महामृत्युंजय मंत्र से स्वास्थ्य प्राप्ति संजीवनी विद्या के स्वास्थ्य चमत्कार
दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने महाम्रत्युन्जय उपासना करके जो लाभ अर्जित किया था , उसके फलस्वरूप ही उन्होंने युद्ध में मृत हुए दैत्यों को पुनर्जीवित कर दिया था .इसी कारण महामृत्युंजय मंत्र को संजीवनी विद्या भी कहा जाता है .
इसी महामृत्युंजय की उपासना महर्षि मार्केंडय ने अपनी छोटी आयु को दीर्घ आयु में परिवर्तित कर लिया था .
महामृत्युंजय मंत्र |
प्राण संकट ,असाध्य रोग ,आकस्मिक दुर्घटना ,गृह क्लेश और धन के अपव्यय इत्यादि पर नियंत्रण पाने के लिए यह महामृत्युंजय संजीवनी विद्या का काम करती है .
महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरशः अर्थ-
त्रयंबकम् = त्रि-नेत्रों वाला (कर्मकारक)
यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय
सुगंधिम्= मीठी महक वाला, सुगंधित (कर्मकारक)
पुष्टिः = एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता
वर्धनम् = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है,
यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय
सुगंधिम्= मीठी महक वाला, सुगंधित (कर्मकारक)
पुष्टिः = एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता
वर्धनम् = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है,
उर्वारुकम= ककड़ी (कर्मकारक)
इव= जैसे, इस तरह
बन्धनात्= तना (लौकी का); ("तने से" पंचम विभक्ति - वास्तव में समाप्ति -द से अधिक लंबी है जो संधि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है)
मृत्योः = मृत्यु से
मुक्षीय = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें
मा= न
अमृतात्= अमरता, मोक्ष
इव= जैसे, इस तरह
बन्धनात्= तना (लौकी का); ("तने से" पंचम विभक्ति - वास्तव में समाप्ति -द से अधिक लंबी है जो संधि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है)
मृत्योः = मृत्यु से
मुक्षीय = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें
मा= न
अमृतात्= अमरता, मोक्ष
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