> हड्डियों और ह्रदय को स्वस्थ रखने में सबसे अहम रोल विटामिन K - 2 का ! लेकिन कैसे ?

हड्डियों और ह्रदय को स्वस्थ रखने में सबसे अहम रोल विटामिन K - 2 का ! लेकिन कैसे ?

हड्डीयो को स्वस्थ रखने के लिए कॅल्शियम सप्लीमेंट का इस्तेमाल करोडो लोग करते है । लेकिन कुछ डॉक्टर और मरीज का अपने अनुभव के आधार पर यह कहना है की हड्डियों को संपूर्ण रूप से स्वस्थ बनाये रखने के लिए सिर्फ एक ही मिनरल सप्लीमेंट काफी है ।नही ! इसके लिये जरुरी है की कुछ और  विटामिन्स का भी  सेवन किया जाये मिसाल के तौर पर  विटामिन K 2 को ही लिजिये । यह न सिर्फ हड्डियों , बल्कि ह्रदय की रक्तवाहिनीयो को भी सेहतमंद रखने मे मदत करता है । ताजा रिसर्च बताते है कि अगर कैल्शियम का सेवन विटामिन K 2 के बिना किया जाये , तो इसके नियमन  यांनी रेगुलेशन  में रुकावट आती हैं ।

हड्डीयो को स्वस्थ रखने के लिए कॅल्शियम सप्लीमेंट
Vit K

दरअसल विटामिन K -2 का लेवल कम होने का ताल्लुक हार्ट डिसीज एथेरोस्केरोसिस ( धमनी का कठोर होना ) होने का खतरा बढने से है ।वैसे अनुभवी डॉक्टरो को यह बात पता है कि जीन लोगो कि हड्डियों मे कॅल्शियम की कमी होती हैं , उनकी धमणीयो मे अतिरिक्त कॅल्शियम हो सकता है और  जिनकी धमणीयो मे कॅल्शियम कम होता है , उनकी हड्डियों में अतिरिक्त कैल्शियम हो सकता हैं और कैल्शियम की कमी से ऑस्टियोपोरोसिस होने की संभावना बढ़ जाती हैं , जबकि धमनी की दीवार में कैल्शियम जमा होने के कारण कोरोनरी हार्ट डिजीज और ह्रदय रक्तवाहिनियों , गुर्दो व तंत्रिका तन्त्र में गड़बड़ी आने से होने वाली दूसरी समस्याएं पनपने लगती है ।

यह तो हमे दशकों से पता है कि खानपान के जरिये विटामिन के की थोडी सी मात्रा खून का थक्का बनने की प्रक्रिया को पूरी करने के लिए जरूरी है लेकिन हमने इसे नजर अंदाज कर दिया की हड्डीयो और धमनियों को स्वस्थ रखने के लिए भी शरीर में  विटामिन के की भरपूर मात्रा जरूरी होती है ।  तो ,  आइए जानते हैं कि किस तरह  विटामिन K- 2 कैल्शियम का नियमन करता है  और ताजा रिसर्च के अनुसार यह हार्ट डिजीज और ओस्टीयोपोरोसिस तथा कई तरह के कैंसर से बचाव करने में किस तरह मदद पहुचाता हैं ।

देखने मे तो यही लगता है कि ऑस्टियोपोरोसिस और हार्ट डीजीज में कोई आपसी संबंध नही है , लेकिन गौर से देखा जाये तो इनमे कुछ बाते  एक जैसी ही होती है । जैसे दोनो ही स्थितियां उम्र के साथ - साथ पनपती है । आपने 30 साल की उम्र वालो में शायद ही किसी को इनमे से किसी शिकायत से ग्रस्त देखा हो , लेकिन 60 - 70 साल की उम्र के लोगो मे ये दोनों बातें एकदम आम होती है ।

ऐसा भी नही है की ये दोनों ही अवस्थायें अचानक पनपती है । इन्हें पनपने में कई साल का वक्त लग जाता हैं । जैसे ऑस्टियोपोरोसिस की शिकायत होने में वर्षो लगते है , उसी तरह कोरोनरी एथेरोस्केरोसिस होने में भी दशको लग जाते है । देखा गया है कि इसकी शुरुआत 20 साल की उम्र या उससे भी पहले हो सकती है और धमनियों में एथीरोमा लगातार तब तक जमा होता रहता है , जब तक हार्ट अटैक या कोई दूसरी बडी मुसीबत न आ जाए । हालांकि इस तरह की अनर्थकारी घटनाओं को रोकने के उपाय किये जा सकते है , पर इसके लिए जरूरी है कि हम इससे सम्बन्धी कुछ अहम बातो की जानकारी हासिल करे ।

दरअसल 19 वी शताब्दी में ही वैज्ञानिकों ने यह जान लिया था कि धमनियों में एक अज्ञात मटेरियल की लाइनिंग बनने के कारण धमनियां हड्डी की तरह कठोर हो जाती हैं । लेकिन उसके बाद के अगले 100 सालो में इसे अस्वीकार कर दिया गया और इसे उम्र से जुड़ी एक गड़बड़ी मान लिया गया , जैसे - आर्थराइटिस ।

बहरहाल , लॉस एंजिल्स स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की डॉ.लिंडा डिमर और उनकी टीम ने जिज्ञासा का विषय बने इस तथ्य का सबसे पहले खुलासा किया कि इंसानो में धमनियों की कठोरता के लिए एथेरोस्केरोसिस टिश्यू में एक प्रोटीन जिम्मेदार है , जिसके बारे में पहले यह समझा जाता था कि यह प्रोटीन सिर्फ बोन टिश्यू में मौजूद होता हैं और इसे ' बोन मॉरफोजेनेटिक प्रोटीन - 2 ' कहते है । यह प्रोटीन हड्डी निर्माण में अहम भूमिका निभाता है । इसके बाद हड्डी निर्माण से जुड़े कई महत्वपूर्ण नियामकों की पहचान एथेरोस्केरोसिस प्लाक टिश्यू में कई गई जैसे - मैट्रिक्स जीएलए प्रोटीन और ऑस्टियोपोरोसिस । ये धमनी और हड्डियों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते है ।

< हड्डी और ह्रदय सम्बन्धी बीमारियों के बीच ताल्लुक की बात को जिस अध्ययन ने और प्रभावी बनाया , उसके मुताबिक जिन व्यक्तियों को ऑस्टियोपोरोसिस था या जिनकी हड्डियों में कैल्शियम की कमी थी , उनकी धमनियों में कैल्शियम अधिक था उनकी हड्डियों में कैल्शियम की मात्रा कम थी । दरअसल जिसे कैल्शियम का जमाव या कैल्शिफाइड प्लाक मान लिया जाता था , वह असल मे पूरी तरह से बोन टिश्यू था और वैस्कुलर कैल्शिफिकेशन को वैस्क्युलर ऑसिफिकेशन नाम दिया गया , जिसका मतलब है रक्तवाहिनियों के भीतर हड्डी का निर्माण होना । इसके अलावा कोरोनरी एथेरोस्केरोसिस के लिये जो दूसरे जोखिम घटक है वे है ऑस्टियोपोरोसिस , उम्र की ढलान , डायबिटीज , आरामतलब जीवनशैली , धूम्रपान और कोलेस्ट्रॉल का लेवल ज्यादा होना । बहरहाल अब वैज्ञानिकों के सामने सवाल यह था कि आखिरकार एक अंग ( हड्डियों ) में कैल्शियम की अधिकता और दूसरे अंग ( धमनियों ) में कैल्शियम की कमी के बीच इतना तगड़ा रिश्ता क्यो है ? और फिर जो लोग ऊपरी तौर पर स्वस्थ नजर आते है , उनमे दोनो समस्याएं इतनी उग्र क्यो होती है ? शुरुवाती चरण में कुछ लोगो ने कहा कि शायद इसकी वजह हड्डियों से धमनियों में असाधारण रूप से कैल्शियम का ट्रांसफर होना हो सकता हैं , लेकिन यह सिद्धांत ज्यादा दिनों तक नही टिक पाया  क्योंकि प्रत्येक सिस्टम का अपना रेगुलेशन होने की बात साबित हो चुकी थी ।

विदेशो में हालांकि डॉक्टरी नुस्खे से मिलने वाली कुछ दवाए जैसे रेलोकसीफेन ( इविस्टा ) और एलेन्ड्रोनेट ( फौसोमैक्स ) ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या में तो कारगर है , लेकिन हड्डी और धमनी स्वास्थ्य समस्याओं में कारगर नही । फिलहाल अभी तक कोई और ऐसी दवा नही बनाई जा सकी है , जो दोनों समस्याओं पर कारगर हो । लिहाजा , ताजा रिसर्चों में इन समस्याओं पर काबू पाने के लिए पोषाहार लेने की जबरदस्त वकालत करते हुए कहा गया है कि धमनी और हड्डी रोगों के बीच के रिश्तों को काबू में रखने के लिए जरूरी है कि शरीर मे कैल्शियम का मेटाबॉलिज्म उचित ढंग से हो । और इस काम मे विटामिन " K - 2 " अहम रोल निभाता है ।

ऑस्टियोपोरोसिस और विटामिन ' K - 2 ' की दखलंदाजी के सबूत
सन 1929 में पहली बार विटामिन ' के ' की खून का थक्का बनाने की प्रक्रिया में निर्णायक भूमिका का पता चला । तब से आज तक वैज्ञानिकों को लगातार ऐसे सबूत मिलते रहे हैं कि विटामिन ' के ' को लेकर आज तक जो भी रिसर्च हुए हैं , उनमे से ज्यादातर विटामिन K - 2 को केंद्रित करके किये गए हैं । खानपान की वस्तुओं में इसकी भरपूर मात्रा हरे सागो और हरी पत्तेदार सब्जियों में पाई जाती है , लेकिन अभी भी यही लगता है कि विटामिन ' K - 1 ' की तुलना में विटामिन ' K -2 ' इंसानी हड्डियों में मौजूद अस्थि निर्माण कोशिकाओं में ज्यादा अस्थि खनिजीकरण के लिए प्रेरित करता है । विटामिन ' K - 2 ' गुर्दा , कलेजी जैसे ऑर्गन मीट सहित अंडे की जर्दी और डेयरी उत्पादों में पाया जाता है ।

जापानियों को बहुत पहले से यह मालूम था कि हड्डियों को सेहतमंद बनाये रखने या रिस्टोर करने में विटामिन ' K - 2 ' कितना शक्तिशाली है । इसीलिए जापान के कुछ खास इलाको में ' नेटो ' नामक स्पेशल डिश या फर्मेंटेड सोयाबीन हफ्ते में कई बार खाया जाता हैं , क्योंकि यह आश्चर्यजनक रूप से विटामिन ' K - 2 ' से भरपूर होता हैं । एक ताजा वैज्ञानिक परीक्षण के अनुसार विटामिन ' K - 2 ' और खासकर वह ' K - 2 ' जो मेनाक्विनॉन - 7 ( MK - 7 ) सक्रिय तत्व के रूप में इस प्रचलित ईस्टर्न जापानी डिश में पाया जाता है , वे ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज के दौरान बोन क्वालिटी पर सहयोगात्मक प्रभाव डालता है ।

जापान के जिन इलाकों में लोग इस डिश का इस्तेमाल करते हैं , उनके खून में विटामिन ' K - 2 '( MK - 7 ) का लेवल कई गुना ज्यादा पाया जाता है । साथ ही उनमे ऑस्टियोपोरोसिस की शिकायत और बोन फ्रैक्चर भी कम होते हैं ।

उक्त नतीजो पर चिकित्सकीय परीक्षणों की भी मुहर लग चुकी है , क्योकि दूसरे परीक्षणों से भी यही पता चला है कि विटामिन ' K - 2 ' बोन फ्रैक्चर के खतरे को कम करने में सफल है । दो साल तक चले एक जापानी अध्ययन में पाया गया कि ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित 120 मरीजों में विटामिन ' K -2 ' ( MK - 4 ) के प्रभाव के कशेरुक ( रीढ़ ) फ्रैक्चर की घटनाएं 5.2  फीसदी कम हुई , बनिस्बत उन मरीजो के , जिन्होंने इस पोषक तत्व का सेवन नही किया था । इस परीक्षण में विटामिन ' K - 2 ' की रोजाना 45 मिलीग्राम ' हाई डोज़ ' मात्रा दी गयी । 

जापान में डॉक्टर्स इस मात्रा का उपयोग ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज में करते हैं , लेकिन अमेरिका में इस मात्रा में विटामिन ' K - 2 ' उपलब्ध नही है । यह विटामिन बोन फ्रैक्चर की घटनाओं को कम करने के मामले में भी उतना ही कारगर साबित हुआ , जितना डॉक्टरी नुस्खे के रूप में लिखी गई दवाए । इसके अलावा जापान में रजोनिवृत्त महिलाओं पर भी एक अध्ययन किया गया । इस अध्ययन में कशेरुक ( रीढ़ ) फ्रैक्चर पर ' K - 2 ' ( MK - 4 ) के प्रभावो की तुलना इटिड्रोनेट ( डिडरोनेल ) नामक ड्रग से की गई । नतीजा यह रहा कि जो महिलाएं रोजाना ' K - 2 ' की 45 मिलीग्राम खुराक लेती थी , उनमे बोन फ्रैक्चर की दर 8 फीसदी थी , जबकि ड्रग थेरेपी लेने वाली महिलाओं में यह दर 8.7 फीसदी पाई गई पर जो महिलाएं ' MK - 4 ' और दवा दोनो चीजो का सेवन करती थी , उनमे फ्रैक्चर दर 3.8 फीसदी रह गई थी , जो अपेक्षाकृत बेहद कम थी । इससे दोनों के मिश्रित प्रभाव का साफ - साफ पता चल गया । हाँ , इन समूह की महिलाओं की तुलना में ' प्लेसिबो ' का सेवन करने वाली महिलाओं में अलबत्ता बोन फ्रैक्चर की दर 21 फीसदी तक पहुच गई थी , जिन्हें न तो ' K - 2 ' ही दिया गया था और न ही ड्रग थेरेपी ।

Post a Comment

0 Comments