योनि विकार नाशक-धातक्यादि तेल ( Matal Oil )
योनि में खुजली के कारण- शारीरिक स्वच्छता का विधिवत् ध्यान न रखने
- नियमित रूप से प्रतिदिन स्नान करते समय योनि-प्रक्षालन न करने
- आहार में तेज़ मिर्च मसाले वाले
- तले हुए और खटाई युक्त पदार्थों का अति सेवन करने
- अण्डा मांस, शराब आदि का सेवन करने
- पति सहवास की अधिकता आदि कई कारणों से स्त्री का योनिमार्ग विकार ग्रस्त होकर किसी भी व्याधि से पीड़ित हो जाता है या इन्फेक्शन होने से शोथ ग्रस्त हो जाता है। इस विकार को दूर करने वाले एक गुणकारी आयुर्वेदिक योग 'धातक्यादि तैल' का परिचय प्रस्तुत है।
धातक्यादि तेल
- धाय के फूल
- आंवला
- तेजपात
- जलबेंत
- मुलहठी
- कमल के फूल
- जामुन की गुठली
- आम की गुठली
- कसीस
- लोध
- जायफल
- तेंदू की छाल,
- कच्ची फिटकरी
- अनार व गूलर की छाल तथा कच्चा बेल फल- सब 30-30 ग्राम।
- तिल का तैल एक लिटर
- बकरी का दूध और बकरी का ही मूत्र 2-2 लिटर।
धातक्यादि तेल निर्माण विधि-
सभी 16 द्रव्यों को कूट पीस कर चूर्ण कर लें और बकरी के मूत्र के साथ पीस कर लुगदी बना लें। एक बढ़ी कढ़ाही में तिल का तेल, बकरी का दूध व मूत्र डाल कर यह लुग्दी भी डाल दें और हिलाते चलाते गर्म करें फिर मन्दी आंच पर पकने दें। जब दूध और मूत्र जल जाए सिर्फ तैल बचे तब उतार कर ठण्डा कर लें और कपड़े से छान कर शीशी में भर लें।
धातक्यादि तेल प्रयोग विधि-
इस तेल में साफ़ रूई का फाहा भिगो कर सोते समय रात को योनि में अन्दर सरका कर रखना चाहिए। इस तैल की हलकी पिचकारी लगा कर योनि-प्रक्षालन (Veginal douche) भी करना चाहिए पेडू, कमर, कूल्हे व पीठ पर इस तैल को लगा कर मालिश की जाती है।
धातक्यादि तेल के लाभ-
यह तैल कई प्रकार के योनि रोगों को नष्ट करने वाला है इस तैल के प्रयोग से | योनिशोथ (Vaginitis), योनि में जलन (Inflamation), योनि भ्रंश (Prolapse of uterus), योनि शूल (Pain), योनि से पस आना, पति सहवास के समय कष्ट होना आदि व्याधियां धीरे-धीरे नष्ट हो जाती हैं। यह योग इसी नाम से बना बनाया बाजार में मिलता है।
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