> शरीर के रोगों का कामशक्ति पर होने वाले प्रभाव

शरीर के रोगों का कामशक्ति पर होने वाले प्रभाव

वर्तमान समय में हर किसी की जिंदगी तनावपूर्ण होती जा रही है। इसलिए सभी लोगों को अपने साथी के प्रति संवेदनशील बनना चाहिए ताकि वह एक-दूसरे की सभी प्रकार की जरूरतों को ठीक से समझ सके। आजकल के दैनिक कार्य इतने अधिक थका देने वाले हो चुके हैं कि उनका सीधा असर दाम्पत्य जीवन पर पड़ने लगा है। दाम्पत्य जीवन में संतुलन बना रहे अर्थात दाम्पत्य जीवन प्रेममय, रोमांटिक तथा सुखमय़ हो इसके लिए लोगों को अपने जीवन में सभी प्रकार की जरूरतों का ख्याल करना आवश्यक है। इसके साथ ही साथ उन्हें अपने जीवन में सेक्स क्रिया पर भी ध्यान देना चाहिए।

शारिरिक रोगों का कामशक्ति पर प्रभाव


             उदाहरण के लिए जरा सोचिए कि पति-पत्नी जो एक ही छत के नीचे रहते हैं, लेकिन रात होते ही एक-दूसरे को गुडनाइट कहकर अलग-अलग कमरे में सोने चले जाते है। इसका कारण यह है कि उनमें से किसी एक को या दोनों को सेक्स के प्रति उदासीनता की समस्या हो चुकी होती है या फिर एक-दूसरे की शारीरिक जरूरतों को पूरा करने में वे अपने को असमर्थ महसूस करते हैं।


             आज बहुत सेक्स विशेषज्ञों ने कई वर्षों  से सेक्स संबंधी समस्याओं पर शोध करके यह निष्कर्ष निकाला है कि जो पति-पत्नी एक-दूसरे को पूरी तरह से सेक्स की संतुष्टि नहीं कर पाते हैं। उनका जीवन दुःखमय हो जाता है तथा पति-पत्नी में क्लेश भी उत्पन्न होने लगता है। इसके अलावा जो पति-पत्नी एक-दूसरे को पूरी तरह से सेक्स की संतुष्टि दे पाते हैं, उनका जीवन ज्यादा सफल तथा सुखमय होता है। इन सेक्स विशेषज्ञों ने यह भी बताया है कि सेक्स की संतुष्टि का मतलब केवल यौन सम्बंध बनाने से नहीं होता बल्कि इसमें आलिंगन, एक-दूसरे को ज्यादा बाहों में लेना तथा चुंबन आदि करना भी होता है। इन सेक्स विशेषज्ञों का मानना यह भी है कि पति-पत्नी के मन में सेक्स की इच्छा हुए बिना या सेक्स उदासीनता की दशा में भी यदि वे दोनों एक-दूसरे को आलिंगन करें, चुम्बन लें, होठों को मुंह में लेकर चूसें तथा एक-दूसरे के हाथों को चूमें तो भी उनका एक-दूसरे के प्रति प्रेम बढ़ता है। वैसे देखा जाए तो प्यार का खेल जितना अधिक खेला जाता है उतना ही अधिक सेक्स क्रिया करने में आनन्द मिलता है और उतनी ही अधिक सेक्स की सन्तुष्टि मिलती है। इसके अलावा कुछ ऐसे लोग भी होते हैं, जो बिना कोई तैयारी किये ही आनन-फानन में संभोग करते समय जल्दी ही स्खलित हो जाते हैं और स्त्री से दूर होकर करवट बदलकर सो जाते हैं। ऐसे पुरुष अपनी पत्नियों को अक्सर अतृप्त तथा असंतुष्ट कर देते हैं जिसके कारण से ये स्त्रियां अपने पतियों के प्रति असंतुष्ट हो जाती हैं तथा मानसिक विकारों से ग्रस्त हो जाती हैं। इस कारण से ऐसे पति-पत्नियों के सम्बन्धों में दरार पड़ने लगती है तथा उनके घर में अशान्ति का वातावरण छा जाता है।


             आज के समय में बहुत से ऐसे उदाहारण हैं जिसमें देखने को मिलता है कि सेक्स संबंधी मामलों में संतुष्ट तथा सुखी दम्पतियों की संख्या कम होती जा रही है। देखा जाए तो आज 100 में से 60 प्रतिशत पति-पत्नी ऐसे होते हैं जो गृहस्थ जीवन को कुछ समय तक चलाने के बाद अपने विवाहित जीवन में सेक्स से संतुष्ट नहीं हो पाते। लेकिन ऐसे पति-पत्नियों में एक बात और नोट की गई है कि गृहस्थ जीवन में सेक्स का सुख भोगने की आयु सीमा और समय अलग-अलग थी।


             बहुत से ऐसे मामले भी हैं जिसमें 40-45 वर्ष तक पहुंचते-पहुंचते पति-पत्नी दोनों को या फिर दोनों में से किसी एक को सेक्स के प्रति नाराजगी होने लगती है। आज बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो एक या दो बच्चों के माता-पिता बनने के बाद कई प्रकार के रोगों के कारण शारीरिक संबंधों से दूर रहने लगते हैं। भले ही उनकी आयु 30 से 32 के आस-पास ही क्यों न हो।


सेक्स असंतुष्टि के हानिकारक प्रभाव-


             अगर पति-पत्नी दोनों ही सेक्स के प्रति उदासीन हो जाएं तो इससे उन पति-पत्नियों के जीवन में कई प्रकार क्लेश उत्पन्न हो जाते हैं। वे एक-दूसरे से बात कहना तो दूर, पूरी-पूरी रात एक ही बिस्तर पर सोकर गुजार देते हैं और यहां तक यह भी देखा गया है कि वे एक-दूसरे से प्यार भरी बातें भी नहीं करते हैं, फिर भी उन्हें एक-दूसरे से शिकायत नहीं होती। यह भी देखा गया है कि वे परस्पर समझदारी तथा सहमति से सेक्स संबंध नहीं बनाते। कुछ दम्पति ऐसे भी होते हैं जो आपसी नाराजगी के कारण सेक्स संबंध नहीं बनाते या फिर दोनों की एक-दूसरे के प्रति नाराजगी होने के कारण आपस में किसी भी प्रकार के संबंध नहीं रखते।


             कुछ पति-पत्नी तो ऐसे भी होते हैं, जो कुछ अन्य कारण से सेक्स संबंधों से परहेज करने लगते हैं, जबकि दोनों की सेक्स करने की इच्छा सामान्य रूप से होती है।


             विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट को देखने से यह पता चलता है कि सेक्स की संतुष्टि के अभाव में जो तनाव पति-पत्नी के बीच में उत्पन्न होता है। उसके परिणामस्वरूप पुरुषों में नपुंसकता तथा स्त्रियों में सेक्स के प्रति अरुचि उत्पन्न होती है। इस प्रकार की समस्या होने के कारण कई प्रकार के अन्य रोग हैं जो इस प्रकार हैं जैसे- हृदय रोग, पेट से संबंधित रोग आदि।


     वैसे देखा जाए तो विवाहित जीवन में पति-पत्नी में प्रेम का सबसे बड़ा आधार सेक्स होता है। इसलिए कहा जा सकता है कि विवाहित जीवन में किसी भी अवसर पर इससे मुंह मोड़ना जीवन में दुःख और जहर घोलने के समान होता है।


             विवाहित जीवन में पति-पत्नी में से किसी को भी यदि महसूस होने लगे कि उनके मन में सेक्स के प्रति नाराजगी उत्पन्न हो रही है या सेक्स क्रिया करने तथा सेक्स के बारे में सोचने पर ही शरीर में शिथिलता पड़ रही हो तो उसे तुरंत ही संकोच त्यागकर फौरन किसी सेक्स विशेषज्ञ या स्त्री विशेषज्ञ या मनोचिकित्सक से सलाह करनी चाहिए। इस तरह चिकित्सकों के परामर्श से ही इन समस्याओं का पता चल सकता है कि रोग होने का कारण और समस्याएं कौन सी हैं, जिनकी वजह से ही सेक्स संबंधों के प्रति असंतुष्टि उत्पन्न होती है। जब रोग होने का कारण ठीक से पता चल जाए तो उसका उपचार भी ठीक प्रकार से किया जा सकता है।


             सेक्स चिकित्सकों के अनुसार पति-पत्नियों में सेक्स संबंधों के प्रति अरुचि होने का सबसे मुख्य कारण हॉर्मोन की कमी हो सकती है। जबकि सेक्स संबंधों के प्रति अरुचि होने के और भी अन्य कारण हो सकते हैं जैसे- रक्तचाप का बढ़ना, थॉइराइड ग्रंथि के विकार, मोटापा, डायबिटीज तथा अन्य प्रकार के मानसिक विकार की समस्याएं उत्पन्न होना आदि। आज के समय में इन रोगों का उपचार कई प्रकार के दवाईयों तथा मनोचिकित्सक विज्ञानिकों के द्वारा सफलतापूवर्क किया जा सकता है।


शारीरिक रोगों का सेक्स शक्ति पर प्रभाव-


  • सेक्स हार्मोन की कमी होना-


             स्त्री-पुरुष दोनों में ही कामोत्तेजना तथा सेक्स की इच्छा का सीधा संबंध  टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन के साथ होता है। टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन ही उनके खून में मिलकर उन्हें सेक्स क्रिया के लिए उत्तेजित करता है। पुरुषों में यह हॉर्मोन मुख्य रूप से अण्डकोषों में तथा स्त्रियों में गुर्दों के ऊपर स्थित अधिवृक्क ग्रंथियों में उत्पन्न होता है। इस हॉर्मोन की सक्रियता शरीर में एकाएक 13 से 14 सालों की उम्र में बढ़ने लगती है। जिसके परिणामस्वरूप स्त्री-पुरुष में परस्पर सेक्स संबंध बनाने की उत्सुकता भी बढ़ती जाती है। इसके विपरीत जैसे ही उनके खून में इस हॉर्मोन का स्तर कुछ विशेष कारणों से कम होने लगता है तो उनमें सेक्स के प्रति रुचि भी कम होने लगती है।


             टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन के शरीर में कम हो जाने के कई कारण हो सकते हैं जैसे- पीयूष ग्रंथि के विकार, अधिवृक्क ग्रंथि के विकार, अण्डकोष के विकार, विटामिन ए की कमी, शरीर में कुछ पोषक तत्वों की कमी, प्रजनन अंगों में चोट लग जाने तथा कुछ मानसिक कारण आदि। कुछ शोधों से यह भी पता चला शरीर में टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन की कमी उदासी भरा जीवन व्यतीत करने से भी हो सकते हैं। ऐसा जीवन व्यतीत करने से शरीर में धीरे-धीरे टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन की कमी होने लगती है और स्त्री-पुरुषों में सेक्स के प्रति अरुचि उत्पन्न होने लगती है।


  • थॉयराइड ग्रंथि के विकार-


             थॉयराइड ग्रंथि की सही क्रिया के कारण ही व्यक्ति की यौन शक्ति ठीक रह सकती है। यह गले में श्वासनली के इधर-उधर स्थित रहकर तीन प्रकार के हॉर्मोनों का निर्माण करती है। यह हॉर्मोन रक्त संचार में घुलकर शरीर के विभिन्न अंगों में पहुंचती है और विशेष क्रिया करके थॉयरोक्सिन नामक हॉर्मोन का निर्माण करती हैं। थॉयराइड ग्रंथि को ठीक प्रकार से क्रिया करने के लिए आयोडीन नामक खनिज की जरूरत पड़ती है।


             यह थॉयराइड ग्रंथि शरीर में मुख्य रूप से लगभग 20 वर्ष की आयु तक शरीर में विशेष भूमिका निभाती है। यदि बच्चों की थॉयराइड ग्रंथि विकारग्रस्त हो जाती है तो उनका शारीरिक विकास सामान्य रूप से नहीं हो पाता, उनका कद भी छोटा रह जाता है। कुछ वैज्ञानिक  खोजों के आधार पर यह पता चला है कि पुरुषों की थॉयराइड ग्रंथि किशोरावस्था में रोग ग्रस्त हो जाती है जिसके कारण से उनमें सेक्स की कमजोरी अधिक उत्पन्न होने लगती है, जबकि इसकी अधिकता के कारण उनमें सेक्स उत्तेजना अधिक होने लगती है। वैसे देखा जाए तो सेक्स क्षमता तथा प्रेम संबंधी भावना इस ग्रंथि पर ही निर्भर करती है। यदि किसी प्रकार से किसी मनुष्य में इस ग्रंथि की क्रिया खत्म हो जाएं तो ऐसे लोगों का दिमाग भी सुस्त और कमजोर हो जाएगा तथा उनकी याद्दाश्त भी कमजोर हो जाएगी। इसके अलावा उनका शारीरिक विकास भी पूरी तरह से नहीं हो पाएगा, शरीर में उत्साह तथा स्फूर्ति की कमी हो जाएगी। अतः बाल, नाखून और चमड़ी को स्वस्थ बनाये रखने के लिए थॉयराइड ग्रंथि मुख्य रूप से उपयोगी क्रिया करती है।


             थॉयराइड ग्रंथि की कमजोरी के कारण से शरीर में जगह-जगह पर अनावश्यक रूप से चर्बी उत्पन्न होने लगती है। इस ग्रंथि की असक्रियता के कारण शरीर में कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं जैसे- गले का फूलना, मैक्सोडिमा आदि। इस ग्रंथि की क्रिया में सुधार करने के लिए आयोडीन खनिज तथा प्रोटीन वाले पदार्थों का सेवन आवश्यकता के अनुसार करना चाहिए।


             थॉयराइड ग्रंथि के अलावा शरीर में और भी चार प्रकार की पैराथॉरायड ग्रंथियां होती हैं जो इस ग्रंथि के आस-पास ही स्थित रहती हैं। ये ग्रंथियां शरीर में कई प्रकार के खनिजों तथा कैल्शियम पर निर्भर होकर क्रिया करती हैं। शरीर में इन ग्रंथियों की कमी के कारण विकास तथा स्वास्थ्य की प्रक्रिया रुक जाती है। थॉयराइड ग्रंथि के बारे में खास बात यह है कि इसकी स्वयं की क्रिया के लिए कैल्शियम की अधिक मात्रा की आवश्यकता पड़ती है और शरीर में कैल्शियम की पूर्ति करने के लिए विटामिन डी की आवश्यकता पड़ती है।  


             पैरकथॉराइड ग्रंथि के हॉर्मोन फॉस्फोरस, कैल्शियम, पैराथोरमीन और विटामिन "डी" को हृदय के स्नायुओं तथा मांसपेशियों जैसे कोमल अंगों में जरूरत के अनुसार पहुंचाते हैं। खून में विटामिन डी, फॉस्फोरस, कैल्शियम पर्याप्त मात्रा में न हो तो पैरकथॉराइड ग्रंथि के हॉर्मोन उन्हें लम्बी हड्डियों के सिरों या दांतों से लाकर हृदय और मांसपेशियों में पहुंचा देते हैं जिससे उन अंगों को इन तत्वों की कमी नहीं हो पाती है।


             यदि कोई भी ऐसा पुरुष है जिसे अचानक से सेक्स के प्रति अरुचि उत्पन्न होने लगी हो तो तुरंत सेक्स विशेषज्ञ से इलाज कराना चाहिए ताकि उसे पता लग सके कि उनकी सेक्स उदासीनता तथा सेक्स कमजोरी का क्या कारण हैं?


मधुमेह (डायबिटीज) का सेक्स शक्ति पर प्रभाव-


             इस रोग का स्त्री-पुरुष दोनों के जीवन पर प्रभाव पड़ता है। जैसे-जैसे इस रोग का प्रभाव तेज होता जाता है, वैसे-वैसे स्त्री-पुरुष दोनों की सेक्स शक्ति कमजोर होती जाती है। जब यह रोग बहुत अधिक पुराना हो जाता है तब इसके कारण से स्त्री को बच्चे को जन्म देने में बाधा और यौन संबंधों के प्रति उदासीनता उत्पन्न होने लगती है तथा पुरुषों में वीर्यपात की समस्या पनपने लगती है। स्त्रियों को संभोग के दौरान तेज दर्द होने लगता है।  


मधुमेह रोग में यौन से संबंधित समस्याएं दो कारणों से उत्पन्न होती है जो निम्न हैं-  


  • लम्बे समय से मधुमेह रोग का बने रहना- इस रोग की स्थिति में खून में ग्लूकोज की अधिकता हो जाती है जिसके कारण शरीर और यौन अंगों में इंफेक्शन होने का खतरा बना रहता है।

  • रक्तवाहिनियों और स्नायु तंत्रिकाओं में विकार उत्पन्न होना- मधुमेह रोग के कारण शरीर के कई अंगों से संबंधित रक्तवाहिनियों तथा तंत्रिकाओं में कई प्रकार के रोग उत्पन्न होने का खतरा बढ़ जाता है।

             मधुमेह से संबंधित इन रोगों के कारण जननेन्द्रियों से संबंधित रक्तवाहिनियां संकरी और कठोर हो जाती हैं अर्थात उनमें काठिन्यीकरण (एथिरोस्कलोरोसिस) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसकी वजह से सेक्स संबंध बनाने के समय जननेन्द्रियों में अधिक मात्रा में रक्त (खून) का संचार नहीं हो पाता तथा उनमें पूर्ण रूप से उत्तेजना नहीं आ पाती। ठीक इसी प्रकार से स्वैच्छिक स्नायु तंत्रिकाओं में विकार उत्पन्न हो जाने के कारण से न तो वह जननेन्द्रियों से संबंधित पेशियों को सामान्य रूप से कड़ापन ला पाता है और न ही जननेन्द्रियों के तनाव व वीर्य स्खलन के कार्य को ही सही प्रकार से पूरा करा पाती है। मधुमेह रोग से पीड़ित रोगियों पर इसका प्रभाव मानसिक कारणों से उत्पन्न विकारों के रूप में दिखाई पड़ता है।


             मधुमेह रोग से पीड़ित रोगियों की बीमारी जब पुरानी हो जाती है तो शरीर सुस्त और कमजोर हो जाता है। इस स्थिति में शारीरिक कमजोरी, आलस्य, उत्साह में कमी तथा मन में उदासीपन उत्पन्न होने लगती है जिसके कारण सेक्स की इच्छा दबने लगती है। अगर इस स्थिति में व्यक्ति सेक्स क्रिया करना भी चाहे तो मानसिक दशा के कारण उसकी जननेन्द्रियों में कड़ापन नहीं आ पाता। इस स्थिति में स्त्रियों में भी सेक्स के प्रति कमजोरी उत्पन्न हो जाती है।


             मधुमेह का प्रकोप अधिक होने के कारण से स्नायु तंत्रिकाओं में विकार उत्पन्न हो जाते हैं जिसके कारण जननेन्द्रियों के मध्य संवेदन सूचनाओं का परस्पर सामंजस्य गड़बड़ा जाता है। जननेन्द्रियों के मध्य संवेदन सूचनाओं में इस तरह की गड़बड़ी होने के कारण जननेन्द्रियों से संबंधित मांसपेशियों पर तंत्रिकाओं का सामान्य नियंत्रण नहीं रह पाता है। इसी कारण से सेक्स उत्तेजना के समय जननेन्द्रियों में रक्त का संचार नहीं हो पाता। इस प्रकार की गड़बड़ियों के कारण से जननेन्द्रियों में आधा अधूरा तनाव ही आ पाता है या फिर जननेन्द्रियों में आया तनाव जल्दी ही ठंडा पड़ जाता है या उत्थान बिलकुल शांत हो जाता है।


             मधुमेह रोग से पीड़ित रोगियों में यौन संबंधित कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती हैं जिसके कारण से कुछ रोगियों के जननेन्द्रियों में सामान्य रूप से तनाव तो आ जाता है लेकिन स्नायु तंत्रिकाओं का जननेन्द्रियों पर नियंत्रण न रहने के कारण उसका वीर्य स्खलन हो जाता है और वह यौन सुख का आनन्द नहीं ले पाता। मधुमेह रोगियों में एक और समस्या भी अधिकतर देखी जाता है, वह यह है कि रोगी कभी भी सेक्स क्रिया का पूरी तरह से आनन्द नहीं ले पाता।


             अनियंत्रित मधुमेह के कारण स्नायु तंत्रिकाओं में कोई रोग उत्पन्न हो जाने के कारण से मस्तिष्क और जननेन्द्रिय के मध्य संवेदना सूचनाओं और प्रतिवर्त क्रियाओं का परस्पर सामंजस्य गड़बड़ा जाता है। इस प्रकार की गड़बड़ी के कारण से जननेन्द्रियों से संबंधित मासपेशियों पर तंत्रिकओं का नियंत्रण नहीं रह पाता है जिसके परिणामस्वरूप उत्तेजना के समय जननेन्द्रियों में पर्याप्त मात्रा में रक्त का संचार नहीं हो पाता है। इस कारण से सेक्स की कमजोरी उत्पन्न हो जाती है।


             अनियंत्रित मधुमेह के कारण मानसिक दशा खराब हो जाती है और ऐसी स्थिति में रोगी स्वभाव में क्रोधित और चिंतित करने वाला एवं शीघ्र बेचैनी वाला हो जाता है। ऐसे रोगी के मस्तिष्क में डोपामिन जैसे तंत्रिका सम्प्रेरक रसायनों का रिसाव अधिक होने लगता है। इस प्रकार के रसायन मनोविकार का कारण बनते हैं। इस प्रकार के रसायन के कारण से मस्तिष्क में स्थित जननेन्द्रियों से संबंधित तंत्रिकाओं पर नियंत्रण नहीं रह पाता है इसलिए उनमें नपुंसकता जैसी समस्या उत्पन्न होने लगती है। इस प्रकार के रोग से पीड़ित रोगी में सेक्स के प्रति रुचि नहीं रहती है और उनमें धीरे-धीरे कामशीलता जैसे लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं।


             अनियंत्रित मधुमेह से पीड़ित स्त्रियों में यौन के प्रति उदासीनता के लक्षण दिखाई पड़ते हैं। स्त्रियों में यौन उदासीनता होने का सबसे मुख्य कारण यौनांगों से संबंधित रोग होते हैं। इन रोगों की वजह से स्त्रियों में संभोग क्रिया आनन्ददायक नहीं हो पाती है। स्त्रियों में यौन उदासीनता को जन्म देने वाले कई कारण होते हैं जो इस प्रकार हैं- शरीर में उत्पन्न हुए स्नायु तंत्रिकाओं एवं रक्त धमनियों संबंधित विषमताएं उत्पन्न हो जाती हैं जिसके कारण स्त्रियों में यौन उत्तेजना शून्य के बराबर होती है।


             अनियंत्रित मधुमेह की स्थिति में स्त्रियों का मूत्र संस्थान तथा योनि में कई प्रकार के जीवाणु, फफूंदी तथा विषाणु का बार-बार संक्रमण होता है। इस रोग के कारण योनि में केन्डिडा फफूंदी का संक्रमण आमतौर पर देखा जाता है। इस फफूंदी के संक्रमण के कारण योनि से झागदार पीला लिए हुए स्राव होता है और योनि में असहनीय तेज खुजली होती है। कई बार तो यह भी देखा गया है कि फफूंदी के कारण उत्पन्न हुआ यह स्राव सफेद परत के रूप में योनि के अन्दर वृहद भगोष्ठ के आस-पास जम हो जाता है, जिससे योनि सूखी रहने लगती है। इस सूखेपन के कारण से यौन संबंध बनाये रखना कठिन हो जाता है और जिसके कारण सेक्स संबंध बनाने के प्रति अरुचि उत्पन्न होने लगती है।


मानसिक स्थिति का यौन अंगों पर प्रभाव-


             सेक्स क्रिया का सीधा संबंध स्त्री-पुरुष की मानसिक भावना और तेज सेक्स करने की इच्छा से होता है। यदि किसी प्रकार से मन में सेक्स की इच्छा समाप्त हो जाए या सेक्स को लेकर कुछ अप्राकृतिक भावनाएं बैठ गई हो तो इसका प्रभाव व्यक्ति की सेक्स क्रिया पर पड़ता है।


सेक्स के प्रति अरूचि उत्पन्न होने के लिए कुछ मानसिक भावना उत्तरदायी है जो निम्न हैं-  


  •  स्वाभिमान की कमी।  

  •  माता-पिता की अधिक निगरानी रखना।  

  • ऐसे धार्मिक शिक्षा जिसमें सेक्स बुरा बताया गया हो।  

  • सेक्स के प्रति मन में ऐसी भावना उत्पन्न होना जिससे ऐसा लगे कि मुझे कमजोरी उत्पन्न हो गई।  

  • सेक्स रोग होने का मन में डर लगे रहना।

  • स्त्री-पुरुष को अपने मन में एक-दूसरे के प्रति गलत भावना होना।

  • सेक्स के प्रति चिंता या आशंका अधिक होना।

  • अधिकतर कोई भी पुरुष सेक्स के प्रति उदास तब होता है जब वह नपुंसकता का शिकार हो जाता है।


पुरुषों में नपुंसकता होने के दो कारण होते हैं-


  • मानसिक भावना

  • शारीरिक कमजोरी

           वैसे देखा जाए तो सेक्स के प्रति उदासीपन उत्पन्न होने का सबसे प्रमुख कारण नपुंसकता ही होता है क्योंकि नपुंसक पुरुष उसको कहा जाता है जो अपने जननेन्द्रियों में कड़ापन लाने में असमर्थ होते हैं और वे संभोग क्रिया पूरा करने तक कड़ापन नहीं रख पाता है। इस कारण से उनकी स्त्रियां भी उनसे नाखुश रहती हैं।


           चिंता या आशंका के कारण भी बहुत से स्त्री-पुरुष यौन रोग के शिकार हो जाते हैं और जिसके कारण से सेक्स क्रिया को करने में सफलता नहीं मिलती। इस स्थिति में स्त्री-पुरुष दोनों में ही सेक्स के प्रति नाराजगी उत्पन्न हो जाती है।


           जो पुरुष अपने मन में लिंग की कमजोरी को लेकर चिंतित रहते हैं, उन्हें नपुंसकता रोग होने का डर लगा रहता है।


नपुंसकता होने का कारण-


  • अधिक शराब पीने से कमजोरी उत्पन्न होना।

  • नशीले पदार्थों का अधिक सेवन करना।

  • चिंता तथा तनाव से ग्रस्त रहना।

  • हस्थमैथुन करना।

  • मन में सेक्स को लेकर को घृणा रखना।

  • शारीरिक कमजोरी उत्पन्न होना।

  • मन में उदासीपन होने के कारण सेक्स उत्तेजना समाप्त हो जाना।

  • स्त्रियों के बारे में हर वक्त सोचते रहना।

  • आप्रकृतिक रूप से सेक्स क्रिया करना।

  • जननेन्द्रियों में चोट लग जाना।

  • अधिक उत्तेजक दवाईयों का सेवन करना।

  • उच्च रक्तचाप तथा अन्य शारीरिक रोग के कारण काम शक्ति पर प्रभाव-


           नपुंसकता शरीर में जननेन्द्रियों में चोट लग जाने के कारण से हो सकता है क्योंकि इस कारण से रक्तवाहिनियों में उच्च रक्तचाप की समस्या उत्पन्न हो जाती है तथा इसके कारण से मानसिक रोग भी उत्पन्न हो जाते हैं जो नपुंसक होने का सबसे प्रमुख कारण होता है। नपुंसकता को दूर करने के लिए उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है क्योंकि इसके नियंत्रित से नपुंसकता दूर होने लगती है। इस रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले मानसिक रूप से सेक्स के दुष्प्रभाव को खत्म करना जरूरी होता है।


जीवन शैली में बदलाव के कारण सेक्स पर प्रभाव होना -


           सेक्स संबंधों पर सबसे गहरा प्रभाव जीवन शैली में बदलाव के कारण होता है क्योंकि जीवन शैली में बदलाव के कारण सेक्स रुचि में कमी आ जाती है।


जीवन शैली में बदलाव के निम्न कारण हैं-


  • ठीक प्रकार से नींद न लेना या नींद कम आना या फिर बिल्कुल न आना।

  • अधिक व्यायाम करना।

  • भोजन में पोषक तत्वों की कमी होना।

  • कार्य का अधिक दबाव होना।

  • मानसिक तनाव अधिक होना।

  • जीवन में हर वक्त जल्दबाजी में लगे रहना।

  • सेक्स में रुचि न लेना।

           इस प्रकार के कारणों को जानकर यह कहा जा सकता है कि हमें अपने जीवन में ऐसे ही बदलाव करना चाहिए जो सेक्स क्रिया के लिए लाभदायक हो न कि नुक्सानदायक। पति-पत्नी को अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए अपनी जीवन शैली में उचित बदलाव ही करना चाहिए।


शारीरिक शक्ति तथा सेक्स शक्ति को बढ़ने के लिए जीवन शैली में बदलाव-


  • शारीरिक शक्ति तथा सेक्स शक्ति को बढ़ाने के लिए ठीक प्रकार से नींद लेना बहुत जरूरी है। इसलिए ठीक प्रकार से नींद लेना चाहिए।

  •  जितनी आवश्यकता हो उससे अधिक व्यायाम नहीं करना चाहिए तथा ठीक समय पर ही व्यायाम करना चाहिए।

  • अपने भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए तथा वह भोजन करना चाहिए जिसमें पोषक तत्वों की अधिकता हो।

  • यदि किसी प्रकार का मानसिक दबाव हो तो उसे तुरंत ही दूर करना चाहिए और इस दबाव को दूर करने के लिए अपने जीवन शैली में परिवर्तन करना चाहिए।

  • मानसिक तनावों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।  

  • जीवन में हर वक्त जल्दबाजी न करें।

  • सेक्स में रुचि लेने के लिए उचित कार्य करें।

भोजन में पोषक तत्वों का अभाव-


           पुरुषों में सेक्स क्रिया को ठीक प्रकार से चलाने के लिए टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन सबसे बड़ा उतरदायी है। यह पुरुष सेक्स हॉर्मोन टेस्टोस्टेरॉन रासायनिक दृष्टि से वसा का यौगिक होता है तथा इसके निमार्ण की प्रक्रिया लम्बी है। शरीर में वसा का निर्माण करने के लिए मुख्य रूप से विटामिन ए, विटामिन ई, जिंक, कैल्शियम, मैग्नीशियम और कुछ मात्रा में सोना जैसे तत्वों की जरूरत पड़ती है। वैसे देखा जाए तो नपुंसकता को दूर करने के लिए विटामिन ई सबसे अधिक लाभकारी होता है क्योंकि शरीर में इसकी कमी से पुरुषों में नपुंसकता और स्त्रियों में बांझपन रोग हो सकता है।


           कई वैज्ञानिक अध्ययनों से यह पता चल गया है कि विटामिन ई थॉयराइड ग्रंथि तथा पियूष ग्रंथि पर विशेष प्रभाव पड़ता है। यह शेष शरीर की तुलना में पियूष ग्रंथि में दो सौ गुना अधिक पाया जाता है। इसकी कमी होने से पियूष ग्रंथि में पैदा होने वाले ल्यूटेनीसिंग, प्रोजेस्ट्रोन तथा फोलिक स्टीम्यूलेटिंग जैसे हॉर्मोन के बनने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है। इस ग्रंथि में पाये जाने वाले हॉर्मोन पूरे शरीर की क्रिया पर नियंत्रण रखते हैं। इस ग्रंथि से संबंधित रोग होने के कारण स्त्रियों के प्रजनन अंग और पुरुषों में अधिवृक्क ग्रंथियां प्रभावित हो जाती हैं तथा इस कारण से वीर्य की मात्रा में भी कमी आ जाती है। इस ग्रंथि से संबंधित रोगों के कारण पुरुष में पौरुष शक्ति की कमी भी हो जाती है। स्त्रियों में पियूष ग्रंथि से संबंधित रोग होने के कारण से स्तनों का उभरना रुक जाता है और युवावस्था में भी उनमें उभार नहीं हो पाता है।


           विटामिन ई की कमी के कारण से शरीर में विटामिन ए की भी कमी होने लगती है। शरीर में विटामिन ए विटामिन ई की तुलना में और भी ज्यादा लाभकारी है क्योंकि विटामिन ए की कमी से सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव आंखों पर पड़ता है।


विटामिन ए की कमी का दुष्प्रभाव निम्न हैं-


  • आंखों से संबंधित कई प्रकार के रोग उत्पन्न होना जैसे- आंखों की रोशनी कम होना, दूर दृष्टि दोष होना, अल्प दृष्टि दोष होना, मोतियाबिंद तथा आंखों के आगे अंधेरा छाना आदि।

  • विटामिन ए की कमी के कारण से मस्तिष्क की सुनने वाली नाड़ी तंत्रिका पर बुरा प्रभाव पड़ता है जिसके कारण बहुत कम सुनाई पड़ता है और धीरे-धीरे बहरापन उत्पन्न होने लगता है।

  • विटामिन ए की कमी से मेनियर नामक रोग होने का सबसे ज्यादा खतरा बना रहता है क्योंकि इसका सबसे बुरा प्रभाव सुनने वाली स्नायु तंत्रिका पर पड़ता है। इस रोग के कारण व्यक्ति को उल्टी तथा चक्कर आने लगते हैं।

  • विटामिन ए की कमी के कारण से पियूष ग्रंथि को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है और इस कारण से स्त्री-पुरुष दोनों में जननेन्द्रिय के कार्य को नियंत्रित कर पाना मुश्किल हो जाता है। इस अवस्था में स्त्रियों के डिम्बाशय और पुरुषों के अण्डकोष कमजोर होकर सिकुड़ जाते हैं।

विटामिनों की उपयोगिता -


पीयूष ग्रंथि को ठीक प्रकार से कार्य करने के लिए विटामिन ई तथा विटामिन ए की बहुत अधिक जरूरत पड़ती है तथा इसके अलावा एमीनो एसि़ड युक्त प्रोटीन, विटामिन बी और मैग्नीज खनिज वाले आहार की जरूरत पड़ती है।

  • सेक्स की उत्तेजना को तेज करने के लिए विटामिन बी-2 तथा जननेन्द्रियों को अधिक देर तक सक्रिय रखने के लिए भी इस विटामिन की आवश्यकता पड़ती है।

  • शरीर की रक्त धमनियों को कठोर तथा सिकुड़ने से रोकने के लिए विटामिन-3 की आवश्यकता पड़ती है। शरीर में इसकी कमी से संभोग क्रिया करते समय यौनांगों में रक्त का संचार बना नहीं रहता है जिसके कारण लिंग में उत्तेजना नहीं रहती है। इसलिए संभोग क्रिया का ठीक प्रकार से आनन्द लेने के लिए लिंग में उत्तेजना होना आवश्यक है। अतः विटामिन-3 की मात्रा का संतुलन शरीर में होना आवश्यक है।

  • सेक्स की इच्छा को बनाये रखने के लिए मैग्नीज और जिंक नामक खनिज तत्वों का शरीर में संतुलन होना जरूरी है। पुरुषों के अण्डकोषों में टेस्टोस्टेरोन तथा शुक्राणुओं के निर्माण में मुख्य क्रिया निभाते हैं।

मोटापे का सेक्स शक्ति पर प्रभाव-


           मोटापे के कारण शरीर पर अधिक मात्रा में चर्बी जम जाती है। बहुत से अध्ययनों से पता चला है कि मोटापे का सेक्स क्रिया पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। ऐसे लोगों के शरीर पर जमी जर्बी की अतिरिक्त परत स्नायु तंतुओं, अंत स्रावी ग्रंथियों तथा रक्त वाहिनियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालकर पुरुषों के लिंग में कड़ापन होने में दिक्कत पैदा करती है। स्त्रियों में मासिकधर्म की अनियमिता, बांझपन तथा प्रदर संबंधित समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। मोटे लोगों में सेक्स के प्रति लगाव भी धीरे-धीरे कम होता जाता है। मोटापे के कारण संभोग के प्रति अरुचि उत्पन्न होने लगती है।


           मोटापे की वजह से मनुष्यों की रक्त धमनियां कठोर और संकरी हो जाती हैं, जिसके कारण से उनमें रक्त का बहाव भी धीरे-धीरे कम हो जाता है। ऐसे लोगों के हृदय को सामान्य काम-काज के समय भी अधिक कार्य करना पड़ता है। मोटापे के कारण फेफड़े तथा हृदय पर कार्य का अधिक बोझ पड़ता है और सेक्स क्रिया करने में भी दिक्कत आती है। यदि मोटे व्यक्ति का रक्तसंचार सामान्य रूप से बना रहता है तो उनके जननांग ठीक से सक्रिय हो जाते हैं नहीं तो उनके सामने मुश्किल आ जाती है। मोटे व्यक्तियों के पेट बाहर निकले होते हैं जिसके कारण से उन्हें सेक्स क्रिया करने में अधिक परेशानी होती है क्योंकि सेक्स क्रिया करते समय उनके तोंद के कारण से शरीर का ठीक प्रकार से मिलन भी नहीं हो पाता है।


           मोटी स्त्रियों को गर्भावस्था के समय में कई प्रकार की समस्या उत्पन्न होती है क्योंकि मोटापे के कारण गर्भवती स्त्री को प्रसव के समय अपने शरीर को सही दिशा में रखने में बहुत अधिक दिक्कत उत्पन्न होती है। ऐसी स्त्रियों को अधिक स्राव होने की समस्या भी अधिक होती है। इस अवस्था में कई बार तो प्रसव होने में अधिक दिक्कत आने के कारण शल्य चिकित्सा की भी जरूरत पड़ जाती है।


यौनजनित रोगों का सेक्स पर प्रभाव -


           जननांगों से संबंधित बहुत से ऐसे रोग भी होते हैं जो संभोग क्रिया करते समय पुरुष से स्त्री को या फिर स्त्री से पुरुष रोग होने का खतरा बना रहता है। ऐसे रोगों से पीड़ित व्यक्ति अपने से सेक्स संबंध बनाने वाले व्यक्तियों को रोग लगा देते हैं। ये रोग संक्रमणजन्य होते हैं जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलते रहते हैं। इस प्रकार के रोगों का कोई भी शारीरिक या मानसिक कारण नहीं होता है, बल्कि इन रोगों के होने का सबसे प्रमुख कारण कवक (फंगस), विषाणु (वायरस), जीवाणु (बैक्टीरिया) तथा दूसरे किस्म के सूक्ष्म जीवाणुओं का प्रकोप हो जाता है। ये रोगों को पैदा करने वाले जीवाणु लोगों के यौनांगों की आंतरिक श्लेष्मिक झिल्ली में पहुंचकर अन्य प्रकार के जीवाणु उत्पन्न करने लगते हैं और अपनी सक्रियता के कारण श्लेष्मक झिल्ली को नष्ट करने लगते हैं। इन रोगों के कारण सेक्स संबंधों को बनाने में बहुत अधिक दिक्कत होने लगती है।


संक्रामक जीवाणुओं, बैक्टीरिया, कवक तथा सूक्ष्म जीवाणुओं के कारण निम्न संक्रामक रोग हो सकते हैं-


  • हीमोफिलस वेजिनाइटिस

  • एड्स का संक्रमण

  • हर्पीज वायरस का प्रकोप

  • लिम्फोग्रेनूलोमा वेनेरम

  • केन्डिडायसिस (Candiasis)

  • फंफूदीजन्य ट्राइकोमोनियल (Trichomonail)

  • शेनक्रोयड़ (Chancriod)

  • सोजाक (गोनोरिया-Gonorrhoeae)

  • उपदंश (सिफलिस-Syphillis)

           इस प्रकार के संक्रामक रोगों के कारण से भारत में लगभग आधे से ज्यादा लोग पीड़ित है। इन रोगों से पीड़ित बहुत से ऐसे रोगी भी हैं जिन्हें ऐसे रोगों के बारे में बिल्कुल भी पता नहीं होता है क्योंकि वे इसके बारे में अनजान होते हैं। ये लोग अपने अनजानेपन के कारण दूसरे लोगों को भी इन रोगों का शिकार कर देते हैं।


सेक्स से संबंधित संक्रामक रोगों का विस्तार पूर्वक वर्णन इस प्रकार हैं-


उपदंश (सिफलिस- Syphilis) – इस रोग के जीवाणु संक्रमित व्यक्ति के वीर्य, योनि के स्राव, रक्त, लसिका स्राव तथा थूक में मौजूद होते हैं। इस प्रकार के जीवाणु जब शरीर में प्रवेश कर जाते हैं तो ये जननांगों तथा कभी-कभी मुख गुहा की श्लेष्मिक झिल्ली में जमा होने लगते हैं। इन रोगों के संक्रमण होते ही कुछ समय के बाद इन जीवाणुओं के कारण से पुरुषों की जनेनन्द्रियों के अगले भाग में अर्थात लिंग के अगले भाग में अथ्वा उसके आस-पास के भाग की त्वचा के अन्दर तथा स्त्रियों की योनि के बाहरी भाग कठोर और उनमें फुंसी तथा दाना बन जाता है और तेज दर्द भी होता है। यह फुंसी या दाना जब किसी अन्य त्वचा या किसी चीज से स्पर्श करता है तो और भी तेज दर्द होता है। लेकिन जब यह फोड़ा फुट जाता है तो घाव बन जाता है और तब उसमें से पीब बहने लगती है। घाव बनने के एक सप्ताह बाद दोनों जाघों के जोड़ों पर दर्द युक्त गिल्टियां बन जाती हैं। ये गिल्टियां बाद में बड़े घाव का रूप धारण कर लेती हैं।


           इस रोग के संक्रमण के 60 से 100 दिनों के बाद बहुत से रोगियों की त्वचा के ऊपर लाल तांबे रंग के छोटे-छोटे दाने की तरह चकत्ते निकल जाते हैं। इस कारण रोगियों की जीभ, होंठ, गाल तथा तलुओं पर भी छाले उभर आते हैं। उनके गुदाद्वार और होठों के किनारों पर भी मस्सों की तरह दाने बन जाते हैं।


           इस अवस्था में रोगी के शरीर में कमजोरी, खून की कमी, हड्डियों में दर्द तथा बुखार हो जाता है और इस कारण रोगी के मन में सेक्स करने की इच्छा कम होने लगती है।


गोनेरिया (सूजाक) –


           जब यह रोग पुरुषों को हो जाता है तो उनके मूत्रमार्ग अर्थात जननेन्द्रियों पर एकाएक सूजन आ जाती है जिसके कारण रोगी को मूत्र त्याग करते समय अधिक परेशानी और जलन होने लगती है। इस रोग के कारण जननेन्द्रियां लालिमा (जननेन्द्रियों का लाल हो जाना) युक्त हो जाती हैं। रोग होने के 3 से 5 दिनों के बाद रोगी को और भी तेज दर्द होना शुरू हो जाता है। मूत्र त्याग करने पर पीब जैसा पीला स्राव होने लगता है। ऐसे रोगी के इन्द्रियों को दबाकर देखने पर मूत्र मार्ग से पीब निकलता है। इस रोग के कारण रोगी को बुखार, जोड़ों में दर्द, कब्ज तथा कमर में भारीपन महसूस होने लगता है। जब रोग की अवस्था गंभीर हो जाती है तो रोगी के मूत्रमार्ग में रुकावट होने लगती है। गोनेरिया रोग में रात के समय लिंग में भारीपन महसूस होने लगता है।


           गोनेरिया रोग से पीड़ित स्त्रियों की योनि के अन्दर डिम्बाशय, डिम्बनलिका (फेलोपियन ट्यूब), गर्भाशय तथा उदरावरण की झिल्ली तक सूजन आ जाती है और तेज दर्द होने लगता है। इस रोग की अवस्था में स्त्रियों को बार-बार दर्द होने के साथ ही मूत्र त्याग करने की इच्छा होती रहती है। ऐसी स्त्रियों को थोड़े समय के लिये भी मूत्र करने की इच्छा को रोक पाना मुश्किल हो जाता है। इस अवस्था में मूत्र के साथ पीला स्राव भी आता रहता है।


शेनक्रोयड –


            यह रोग सिफलिस के समान एक संक्रामक रोग है। इस रोग के होने को कारण हेमोफिलिस डूसेरी नामक जीवाणु का संक्रमण होना है। ये जीवाणु स्त्रियों के शरीर में पनपते हैं लेकिन जब ये पुरुषों के शरीर में पहुंच जाते हैं तो पुरुषों पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं। ये जीवाणु पुरुषों के शरीर में स्त्रियों के साथ संभोग क्रिया करने के दौरान पहुंचते हैं।


           जब पुरुष हेमोफिलिस डूसेरी जीवाणु से पीड़ित स्त्री के साथ संभोग करता है तो उसके 3 से 4 दिनों के बाद शेनक्रोयड रोग के लक्षण पुरुषों में दिखाई पड़ने लगते हैं। इस रोग के कारण पुरुषों के जननेन्द्रिय के मुख पर घाव बन जाता है और इसके कारण से हल्का-हल्का दर्द होता रहता है। कुछ दिनों बाद इन घावों से खून मिला पीब बहने लगता है। इसके कारण जांघों के जोड़ों की लसिका ग्रंथियां सूज जाती हैं। जब यह रोग अधिक पुराना हो जाता है तो शरीर पर लाल-लाल चकत्ते से निकलने लगते हैं और उन स्थानों पर घाव बनने शुरू हो जाते हैं। इसके कारण शरीर से एक विशेष प्रकार की गंध भी आने लगती है। घाव से खून बहता है तथा शरीर से बदबू आती रहती है जिसके कारण स्त्री-पुरुष दोनों के ही आर्कषण कम हो जाते हैं और संभोग क्रिया करने में परेशानी होने लगती है।


हर्पीज –


           यह एक प्रकार का छुआ-छूत से फैलने वाला संक्रमित रोग है जो यौन संबंधित क्रिया करने पर एक से दूसरे को फैलता है। आज इस रोग का प्रकोप बहुत अधिक देखा जा सकता है।


हर्पीज रोग दो तरह के विषाणु के प्रकोप के कारण होता है-


1 - एच.एस.वी.-1 (H.S.V.-1)

2 - एच.एस.वी.-2 (H.S.V.-2)

           इस रोग के कारणों तथा लक्षणों को जानने के लिए आज कई सर्वेक्षण किये जा चुके हैं, जिससे हमें यह पाता चल सका है कि इसके कारण और लक्षण क्या-क्या होते हैं।


हर्पीज रोग से पीड़ित स्त्री-पुरुषों में कई प्रकार के लक्षण दिखाई पड़ते हैं जो निम्न हैं-


1 - इस रोग से पीड़ित स्त्री-पुरुष दोनों के मूत्रमार्ग में तेज जलन होती है। कई बार तो दर्द और जलन ऐसा लगता है कि ये ततैया या मधुमक्खियों के डंक मारने के समान होता है।

2 - हर्पीज रोग से पीड़ित पुरुषों के लिंग, इसके मुख पर छाले या घाव हो जाते हैं।

3 - हर्पीज रोग से पीड़ित स्त्रियों की योनि द्वार और गर्भाशय ग्रीवा पर घाव हो जाते हैं।

4 - इस रोग के कारण जाघों के जोड़ों की लसिका ग्रंथियां भी संक्रमित हो जाती है जिसके कारण इस स्थान पर गिल्टियां बनने लगती हैं।

5 - हर्पीज रोग से पीड़ित व्यक्तियों के जननेन्द्रियों के ऊपर की त्वचा पर छोटे-छोटे दाने व घाव बन जाते हैं जिसमें तेज जलन होती है।

6 - इस रोग के कारण स्त्री-पुरुष दोनों को संभोग क्रिया के समय तेज दर्द होता है जिसको सहन कर पाना भी मुश्किल हो जाता है।

7 - हर्पीज रोग से पीड़ित स्त्री-पुरुष दोनों को संभोग क्रिया में पूर्ण रूप से आनन्द नहीं मिल पाता है तथा सेक्स के प्रति धीरे-धीरे रुचि भी खत्म होने लगती है।

एड्स (एक्वायर्ड इम्यून डिफिशिएंसी सिण्ड्रोम) –


           आज के समय में इस रोग का प्रकोप बहुत अधिक फैलता ही जा रहा है और इस संसार में लगभग 4 करोड़ लोग एड्रस से पीड़ित हो चुके हैं। यह एक बहुत अधिक खतरनाक रोग है जो लगभग तीन दशक से भी कम समय में पूरे संसार में अपना कब्जा जमा चुका है। आज लाखों लोग प्रति मिनट इस रोग का शिकार हो रहे हैं। दुःख की बात तो यह है कि इस रोग का सफल उपचार अभी तक ढू़ढ पाना संभव नहीं हो सका है।


           एड्स एक प्रकार के विषाणु संक्रमित रोग हैं जिसके लक्षण धीरे-धीरे प्रकट होते हैं। जब इस रोग के लक्षण प्रकट होने लगते हैं तो रोगी व्यक्ति को मृत्यु के मुंह में जाने से कोई भी नहीं रोक सकता है।


           एड्स रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को अधिकतर तब होता है जब इस रोग से पीड़ित व्यक्ति के साथ कोई दूसरा व्यक्ति सेक्स क्रिया करता है। यह रोग कुछ इस प्रकार के कारणों से भी फैल सकता है- एड्स से पी़ड़ित व्यक्ति का दूषित खून अन्य व्यक्ति को चढ़ाये जाना, बिना किसी सावधानी से सेक्स क्रिया करना तथा इस रोग के रोगी पर इस्तेमाल किये गये इंजेक्शन का उपयोग करना आदि। .


एड्स रोग जब किसी को हो जाता है तो रोगी में कई प्रकार के लक्षण देखने को मिलते हैं जो निम्न हैं-


 1 - इस रोग से पीड़ित रोगी के शरीर के कई भागों की लसिका ग्रंथियों में सूजन आ जाती है।

2 - इस रोग के कारण रोगियों के कांख के नीचे और कनपटियों के नीचे में अधिकतर सूजन देखने को मिलती है।

3 - पीड़ित रोगी में लगातार बुखार बना रहता है।

4 - रात के समय मे रोगी के शरीर से अधिक पसीना आता है तथा दस्त भी आने लगते हैं।

5 - रोगी के शरीर का वजन गिरता चला जाता है।

6 - मुंह के अन्दर के तालू में सफेद चकत्ते पड़ जाते हैं।

7 - रोगी व्यक्ति की भूख भी धीरे-धीरे कम होने लगती है।

8 - शरीर में अधिक कमजोरी महसूस होने लगती है तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता भी खत्म हो जाती है।

9 - एड्स के कारण अन्य संक्रामक रोग होने का खतरा भी बढ़ जाता है।रो

10 - रोगी के शरीर में जो रोग के लक्षण दिखाई पड़ते हैं वे किसी भी प्रकार के उपचार से ठीक नहीं होते हैं।

11 - जब यह रोग गंभीर अवस्था में होता है तो रोगी को सेक्स क्रिया में बहुत अधिक परेशानी होने लगती है।

त्वचारोग का काम-शक्ति पर प्रभाव –


           कई प्रकार के त्वचा से संबंधित रोग जैसे- कुष्ठ, फोड़े-फुंसियां, घाव, ल्यूकोडर्मा तथा लेप्रोसी आदि ऐसे रोग हैं जो प्रजनन अंगों पर बुरा प्रभाव डालते हैं। इन रोगों के कारण स्त्री-पुरुष दोनों को संभोग क्रिया के प्रति मानसिक दुष्प्रभाव पनपने लगता है जिसके कारण से स्त्री-पुरुष दोनों मन से एक-दूसरे के साथ सेक्स संबंध स्थापित नहीं कर पाते हैं।


संक्रामक रोग का काम शक्ति पर प्रभाव-


           कई प्रकार के ऐसे रोग भी है जो काम शक्ति  को कमजोर बनाते हैं। ये संक्रामक रोग कुछ इस प्रकार हैं- पेचिश, टायफाइड, क्षय (टी.बी.)  आदि। ये रोग व्यक्तियों के शरीर में इतनी अधिक कमजोरी ला देते हैं कि वह चाहकर भी ठीक प्रकार से सेक्स नहीं कर पाता, हालांकि मानसिक रूप से वह सेक्स क्रिया के प्रति तेज इच्छा रखता है। आज कुछ अध्ययनों से पता चला है कि कुछ क्षय (टी.बी.) रोगियों के मन में सेक्स क्रिया करने की अधिक इच्छा होती है। कुछ ऐसे रोगी भी जिन्हें अपनी पत्नी से सेक्स का पूरा आनन्द न मिल पाये तो वह या तो हस्थमैथुन का सहारा लेता है या फिर बलात्कार जैसे अपराध करने पर मजबूर हो जाता है।


Post a Comment

0 Comments