> पूर्णोपवास का शरीर पर असर

पूर्णोपवास का शरीर पर असर



पाचनसंस्थान-जिस तरह से कोई व्यक्ति ज्यादा खाना खा लेता है और उसके बुरे नतीजे आमाशय को भुगतने पड़ते हैं उसी तरह उपवास रखने का अच्छा असर भी सबसे पहले आमाशय पर ही नज़र आता है। उपवास करने वाले व्यक्ति को उपवास के दूसरे या तीसरे दिन बहुत ही तेज भूख लगती है। जब यह आन्तरिक भूख परेशान करना बंद कर देती है तब शरीर के अन्दर से जहरीले पदार्थों का निकलना शुरू होता है और यह अवस्था जहर की मात्रा के अनुसार 3-4 दिनों तक बनी रहती है। कभी-कभी यह अवस्था 15 दिनों तक भी देखी जाती है। शरीर के अन्दर से जहरों के बाहर निकलने के कारण व्यक्ति को जीभ मैली,सांस में बदबू और भूख न लगना जैसी परेशानियां आ जाती हैं। शरीर में जहर के कम होने के कारण इस समय रोग का असर भी कम हो जाता है और असली भूख भी लगने लगती है, जीभ साफ हो जाती है और शरीर हल्का सा महसूस होने लगता है।

  • उपवास का हमारे शरीर की आंतों पर बहुत ज्यादा असर पड़ता है। अगर किसी व्यक्ति की आंतों में मल सड़ जाता है तो उसे दस्त,गठिया, और पेचिश जैसे रोग घेर लेते हैं। आंतों में नया अन्न रस न पहुंचने के कारण उसके सेलों को कम काम करना पड़ता है जिससे उसकी खोई हुई ताकत दुबारा आ जाती है। आंते शरीर के अन्दर से मल को निकालने लगती हैं तथा आंतों में पैदा हुई हवा शोषित हो जाती है और आंतों में मल को ढकेलने की ताकत कम होने के कारण कुछ दिनों बाद मल अपने आप नहीं निकल पाता और उसको निकालने के लिए एनिमा क्रिया का सहारा लेना पड़ता है। जिस समय आंतों में से पूरा मल बाहर निकल जाता है उसके बाद शरीर के स्नायुओं का नाश होने लगता है जिसके कारण शरीर का वजन कम हो जाता है।

मलत्याग-आंतों में ज्यादा दिनों तक मल के रुके रहने से मल सख्त हो जाता है और उसको बाहर निकलने में बहुत परेशानी होती है। कई बार मल को बाहर निकलने के समय बहुत तेज दर्द और कभी-कभी खून भी आ जाता है। इसलिए एनिमा का इस्तेमाल भी करना जरूरी होता है। अगर उपवास शुरू करने से पहले साधारण भोजन किया जाए तो पहले दिन और दूसरे दिनों की तरह ही बराबर मल आएगा। लेकिन 2-3 दिन बाद मल का आना बंद हो जाता है, तब उसे अगर एनिमा क्रिया द्वारा बाहर न निकाला जाए तो उसके बुरे नतीजे हो सकते हैं।

रुधिर संस्थान-जब हम लोग भोजन करते हैं तो वह भोजन शरीर में पचने के बाद गर्मी पैदा करता है। जिस तरह किसी इंजन में कोयला, पेट्रोल या डीजल की जरूरत होती है, उसी तरह शरीर को चलाने के लिए भोजन की जरूरत होती है। भोजन हमारे शरीर में ईंधन का काम करते हुए शरीर के तापमान को स्थिर रखता है। इसलिए जब हम भोजन नहीं करते हैं तो हमारे शरीर की गर्मी कम हो जाती है।

नाड़ी-उपवास रखने के दौरान नाड़ी में अलग-अलग प्रकार के बदलाव होते देखे जाते हैं। इसलिए चिकित्सक इस बारे में अभी तक किसी सही निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हैं। उपवास की कुछ अवस्थाओं में नाड़ी साधारण रहती है, लेकिन कुछ अवस्थाओं में इसके चलने की र में से जो आन्त्र-रस खून में चला जाता है वह धीरे-धीरे मल को पकाकर बाहर निकालने लगता है। इसलिए आन्त्र-रस से पैदा हुए आमवात (गठिया) आदि रोग ठीक हो जाते हैं। इसके अलावा आंतों में मल के जमा होने से खून का दबाव बढ़ जाता है, लेकिन यह उपवास के समय आंतों के साफ होने से कम होने लगता है, जिसके कारण दिल की अतिवृद्धि कम होती जाती है, तथा दिल पर जो चर्बी पैदा हो गई होती है, वह ईंधन बनकर जल जाती है। नतीजतन दिल का दौरा होने का डर कम हो जाता है।

जिगर-अक्सर जो व्यक्ति ज्यादा भोजन करते हैं उनको जिगर के बढ़ने या उसमें रोग होने के आसार पैदा हो जाते हैं, क्योंकि इस समय जिगर को स्वाभाविक रूप से ज्यादा काम करना पड़ता है। उपवास रखने के दौरान जिगर के सेल ज्यादा उत्तेजित हो जाते हैं जिससे पित्त ज्यादा निकलता है, आंतों में जमा हुआ मल ठीक तरीके से पकने लगता है, मल का रंग, पीला, मटियाला हो जाता है और वह आसानी से निकल जाता है। पित्त के ज्यादा निकलने के कारण व्यक्ति को भोजन हजम न होना,कब्जहोना,दस्त आनाजैसे रोगों को उपवास रखकर ठीक किया जा सकता है।

मूत्र संस्थान-आमाशय से पैदा हुए जहर को खून द्वारा शरीर में फैलाकर वाद को किडनी के द्वारा बाहर निकालते हैं। इनमें सबसे प्रमुख यूरिया होता है। अगर यह यूरिया शरीर से बाहर न निकले तो उसका नतीजा बुरा हो सकता है।किडनी यूरिया को शरीर में से ज्यादा मात्रा में उस समय तक निकालती रहती है जब तक कि उसकी फालतू मात्रा बाहर नहीं निकल जाती। इसके बाद धीरे-धीरे यूरिया की मात्रा कम होने लगती है, जिससे पता चलता है कि अब हमारा शरीर कमजोर होने लगा है, लेकिन इस तरह की कमजोरी आने से पहले शरीर में कई बार चुस्ती-फुर्ती भी महसूस होती है।

  • हमारे शरीर में कोई सी भी क्रिया तभी शुरू होती है जब कि हमारा किया हुआ भोजन पूरी तरह से पच जाता है।अर्थात-शरीर के पाचकरस उस समय तक शारीरिक स्नायुओं को नष्ट करने लगते हैं और यूरिया पेशाब के रास्ते बाहर निकलने लगते हैं।

मूत्र (पेशाब)-अगर उपवास के दिनों में पानी कम पिया जाए तो व्यक्ति को पेशाब भी कम ही आता है, लेकिन अगर पानी का इस्तेमाल सही किया जाए तो पेशाब की मात्रा साधारण के बराबर या उससे थोड़ा कम ही होती है, लेकिन उपवास के पहले दिन पेशाब की मात्रा साधारण अवस्था की मात्रा के बराबर ही होती है। पेशाब की प्रतिक्रिया आम्लिक होती है। घनत्व 1015 से 1025 तक होता है। पेशाब में ठोस पदार्थों की मात्रा 40 ग्राम से ज्यादा नहीं होती है।

त्वचा-हमारे शरीर में त्वचा के 3 काम होते हैं- शरीर की रक्षा करना, संवेदनाओं को दिमाग तक पहुंचाना, शरीर के अन्दर से जहर को बाहर निकालना। हमारे फेफड़े जितना जहर को बाहर निकालते हैं, उतना ही जहर त्वचा भी बाहर निकाल देती है। जब किसी व्यक्ति के ज्यादा भोजन खाने के नतीजतन त्वचा के नीचे ज्यादा चर्बीजमा हो जाती है, तब त्वचा के वे छिद्र जिनमें से पसीना बाहर निकलता है, वे बंद हो जाते हैं, जिसकी वजह से त्वचा द्वारा पसीने के रूप में यूरिया आदि शरीर के अन्दर के जहरीले पदार्थ बाहर निकलना बंद हो जाते हैं। उपवास रखने से त्वचा के नीचे स्थित श्रमबिन्दु और ग्रंथियां अपने असली काम को करना शुरू कर देती हैं, जिससे शरीर के अन्दर का सारा जहर यूरिया आदि बाहर निकलना शुरू हो जाता है। इसी कारण से उपवास करने वाले व्यक्ति को जब पसीना आता है तो उसमें से बहुत तेज बदबू आती है। शरीर में जमा चर्बी शरीर के लिए ईंधन का काम करती है, जिससे पसीने की नलिकाएं खुल जाती हैं। ज्यादा पसीना आने से त्वचा नर्म और चिकनी हो जाती है और इस तरह पसीने के व्यक्ति के शरीर में रुकने से पैदा होने वाले रोग समाप्त हो जाते हैं।

स्नायु संस्थान-शरीर का सबसे मुख्य संस्थान `स्नायु संस्थान´ होता है। अगर इस संस्थान के अन्दर किसी तरह की परेशानी आती है तो शरीर में कोई न कोई रोग जरूर पैदा हो जाता है।आयुर्वेद के मुताबिक इसको `वात रोग´ कहा जाता है और यह भी माना जाता है कि `वात´ के दूषित होने से ही शरीर में सारे रोग पैदा होते हैं। (वाग्भट्ट/9-85-सूत्र-संस्थान´)। इसका पोषण खून के द्वारा होता है। इसलिए खून के खराब हो जाने पर इसका सबसे बुरा असर मनुष्य की दिमागी शक्तियों पर पड़ता है, जिससे उनकी कमी होने लगती है। जिससे मनुष्य दिमागी काम जैसे पढ़ना-लिखना, सोचना-समझना तथा कुछ याद रखना आदि नहीं कर सकता।उपवास रखने से व्यक्ति का खून साफ हो जाता है, जिससे दिमाग पर से जहर का असर समाप्त हो जाता है और व्यक्ति की दिमागी शक्तियां दुबारा बढ़ जाती हैं। इस तरह स्नायु संस्थान के रोग भी उपवास करने से ठीक हो जाते हैं।

वजन-अगर कोई बिल्कुल स्वस्थ व्यक्ति उपवास करता है तो शुरुआत के 1-2 दिनों तक उसके वजन में कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन अगर कोई मोटा और रोगी व्यक्ति उपवास करें तो 2-3 दिन के बाद उसका वजन लगभग 5 पौंड तक कम हो जाता है। उसके बाद रोजाना व्यक्ति का 1 पौंड वजन कम हो जाता है। अगर किसी साधारण से रोग में उपवास करा जाए तो रोजाना 1 पौंड के लगभग वजन कम होता है।

श्वास-संस्थान-उपवास रखने के दौरान श्वास-संस्थान में अलग-अलग बदलाव देखे जाते हैं,लेकिन जो बदलाव देखे जाते हैं वे लगभग सारे उपवास करने वाले व्यक्तियों में समान रूप से मौजूद होते हैं। उपवास रखने के दौरान शुरुआती 2-3 दिनों तक सांस में से बहुत तेज बदबू आती है जो शरीर से जहर और गंदगी निकलने का संकेत देती है,लेकिन लगभग 5-6 दिन बाद पहले की ही तरह सांस चलने लगती है जिससे पता चलता हैकि शरीर की सफाई हो गई है।

  • उपवास काल के दौरान रोग और चिकित्सा-उपवास रखने के समय में कभी-कभी व्यक्ति को बहुत ज्यादा परेशानी होती है जिससे डरकर बहुत से लोग तो उपवास को बीच में ही तोड़ देते हैं। लेकिन ऐसा करने से उनकी परेशानियां और भी बढ़ जाती हैं-

मूर्च्छा (बेहोशी)-उपवास काल के दौरान अगर किसी व्यक्ति को बेहोशी आ जाती है तो यह इस कारण से क्योंकि उस समय व्यक्ति के दिमाग में खून का प्रवाह सही तरह से नहीं होता। इस बेहोशी को दूर करने के लिए रोगी को बिल्कुल सीधा लिटाकर उसकी टांगों को थोड़ा ऊंचा कर देना चाहिए, जिससे व्यक्ति के दिमाग में खून पहुंच सके। बेहोशी की हालत में कभी भी रोगी को खड़ा नहीं करना चाहिए, नहीं तो उसकी मौत भी हो सकती है।

चक्कर आना-किसी व्यक्ति के चक्कर आने की चिकित्सा बिल्कुल बेहोशी की तरह ही है,लेकिन चक्कर कभी-कभी सिर में खून ज्यादा हो जाने से भी आ जाते हैं। किसी व्यक्ति को चक्कर आने पर रोगी के सिर को ऊंचा रखना चाहिए, इसके साथ ही व्यक्ति को खुली हवा में रहकर आराम करना चाहिए।

दिल में दर्द-उपवास रखने के दौरान आमाशय में मल जमा हो जाने से तथा आमाशय के रोगों के कारण अक्सर दिल में दर्द होने लगता है। ये लक्षण धीरे-धीरे खुद ही मिट जाते हैं।

सिरदर्द-कोई व्यक्ति जब उपवास रखता है तो उसको शुरूआत में सिरदर्द होने लगता है, लेकिन यह कुछ देर के बाद अपने आप ठीक हो जाता है।

अतिसार (दस्त)-वैसे तो उपवास रखने के दौरान किसी भी व्यक्ति को दस्त बहुत कम लगते हैं लेकिन अगर किसी कारण से ये लग भी जाएं तो उसकी चिकित्सा तुरंत ही करा लेनी चाहिए।

मूत्रावरोध (पेशाब आने में रुकावट होना)- उपवास करने के दौरान उपवास करने वाला व्यक्ति अगर बहुत ज्यादा पानी पिए लेकिन उसको पेशाब न आए तो उसको अक्सर मूत्रावरोध (पेशाब आने में रुकावट होना)का रोग हो जाता है। इसको ठीक करने के लिए व्यक्ति को ठंडा मेहन स्नान या पेड़ू पर गर्म और ठंडा स्प्रे देना चाहिए।

  • नाड़ी (नब्ज) का धीरे-धीरे चलना-उपवास रखने पर अक्सर उपवास रखने वाले व्यक्ति की नाड़ी के चलने की रफ्तार कम हो जाती है, लेकिन इससे डरने की कोई बात नहीं है, क्योंकि यह खतरनाक नहीं होता। थोड़ा बहुत व्यायाम करने से या गर्म पानी से नहाने से इसकी रफ्तार सही हो जाती है। इसमें मालिश करने से भी बहुत लाभ होता है।

  • नाड़ी (नब्ज) का तेज चलना-जब कोई व्यक्ति लंबा उपवास करता है तो अक्सर उसकी नाड़ी तेज-तेज चलने लगती है, जो बहुत खतरनाक होती है। इसका उसी समय इलाज करना जरूरी है। ऐसी स्थिति में ठंडे पानी से स्नान करने से दिल उत्तेजित होता है, इसलिए रोगी को ठंडे पानी से स्नान नहीं करना चाहिए। ऐसी हालत होने पर रोगी को गर्म पानी से स्नान कराना लाभदायक होता है। लेकिन यह पानी भी ज्यादा गर्म नहीं होना चाहिए, बस शरीर के तापमान के बराबर ही होना चाहिए। पेडू़ पर ठंडे पानी की पट्टी रखने से, सिर को ठंडा और पैरों को गर्म रखने से भी लाभ होता है। इस रोग में ताजी हवा रोगी को खिलाने से भी लाभ होता है।

वमन (उल्टी)-उपवास रखने के दौरान सबसे खतरनाक रोग है, उपवास रखने वाले व्यक्ति को उल्टी होना। अगर ऐसा किसी व्यक्ति के साथ उपवास रखने के दौरान होता है तो उसे बहुत सारा गर्म पानी पिलाना चाहिए ताकि उसके आमाशय में जमा उत्तेजक पदार्थ जल्दी से बाहर निकल सकें। अगर ऐसा करने से कोई लाभ न हो तो, रोगी को ठंडा और गर्म स्नान करना चाहिए।

रोग-आरोग्य और उपवास-अगर कोई कहता है कि रोगों को दूर करने के लिए उपवास रखने का नियम उतना ही ज्यादा पुराना है जितना कि खुद मनुष्य जाति तो यह बात गलत नहीं होगी। बहुत से धार्मिक ग्रंथों में इसके सबूत मिल जाते हैं।

  • अन्न´ को त्यागने से ही बहुत से रोग बिना किसी खतरे के दूर हो जाते हैं।हमारे शरीर के अन्दर रोजाना जो क्रियाएं होती हैं, उनमें शरीर के बेकार और हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालने की एक बहुत ही खास क्रिया हर समय ही चलती रहती है। इस शरीर रूपी मशीन को सही तरीके से चलाने का जिम्मा सबसे ज्यादा शुद्ध खून पर होता है। खून के लाल कण (आर.डब्ल्यू.सी.) नये कोषों की रचना करते रहते हैं और सफेद कण (डब्ल्यू.बी.सी.) शरीर के नुकसानदायक या बेकार पदार्थ को बाहर निकालने का काम करते रहते हैं। शरीर में ज्यादा मात्रा में जमा हुए मल और जहरीले पदार्थ को बाहर निकालने की जोरदार कोशिश को रोग कहा जाता है। दुनिया की सारी चिकित्सा पद्धतियों में अब यह माना जाने लगा है कि रोगी होने पर शरीर खुद ही निरोगी होने की कोशिश करता है, दूसरे किसी तरह की चिकित्सा सिर्फ उसकी मदद करती है। रोगों को दूर करने के इस सुनहरे सिद्धांत को समझने के बाद इसबारे में कोई शक ही नहीं रह जाता कि रोगों के कारण शरीर में जमा मल को दूर करनेके लिए `उपवास´ सबसे अच्छा और जरूरी साधन है। उपवास का मतलब ही होता है शरीर की हर तरह की सफाई होना जिसमें खून की खराबी आदि आते हैं।

  • उपवास रखने के दौरान व्यक्ति जो ऑक्सीजन लेता है वह पहले के पचे हुए और बिना पचे हुए भोजन तथा शरीर के जहर या मल को धीरे-धीरे समाप्त कर देता है। इसी वजह से रोग अपने आप ही ठीक हो जाता है।मनुष्य का शरीर 5 तत्वों से मिलकर बना हुआ है, जिसमें आकाश तत्व सबसे ज्यादा प्रमुख है। उपवास से शरीर को आकाश तत्व की यह शक्ति प्राप्त होती है। इस नज़रिये से भी रोगों को दूर करने के लिए उपवास सबसे ज्यादा महत्व रखता है।

  • बुखार, पेचिश, दस्त, सर्दी-खांसी, फोड़े,चेचक आदि रोग बहुत ही तेज रोग कहलाते हैं। इस तरह के रोगों में शुरू से उपवास रखना बहुत ज्यादा लाभदायक साबित होता है। बार-बार पेशाब आना,दमा, गठिया, भोजन का न पचना,कब्ज, मोटापा आदि पुराने रोग कहलाते हैं। इस प्रकार के रोगों की चिकित्सा रोजाना के भोजन से शुरू करनी चाहिए और उसके आखिरी में रोगी को लंबा उपवास या छोटे-छोटे बहुत सारे उपवास करने चाहिए। पुराने रोगों में रोगी की शारीरिक हालत ऐसी नहीं रहती, जो शुरुआत में उपवास रखने के लिए सही हो। इस तरह का एक रोग और होता है जिसे मारक रोग कहा जाताहै जैसे- टी.बी. रोग। ऐसे रोगों में रोगी की जीवनीशक्ति इतनी ज्यादा कमजोर हो जाती है कि उसका दुबारा सही होना अगर असंभव नहीं तो मुश्किल तो जरूर होता है। इन रोगों में जब तक मृत्यु का दिन नहीं आ जाता तब तक कोई भी चिकित्सा रोगी को सिर्फ थोड़ा सा आराम ही दे सकती है। वैसे तो ऐसे रोगी को उपवास नहीं करना चाहिए,लेकिन अगर उपवास कराना ही हो तो ज्यादा से ज्यादा एक दिन का ही उपवास कराना चाहिए। इस तरह अगर शरीर का कोई अंग बिल्कुल बेकार हो जाए तो वह भी उपवास से ठीक नहीं होता है।

  • किसी-किसी रोग को छोड़कर बाकी सारे रोगों में उपवास बहुत ही ज्यादा लाभ करता है। ऐसा शायद न के बराबर रोग होगा जिसमें छोटा या लंबा उपवास असर न करता हो, बल्कि किसी-किसी रोग में तो उपवास न कराने से रोगी की मृत्यु हो जाती है।


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