ हो जाता है । समस्त रोगो का कारण हमारे शरीर मे एकत्र हुआ मल हैं और यह अनुचित आहार - विहार से एकत्रित होता हैं अनुचित आहार - विहार सबसे पहले हमारी पाचन क्रिया को बिगाड़ देता हैं तत्पश्चात अनेक रोग हमे घेर लेते है । जिससे तीव्र रोग सर्दी , दस्त , पेचिश , बुखार आदि के माध्यम से हमारे शरीर के मल बाहर निकलते है । जीर्ण रोग की अवस्था मे विषाक्त एवम धातुयुक्त दवाये लेने से तीव्र रोग दब जाते है । किंतु ये किसी न किसी अंग में जमा होकर घातक रोग का रूप ले लेते हैं
जल में जीवनदायी तत्व होने के अतिरिक्त अनेक औषधीय गुण भी है । जल चिकित्सा से मधुप्रमेह , रक्ताल्पता , रक्तचाप , जोड़ो का दर्द , पक्षाघात , बेहोशी , कफ , खांसी , दमा , राजयक्ष्मा , मैनिंजाइटिस , मूत्र रोग , लिवर के रोग , गैस के रोग , आंखों के रोग , प्रदर , सिरदर्द , गर्भाशय का कैंसर एवम नाक ,कान,गले के रोग दूर हो सकते है । जल तो बिना पैसे की औषधि हैं ।
जल का वैज्ञानिक रीति से उपयोग करके साधारण से लेकर असाध्य रोगों का उपचार एक नियत समय मे सम्भव हैं । जल से रोग उपचार की विधि को जापान व अन्य देशों में वाटर थैरेपी , जल चिकित्सा , वाटरपैथी कहा जाता हैं । जल से नहाने का पूरा आनंद तो मिलता ही है । यह शरीर की आंतरिक सफाई भी करता है । यह पेट स्वच्छ रखता है एवं आंतो की स्वच्छता में सहायक होता हैं ।
हमारी पृथ्वी का तीन चौथाई भाग जल है एवं मनुष्य शरीर का अस्सी प्रतिशत भाग जल ही हैं । मनुष्य के पैदा होने से लेकर मृत्यु पर्यन्त जल का उपयोग किया जाता हैं । सुबह सोकर उठने के पश्चात से लेकर रात्रि में सोने तक जल की आवश्यकता होती है । जल ही जीवन है कि मौलिक सिद्धान्त के आधार पर हम सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि मानव शरीर में जल का कितना महत्वपूर्ण स्थान है । मानव शरीर में पानी की कमी अर्थात जीवन शक्ति का हास और मृत्यु की ओर पग बढ़ाना है ।
जल पीने की विधि
प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व ही उठकर बिना मुह धोये , बिना ब्रश किये लगभग सवा लीटर अर्थात चार बड़े गिलास पानी धीरे - धीरे करके एक साथ पी जाए । इसके पूर्व एवम पश्चात 45 मिनट तक कुछ भी नही खाये पिये । पानी पीने के पश्चात मुँह धो सकते है , ब्रश कर सकते है । यह प्रयोग आरम्भ करने के बाद ध्यान रखे कि स्वल्पाहार एवम भोजन के पूर्व , बीच मे या पश्च्यात तत्काल पानी न पीयें । पानी पीने के एक घंटे पश्च्यात भोजन या स्वल्पाहार करे । भोजन एवम स्वल्पाहार के एक घंटे बाद पानी पिये , रात्रि में भोजन कम मात्रा मे करे । वयस्क व्यक्ति प्रातः काल सवा लीटर तक पानी पीएं , जबकि बच्चे , वृद्ध एवम बीमार व्यक्ति लगभग आधे लीटर तक पानी पिये फिर धीरे - धीरे मात्रा बढ़ाते जाए । आरंभ के तीन - चार दिन पेशाब तीन - चार बार कुछ देर से आ सकता हैं । बाद में सब कुछ पहले जैसा सामान्य हो जाता हैं । भोजन एवम स्वल्पाहार करते समय नाममात्र पानी का प्रयोग करें । मुख्य बात यह है कि पानी दूषित न हो । पानी स्वछ एवम मृदु हो । पानी को छानकर एवम उबालकर उपयोग में लाये । जल चिकित्सा करने से रोगी व्यक्ति स्वस्थ हो जायेगा एवम स्वस्थ व्यक्ति सदैव ठीक रहेगा ।
जल चिकित्सा से रोग उपचार |
जल चिकित्सा से रोग उपचार
जल चिकित्सा के तहत प्रातः काल पानी पीने से पेट साफ होकर मल बाहर आ जाता हैं और कब्ज नही हो पाता । यदि पुराना कब्ज हो तो भी प्रातः कालीन पानी सेवन से वह धीरे - धीरे दूर होने लगता है । कब्ज की स्तिथि में दस दिनों के भीतर ही जल चिकित्सा का प्रभाव दिखने लगता है । यह कील मुहासों को दूर रखता है और सौंदर्य बढ़ाने में सहायता करता है । पानी की कमी से मल सूखकर कड़ा हो जाता हैं और बवासीर होने का ख़तरा बढ़ जाता है इसलिए अधिक पानी पियें , इससे न कब्ज रहेगा और न बवासीर होने का खतरा । मूत्राशय के सभी रोगों की स्थिति मे पानी अधिक पीना चाहिए इससे जीवाणु पेशाब के साथ घुलकर बाहर आ जायेंगे विकरालता की स्थिति नही होगी । गुर्दे की पथरी की स्थिति में जलपान विशेष लाभकारी होता हैं । यह विभिन्न अनुभवो और परीक्षणों से सिद्ध हो चुका है ।
शरीर की बढ़ी हुई चर्बी जलपान करने पर दो तीन महीने में घट जाती है । मोटापा तो स्वयं ही अनेक रोगों का घर है । मोटापे की अधिकता से शरीर भद्दा लगता हैं और आलस घेरता है ।
गर्मी में या जब कभी शरीर का तापमान बढ़ जाता हैं तो प्राण पर संकट दिखाई देने लगते है तब व्यक्ति को बार - बार पानी पिलाया जाता है जिससे शरीर में पानी की कमी नही रहे । इस तरह यह प्राण रक्षक भी है ।
जल शरीर के रक्त का नियंत्रित संचार और परिभ्रमण तो संभव करता ही है , यह शरीर को आवश्यक खनिज तत्व की भी आपूर्ति करता हैं । गर्भवती स्त्रियों के लिए पानी का अधिकाधिक सेवन लाभप्रद होता हैं । इससे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता तीव्र होती हैं । जल चिकित्सा से हाइपरटेंशन एक माह में नियंत्रित हो जाता हैं । जो लोग वायुरोग एवम जोड़ो के दर्द से पीड़ित हो उन्हें यह प्रयोग एक सप्ताह तक दिन में तीन बार करना चाहिए एक सप्ताह बाद दिन में एक बार करना पर्याप्त है ।
जिस प्रकार जल चिकित्सा से रक्तचाप एक माह में नियंत्रित हो जाता हैं , वैसे ही गैस की परेशानी दस दिन में दूर हो जाती हैं । तांबे के पात्र में रात का पानी रखकर सुबह पीने से रक्तचाप नियंत्रित हो जाता हैं
अजवाइन जल
एक लीटर पानी में एक चम्मच अजवाइन डालकर उबाले जब पानी आधा रह जाए तो ठंडा कर छानकर पीये । ऐसा करने से मधुमेह , अरुचि , मंदाग्नि , पीठ का दर्द , पेट का गोला , हिचकी , बहुमूत्र , दस्त , अजीर्ण , सर्दी , हैजा , ह्र्दयशूल की स्थिति में लाभ मिलता हैं ।
धनिया जल
एक लीटर पानी मे डेढ़ चम्मच सूखा साबुत धनिया डालकर उबाले जब पानी का पौन भाग बचने पर उसे ठंडा कर छान लें ।उसमे थोड़ी सी शक्कर मिला लें । इस जल के सेवन से गर्मी में होने वाले सभी रोग , बवासीर , सूखी खांसी , दस्त , नकसीर , रक्तस्त्राव , आंखों की जलन , पेट के छाले , अम्लपित्त , पित्त रोग आदि दूर होते है । यह विषनाशक भी हैं ।
सौंठ जल
एक लीटर पानी में एक साबुत सौंठ डालकर उबालें , पानी आधा रह जाने पर ठंडा कर अच्छी तरह छान लें । इस जल के सेवन से कफ रोग , मस्तक पीड़ा , राजयष्मा , दमा , पुरानी सर्दी , शरीर का ठंडा बने रहना , निम्न रक्तचाप , मधुमेह , बहुमूत्र , अपच , दस्त , श्वास के रोग , फेफड़ों में पानी भरना आदि रोग दूर हो जाते है ।
जीरा जल
एक लीटर पानी में डेढ़ चम्मच जीरा डालकर उबालें , पौन भाग पानी बच जाने पर ठंडा कर छान लें । इसके सेवन से गर्भवती एवम प्रसूता स्त्रियों के सभी रोग , मलेरिया बुखार , आंखों की लाली , हाथ पैरों में जलन , वमन , रक्त विकार , कृमि रोग आदि सभी दूर हो जाते है ।
बाह्य जल चिकित्सा |
बाह्य जल चिकित्सा
शरीर के बाहर जल चिकित्सा से शरीर के रोग भी दूर होते है । भारत एवम विश्व के ख्याति प्राप्त प्राकृतिक चिकित्सको द्वारा रोगियों पर ऐसे प्रयोग सफल रहे है ।
तीव्र ज्वर
पीड़ा वाले स्थान पर पानी से गीली पट्टी को बांधने पर लाभ मिलता हैं । ज्वर पीड़ित व्यक्ति के शरीर को गीले कपड़े से बार - बार पोछना चाहिए । माथे पर गीली पट्टी रखकर बदलते रहना चाहिए । पैर के तलवे को भी गीली पट्टी से बार - बार पोछना चाहिए , इससे तीव्र ज्वर उतर जायेगा ।
पित्त ज्वर
रोगी को चित लिटाकर उसके पेडू पर तांबे अथवा कांसे का एक गहरा पात्र ( बर्तन ) रखे और ऊपर से ठंडे पानी की धार बर्तन पर गिराए , पित्त ज्वर शांत हो जायेगा ।
सिर दर्द
किसी भी तरह के सिर दर्द की स्थिति में पीड़ा वाले भाग पर ठंडे पानी वाली गीली पट्टी बदलते रहने से लाभ मिलता है ।
कटना
किसी भी वस्तु से कट जाने पर एवम रक्त बहने पर उस स्थान पर पानी की पट्टी बाँधने पर रक्त बहना रुक जाता हैं एवम पीड़ित व्यक्ति को शांति मिलती हैं ।
आँख आना
आँख आने अथवा आँख लाल होने की स्थिति में किसी कपड़े में पिसी हल्दी बांधकर उसे गिला कर आँखों के ऊपर रखने से लाभ मिलता है ।
नींद न आना
नींद नही आने की स्थिति में गले के पीछे भाग ( गुदी ) को पानी से गिला कर ले एवम माथे पर ठंडे पानी की पट्टी रखकर लेट जाये इससे नींद आने में सहायता मिलेगी ।
थकावट
थकावट होने पर बाल्टी में ठंडा पानी भरकर उसमे थोड़ा नमक डालकर दौनो पैर डुबोकर बैठ जायें 15 मिनट में थकावट दूर हो जायेगी ।
मधुमेह
बाथटब में गुनगुना पानी भरकर उसमे प्रतिदिन आधा घंटा बैठने पर रक्त में ग्लूकोज की मात्रा कम होगी एवम रोगी को लाभ मिलेगा ।
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