> पुरुषों के कुछ यौन रोग | Purushon ke kuch yon rog

पुरुषों के कुछ यौन रोग | Purushon ke kuch yon rog

 पुरुषों के कुछ यौन रोग | Purushon ke kuch yon rog

सेक्स से संबन्धित रोग :


           आज के आधुनिक युग में मनुष्य ने ऐसे-ऐसे आविष्कर किये हैं जिनके बारे में कभी-कभी सोचना भी एक सपने जैसा लगता था। वह चांद तक जा पहुंचा है। लेकिन फिर भी वह एक चीज में अभी तक पिछड़ा हुआ है। वह मनुष्य जिसने इतनी बड़ी-बड़ी नामुनकिन चीजों को कर दिखाया वह मनुष्य रात को अपनी पत्नी के सामने संभोग करते समय तुरंत स्खलित हो जाता है और पत्नी पूरी रात प्यासी सी तड़पती रहती है। इसे क्या कहा जाए कि सदियों से एक शीघ्रपतन जैसे मामूली रोग से व्यक्ति अब भी लड़ने में असमर्थ है।

पुरुषों के कुछ यौन रोग | Purushon ke kuch yon rog
योनरोग


           वैसे तो शीघ्रपतन का रोग काफी पुराने समय से मनुष्य को परेशान कर रहा है लेकिन भारत में कुछ सालों से यह रोग बहुत ज्यादा संख्या में पुरुषों को अपनी चपेट में ले रहा है। आज हमारे देश में आधे से ज्यादा पुरुष इस रोग से ग्रस्त हैं। इस रोग के कारण आज बहुत से परिवार टूटने की कगार पर हैं।



               अब सवाल यह उठता है कि शीघ्रपतन किस अवस्था को कहना ठीक रहता है। अब तक जो कुछ शीघ्रपतन के बारे में बताया गया है उनके अनुसार स्खलन को मिनट और सेकेंडों में बताया गया है लेकिन संभोग करने की क्रिया को इनमें नहीं मापा जा सकता है। संभोग करते समय की गिनती करना एक बहुत ही मुश्किल काम है। बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो संभोग करने से पहले की गई पाक-क्रीड़ा को संभोग क्रिया में गिनकर बताते हैं। जिससे उसे यह लगता है कि मुझे शीघ्रपतन का रोग नहीं है। लेकिन जब उससे यह पूछा जाता है कि कितने स्ट्रोकों के बाद उनका वीर्य स्खलन होता है तो उनकी सच्चाई सामने आती है। इसलिए स्ट्रोकों के हिसाब से ही यह पता चलता है कि उसे शीघ्रपतन का रोग है या नहीं। ऐसा करने से किसी तरह के भ्रम की आशंका भी नहीं रहती है। एक शोध से यह पता चलता है कि एक स्त्री को संभोग क्रिया की चरम सीमा पर ले जाने के लिए कम से कम 60 से 100 स्ट्रोकों की जरूरत पड़ती है। इसलिए अगर कोई लड़का इतने स्ट्रोक लगाकर लड़की को चरम तक नहीं पहुंचा सकता तो वह शीघ्रपतन के रोग से ग्रस्त हो सकता है। इसके अलावा पुरुष का वीर्य स्खलन भी बहुत सारे स्ट्रोकों के साथ ही होना चाहिए क्योंकि इन्हीं स्ट्रोकों के कारण पुरुष को संभोग क्रिया के दौरान चरम आनंद की प्राप्ति होती है।


               शीघ्रपतन रोग के बारे में एक बात जानना और भी जरूरी है कि शीघ्रपतन नपुंसकता से पूर्व के लक्षण को माना जाता है। अगर इसकी समय पर चिकित्सा नहीं कराई जाती तो इससे ग्रस्त व्यक्ति एक दिन पूरा ही नपुंसक बन जाता है।


    विकृति विज्ञान- 


               शीघ्रपतन का रोग होने पर सबसे पहले यह बात जाननी जरूरी है कि आखिर इस रोग के होने के कारण क्या है? हर व्यक्ति के मस्तिष्क के एक भाग सेरिब्रम में 3 काम केंद्र होते हैं जो प्राक-क्रीड़ा से लेकर स्खलन होने तक अपनी-अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाते हैं-


    1 - उत्थान केंद्र (Erection Centre)

    2 - स्तंभन केंद्र (Retention Centre)

    3 - स्खलन केंद्र (Ejaculation Centre)

    1 - उत्थान केंद्र (Erection Centre)-

    जब भी कोई युवक किसी लड़की को छूता है या उत्तेजित किताब आदि पढ़ता है तो उसके मन में सबसे पहले काम-उत्तेजना पैदा हो जाती है। काम-उत्तेजना के तेज होते ही मस्तिष्क से उत्थान केंद्र को लिंग के स्पंजी टिशू में रक्त भरने के आवेग भेज दिए जाते हैं जिसमें लिंग में रक्त भरना शुरू हो जाता है और वह देखते ही देखते उत्थित (उत्तेजित) अवस्था में आ जाता है।

               इसी प्रकार शुक्राशय, प्रोस्टेट ग्रंथि और कूपर ग्रंथि भी एक खास प्रकार से स्पंदित होने लगते हैं और यहां से उत्तेजित आवेग निकलने लगते हैं और पुरुष उत्तेजित होकर संभोग क्रिया शुरू करता है। उत्तेजित लिंग के घर्षण से लिंग मुंड से आनंदात्मक आवेग निकलने शुरू होते हैं। यह सब आवेग पहले स्तंभन केंद्र को जाते हैं जहां से यह उत्थान केंद्र को भेज दिये जाते हैं। पुरुष आनंद के अथाह सागर में डूब जाता है और संभोग क्रिया लगातार चलती रहती है।


    संभोग के समय लगने वाले समय के बारे में कुछ जानकारी- 


    स्तंभन केंद्र की ताकत- 


               पुरुष जब सामान्य अवस्था में होता है उस समय आवेग स्तंभन केंद्र में आते हैं और फिर वहां से उत्थान (उत्तेजना) केंद्र की ओर भेज दिये जाते हैं। इससे स्तंभन और उत्तेजना दोनों ही एक साथ बने रहते हैं। संभोग करते समय स्त्री की योनि में पूरी तरह स्ट्रोक लगने के बाद ऐसी अवस्था आती है जब स्तंभन केंद्र और ज्यादा स्ट्रोकों को सहन नहीं कर पाता और पुरुष स्खलन की ओर हो जाता है।


               अगर शीघ्रपतन के रोग के कारण स्तंभन केंद्र कमजोर पड़ जाता है तो यह सामान्य स्ट्रोकों को बर्दाश्त नहीं कर पाता है और साधारण से कम समय में ही स्खलन हो जाता है। इसी अवस्था को ही शीघ्रपतन कहते हैं।


             इस प्रकार से देखा जाता है कि स्तंभन केंद्र की शक्ति के ऊपर संभोग करने में लगने वाला समय निर्धारित होता है और यदि यह कमजोर हो जाता है तो इससे संभोग क्रिया का समय कम या ज्यादा लगता है।


    स्ट्रोकों की तेजी- 


               अगर कोई पुरुष बहुत ज्यादा काम-उत्तेजित होता है तो स्तंभन केंद्र में पहुंचने वाले आवेग भी बहुत तेज होंगे। लेकिन यह केंद्र अगर पहले से ही कमजोर हो तो वह इन तेज स्ट्रोकों को बर्दाश्त नहीं कर पाता और तुरंत ही स्खलन की अवस्था में पहुंच जाता है। काफी बार यह देखने या सुनने में आता है अगर किसी स्त्री के साथ बहुत दिन छोड़कर संभोग किया जाए तो पुरुष जल्दी ही स्खलित हो जाता है तो  इसका कारण भी संभोग के समय स्ट्रोकों की तेजी है। बहुत से पुरुष संभोग करते समय जल्दी स्खलित होने का कारण अपने शरीर में बढ़ी हुई उत्तेजना को समझ लेते हैं। लेकिन असल में ऐसे पुरुषों का स्तंभन केंद्र सामान्य अवस्था में नहीं होता है। वह धीरे-धीरे लगने वाले स्ट्रोकों को तो बर्दाश्त कर लेता है लेकिन ज्यादा तेज स्ट्रोक उससे बर्दाश्त नहीं होते। इसी वजह से बहुत दिनों के बाद संभोग करते समय जल्द ही स्खलित होने का कारण यही होता है कि पुरुष का स्तंभन केंद्र उतना ताकतवर नहीं होता जितना कि उसे होना चाहिए। जिन पुरुषों का स्तंभन केंद्र ज्यादा ताकतवर होता है वह तेज स्ट्रोकों को भी बर्दाश्त कर लेता है और संभोग करते समय सामान्य समय ही लगता है।


    स्ट्रोकों की गति- 


               कभी-कभी शीघ्रपतन रोग के कारण प्रोस्टेट ग्रंथि, कूपर ग्रंथि, लिगं मुंड आदि इतने ज्यादा संवेदनशील हो जाते हैं कि वह बहुत तेजी के साथ स्तंभन केंद्र में स्ट्रोक लगाते है और जैसे ही यह स्ट्रोक पूरे होते हैं तो पुरुष स्खलित हो जाता है।


               शीघ्रपतन के रोगी की चिकित्सा असल में रोगी के असली रोग को जानने पर निर्भर करता है। कोई भी योग्य चिकित्सक अपनी चिकित्सा के आधार पर पता लगा सकता है कि रोग किस स्थान पर है। कभी-कभी रोग स्तंभन केंद्र और लिंग मुंड आदि दोनों स्थानों पर होती है। ऐसी स्थिति में ऐसी औषधियों का सेवन करना चाहिए जो स्तंभन केंद्र को शक्तिशाली बना सके और साथ ही लिंग मुंड आदि स्थानों की सूजन को समाप्त करके उनकी संवेदनशीलता को दूर कर सके।


    शीघ्रपतन का कारण- 


    हस्तमैथुन-


               हस्तमैथुन को शीघ्रपतन रोग होने का सबसे मुख्य कारण माना जाता है क्योंकि हस्तमैथुन करने से स्नायु संस्थान कमजोर हो जाता है और पुरुष संभोग क्रिया के समय वीर्य स्खलन को नियंत्रण करने में असफल हो जाता है।


    ज्यादा संभोग करना-


               बहुत से पुरुष संभोग करने के लिए बार-बार मौका तलाशते रहते हैं। वह रात में भी अपने लिंग के उत्तेजित होते ही स्त्री के साथ संभोग करने लग जाते हैं और दिन में भी मौका मिलते ही संभोग करने लगते हैं। यह स्थिति कुछ समय तक तो ठीक रहती है लेकिन उसके बाद ज्यादा संभोग करने से लिंग मुंड बहुत ज्यादा संवेदनशील हो जाता है और पुरुष शीघ्रपतन का रोगी हो जाता है। यह इस कारण से होता है क्योंकि शरीर की दूसरी मांसपेशियों की तरह ही लिंग की मांसपेशियां, स्तंभन केंद्र और उत्थान केंद्र और काम-ग्रंथियां एक हद तक ही काम करती हैं। अगर इनसे जरूरत से ज्यादा काम लिया जाता है तो इनमें थकान पैदा हो जाती है। जैसे कोई व्यक्ति अगर लगातार 30-35 किलोमीटर तक चलता रहता है तो उसके पैरों की मांसपेशियां थककर अपना काम करना बंद कर देती हैं और आराम मांगने लगती हैं। मनुष्य का हृदय उसके शरीर का एक ऐसा अंग है जो हर समय चलता रहता है लेकिन एक शोध के आधार पर यह ज्ञात हो चुका है कि बीच-बीच में इसकी मांसपेशियां भी आराम कर लेती हैं। कुछ इसी प्रकार की थकान मनुष्य के सेक्स केंद्र और लिंग की मांसपेशियों में भी होती है। अगर इनको आराम नहीं दिया जाता तो एक दिन उनमें भी थकान के लक्षण पैदा हो जाते हैं। यह लक्षण शीघ्रपतन और नपुंसकता रोग के रूप में प्रकट होते हैं। इसलिए पुरुषों को कभी भी अपनी यौन अंगों से जरूरत से ज्यादा काम नहीं लेना चाहिए।


               जिन पुरुषों को बार-बार संभोग करने की आदत होती है उनको शीघ्रपतन और लिंग में उत्तेजना कम होने का रोग तो होता ही है साथ ही में वह अपनी पत्नी को भी बार-बार संभोग करने की बुरी आदत डाल देते हैं। लेकिन ऐसे पुरुष एक बात भूल जाते हैं कि अभी तो वह जोश में जो कर रहे हैं वह सही है लेकिन जब एक उम्र के बाद उनके शरीर में या यौन अंगों में इतनी शक्ति नहीं रहेगी तो वह किस तरह से अपनी इस आदत को बनाए रख सकेंगे। पत्नी को तो यह कुछ नहीं पता होगा कि ज्यादा उम्र होने के कारण मेरे पति में अब उतनी ताकत नहीं रही जितनी कि पहले थी। वह तो उस समय भी पति से पहले की ही तरह संभोग करना चाहेगी। लेकिन अगर पति उस समय अपनी पत्नी से संभोग करने में कटने लगता है तो पत्नी को ऐसा महसूस हो सकता है कि शायद अब मै पहले जितनी कामुक या आकर्षक नहीं रही और वह मन में किसी तरह की कुंठा आदि भर सकती है। कुछ पत्नियां पति से इस बदले हुए व्यवहार का गलत ही मतलब ले लेती है। उनको लगता है कि शायद मेरे पति किसी और लड़की के चक्कर में पड़ रहे हैं जिसके कारण मुझमें उनकी रुचि अब समाप्त होती जा रही है। ऐसी ही और भी बहुत सी समस्याएं होती हैं जो पति-पत्नी की बसी-बसाई गृहस्थी में बिखराव पैदा कर सकती हैं। इसलिए हर पुरुष को चाहिए कि संभोग को समय के अनुसार ही करे। वैसे भी कहा जाता है कि अति तो हर चीज की बुरी होती है।


    स्वप्नदोष और धातु निकलना-


               शीघ्रपतन या नपुंसकता रोग का तीसरा कारण स्वप्नदोष या धातु का निकलना होता है। अगर किसी पुरुष को काफी समय से स्वप्नदोष (सोते समय वीर्य का निकल जाना) या धातुस्राव जैसी परेशानी होती है, लिंग और लिंग मुंड में पहले से ही मौजूद क्षोभ और ज्यादा संवेदनशील होते चले जाते हैं और इसके कारण कुछ दिनों में ही पुरुष में शीघ्रपतन और दूसरी यौन कमजोरियां प्रकट होने लगती हैं।


               लेकिन स्वप्नदोष के बारे में पुरुषों को एक बात बताना और भी जरूरी है कि अगर स्वप्नदोष या धातु स्राव महीने में 2-3 बार होता है तो इससे डरकर किसी नीम-हकीम के चक्कर में न पड़कर अपने पैसे और समय नहीं बर्बाद करना चाहिए क्योंकि यह एक साधारण शारीरिक क्रिया है। लेकिन अगर यह महीने में कई बार होने लग जाता है तो इसके निवारण के लिए किसी योग्य सेक्स-विशेषज्ञ की सलाह लेना जरूरी है।


     यौन रोगों से बचाव-


               यौन रोगों के बारे में किसी यौन विशेषज्ञ से बात करना बहुत लाभकारी होता है क्योंकि इससे इन रोगों के बारे में बहुत सी जानकारियां मिल जाती हैं। इन रोगों को दूर करने के लिए जहां बहुत से अनुभवी डाक्टर आदि बैठे होते हैं वहीं बहुत से नीम-हकीमों ने इलाज के लिए अपनी कई छोटी-छोटी दुकाने खोल रखी हैं। लेकिन एक बात इन रोगों के बारे में कोई नहीं सोचता कि आखिर यह रोग होते क्यों है और इनसे कैसे बचा जाए। अक्सर देखा जाता है कि व्यक्ति ठंड में ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़े पहनता है ताकि ठंड न लग जाए। वह अपने घर के सदस्यों को भी ठंड से बचने के लिए हिदायत देता है और ठंड लगने के कारण होने वाले नुकसान आदि को बताता है। तो फिर यौन रोगों के बारे में यह सब क्यों नहीं होता? क्यों नहीं युवा होती पीढ़ी को इन रोगों के बारे में और इनसे बचने के उपाय बताए जाते? आज जब हम आधुनिक युग में पहुंच गए हैं तो हमें लोगों को दूसरी समस्याओं के साथ-साथ यौन रोगों से बचने के उपाय भी बताने चाहिए क्योंकि यौन रोग एक ऐसी दीमक है जो धीरे-धीरे करके हमारे युवावर्ग को खोखला कर सकती है इसलिए सब लोगों को इसके बारे में जागरुक करना बहुत जरूरी है। यहां ऐसे ही युवावर्ग के लिए यौन रोगों के बारे में कुछ जानकारी दी जा रही है-


    यौन शिक्षा की जरूरत-


               आज पूरे भारत में नारे लगाए जा रहे हैं कि पढ़ो और पढ़ाओ, साक्षरता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, लड़के और लड़की को समान शिक्षा दी जानी चाहिए, पढ़ेगा इंडिया तो बढ़ेगा इंडिया। यह बहुत अच्छी बात है। शिक्षा के बारे में आज हमारा देश बहुत जागरुक हो रहा है। लेकिन इस शिक्षा के साथ-साथ एक प्रकार की शिक्षा और भी जरूरी है जो हमारी युवापीढ़ी को भटकने से बचाने में सहायक हो सकती है। लेकिन इस तरफ कोई ध्यान देने को तैयार ही नहीं है। यह बात तो सभी को पता है कि युवावस्था में व्यक्ति विपरीत सेक्स के प्रति बहुत जल्दी आकर्षित हो जाता है। किसी भी लड़की को देखकर उसके मन में उसे पाने के विचार आने लगते हैं, वह उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए सोचने लगता है। फिर जब यही विचार उसके मन में काम-उत्तेजना पैदा करते हैं तो वह इसको शांत करने के लिए हस्तमैथुन का सहारा लेता है। यह सब क्यों होता है क्योंकि उस समय व्यक्ति को किसी तरह की यौन क्रिया की जानकारी नहीं होती है। कभी-कभी इसी यौन-शिक्षा के अभाव में युवक गलत राह पर निकल जाता है या अपनी हस्तमैथुन या स्वप्नदोष जैसी आदतों के कारण अपने मन में यह धारणा पैदा कर लेता है कि शायद मैं शादी के बाद अपनी पत्नी को संभोग के समय असली सुख नहीं दे पाऊंगा। इसके लिए घर में बड़े भाई को या पिता को एक दोस्त की तरह अपने लड़के को इन चीजों के बारे में समझाना चाहिए। लड़कियां भी इस यौन-शिक्षा के अभाव में अपने पहले मासिकधर्म के आने पर काफी तनाव ग्रस्त हो जाती हैं। उनको ऐसा लगता है कि शायद उन्हें कोई रोग हो गया है जिसको वह अपने घर में भी बताने से डरती है। इसके लिए घर में अगर लड़की की बड़ी बहन हो, भाभी हो या मां कोई भी उसके मासिकधर्म आने से पहले उसे इसके बारे में जानकारी दे सकती है। लड़की को इस दौरान क्या-क्या परेशानियां आ सकती हैं यह भी उसे बता देना चाहिए। अगर युवावर्ग को समय रहते यौन-शिक्षा सही तरह से दे दी जाए तो इससे वह बिना किसी चिंता आदि के अपना जीवन सही तरीके से बिता सकता है।


    गलत धारणाएं-


               युवावस्था में यौन-शिक्षा के अभाव में युवक को कई तरह की उल्टी-पुल्टी बाते सुनने को मिलती है जो उसके दिमाग में बैठ जाती हैं जैसे वीर्य खून से बनता है और अगर यह नाश होता है तो जीवन बर्बाद हो जाता है। स्वप्नदोष या हस्तमैथुन के बाद संभोग के समय तुरंत स्खलित होने के मानसिक विचार जन्म लेते हैं। इस प्रकार युवक इन गलत धारणाओं के जाल में फंसता चला जाता है। इस अवस्था में युवकों को 2 चीजें खास करके परेशान करती हैं एक तो स्वप्नदोष और दूसरा हस्तमैथुन। युवक हस्तमैथुन करने से तो एक बार अपने आपको रोक भी लेता है लेकिन स्वप्नदोष होने के कारण वह हमेशा परेशान रहने लगता है। इस समय यौन-शिक्षा के अभाव में वह अपने मन में कई तरह के विकारों को जमा कर लेता है जो उसे गलत रास्ते पर पहुंचा देते हैं। इसलिए युवकों को इन बातों को अपने मन में आने ही नहीं देना चाहिए और सही तरह की यौन-शिक्षा लेकर मन को शांत और स्वच्छ रखना चाहिए।


    गलत माहौल से बचें-


               कोई भी व्यक्ति जहां पर रहता है या काम करता है वहां के माहौल का उसके ऊपर बहुत ज्यादा असर पड़ता है। यह असर सबसे ज्यादा युवावर्ग में देखने को मिलता है। बहुत से युवा स्कूल-कालेज का मतलब समझते हैं कि यह उनका मस्ती करने का अड्डा है। वह खुद तो पढ़ाई लिखाई करते नहीं है बल्कि दूसरे युवकों को भी नहीं पढ़ने देते हैं। इसी समय युवकों में काम-उत्तेजना जागृत होती है और वह गलत युवकों की संगत में पड़कर हस्तमैथुन और गुदामैथुन जैसी गलत क्रियाओं में पड़ जाते हैं। धीरे-धीरे करके इसके कारण वह बहुत से यौन रोगों में घिर जाता है। इसके बाद उसे लगता है कि इन यौन रोगों के कारण मेरा जीवन बर्बाद है और वह नीम-हकीमों के चक्कर में पड़कर अपना बचा-खुचा पैसा और जीवन भी बर्बाद कर लेता है। इसलिए युवकों को चाहिए कि गलत लोगों से दूर रहें और पढ़ाई के समय सिर्फ पढ़ाई करके अपने आने वाले कल को उज्जवल बनाएं।


    संयम रखना-


               युवावस्था एक ऐसी अवस्था है जिसमे अगर युवक जरा सा भी डगमगाता है तो वह गिरता ही चला जाता है। इस उम्र में वह ज्यादातर विपरीत आकर्षण में पड़कर अपने आपको बहुत सी उलझनों में उलझा लेता है। युवक के मन में सेक्स के बारे में किसी तरह की बाते आते ही वह बेचैन-सा हो उठता है और किसी तरह की यौन अपराधों की तरफ बढ़ जाता है। इसलिए इस उम्र में युवक को अपने ऊपर और अपनी इंद्रियों के ऊपर पूरी तरह संयम रखना चाहिए तभी वह यौन रोगों और यौन अपराधों से बच सकता है। संयम के ऊपर वेद-पुराणों में भी काफी जोर दिया गया है। जो व्यक्ति अपनी जिंदगी में संयम से चलता है वह व्यक्ति जल्दी ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। संयमित जीवन बिताने के बाद व्यक्ति जब विवाहित जीवन में प्रवेश करता है तो यौवन के दरवाजे पर जोरदार स्वागत होता है।


    आने वाला कल-


               एक बात को तो सभी लोग जानते और मानते भी हैं कि आज का युवा ही कल का भविष्य है। इसलिए उसे पूरी तरह से शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होना भी जरूरी है। एक पूरी तरह से स्वस्थ व्यक्ति ही हर तरह की परेशानियों से अकेला लड़ सकता है। लेकिन आज के समय में युवक यौन रोगों के घेरे में आकर शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है। इसलिए युवा पीढ़ी को सोचना चाहिए कि जिनके कंधों पर देश की बुनियाद टिकी है वे ही अगर इन यौन रोगों में पड़कर अपने कंधे हिला लेंगे तो देश का क्या होगा। इसलिए उसे सिर्फ अपने लक्ष्य और आने वाले कल के बारे में सोचना चाहिए। फिर देखें कि कैसे उसे कोई यौन रोग छू पाता है।


    शर्म और संकोच से बचें-


               युवावस्था में अक्सर बहुत से युवक गलत संगत में या गलत लोगों के चक्कर में यौन रोगों में जकड़ जाते हैं या अपनी किसी गलत आदत को ही अपना यौन रोग मान लेते हैं। ऐसी स्थिति में वह शर्म और संकोच के कारण वह किसी को अपनी परेशानी के बारे में बता नहीं पाते हैं। उसे उस समय खुद इतना ज्ञान नहीं होता कि वह शर्म और संकोच को दूर करके अपनी गलतियों को अपने घर वालों के सामने बता दे। अगर वह ऐसा करता है तो उसे सही तरह की सलाह और उपचार भी मिल सकता है। इससे युवक को 2 प्रकार के लाभ मिल सकते हैं पहला तो उसे अगर कोई यौन रोग होता है तो उसे शुरुआती अवस्था में ही उससे छुटकारा मिल सकता है और दूसरा इनके बारे में सही जानकारी मिलने से उसके दिमाग में किसी तरह के गलत विचार भी नहीं आएंगे।


    यौन रोगों का सही उपचार-


               किसी भी व्यक्ति को सर्दी-जुकाम और खांसी आदि रोग होते हैं तो वह तुरंत ही उसका उपचार करा लेता है लेकिन यौन रोग होने पर ऐसा संभव नहीं है। इसका कारण यह है कि दूसरे सभी रोगों का पता किसी दूसरे इंसान को भी आसानी से चल जाता है, वह किसी और को इनके बारे में बता भी सकता है और उसका इलाज भी हर जगह मिल जाता है। लेकिन यौन रोग होने पर न तो किसी दूसरे इंसान को बताए जा सकते हैं और न ही किसी को नजर आते हैं। तभी तो ऐसे रोगों को गुप्त रोग कहा जाता है। इन रोगों के होने पर व्यक्ति गलत तरह के नीम-हकीमों के चक्कर में पड़ जाता है जिसमें पड़कर एक तो उसका पैसा फिजूल-खर्च होता है और दूसरा उसको किसी तरह के लाभ की बजाय नुकसान ही होता है जो उनके चक्कर में पड़ जाता है उसे अगर कोई बड़ा यौन रोग नहीं भी होगा तो भी हो जाता है। इसके लिए पुरुषों को चाहिए कि इन गुप्त रोगों से अपने आपको मुक्त करने के लिए किसी अच्छे और योग्य कामशास्त्री से अपना इलाज कराए।


    किसी भी प्रकार के नशे से बचें-


               व्यक्ति के बहुत से रोगों और अपराधों की जड़ अक्सर नशे के साथ जुड़ी होती है। व्यक्ति अगर एक नशा करता है तो उसके कारण वह और भी कई नशों की गिरफ्त में आ जाता है। वैसे भी गलत लोगों की संगत में बैठकर व्यक्ति कई प्रकार के नशों की चपेट में आ जाता है जैसे सिगरेट और शराब होना। इसी प्रकार की गलत संगति में आकर व्यक्ति कई प्रकार के अश्लील विचारों का आदान-प्रदान भी करता है। उनके बीच में होने वाले वार्तालाप में अश्लीलता भरी हुई होती है और फिर व्यक्ति धीरे-धीरे हस्तमैथुन और गुदामैथुन से होता हुआ कालगर्ल और वेश्याओं के संपर्क में आ जाता है। इसके बाद जब वह वहां से वापस लौटता है तो उसके साथ कई प्रकार के यौन रोग होते हैं जो उसे शारीरिक और मानसिक रूप से नुकसान पहुंचाते हैं। बहुत से पुरुष सोचते हैं कि मैं इसमें फंस तो गया हूं पर निकलूंगा कैसे? इसका जवाब बहुत आसान है कि जिन कारणों से हालत हुई उसे छोड़ दो। बुरी संगति को छोड़कर और नशे से दूर रहकर यौन रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है। आज के समय में युवावर्ग बुरी संगत और नशों के कारण ही यौन रोगों से ग्रस्त होता है। अगर वह इनसे दूर हो जाता है तो उसे इन यौन रोगों के साथ-साथ दूसरी कई परेशानियों से भी छुटकारा मिल जाता है।


    अच्छी पुस्तकें पढ़ें-


               युवावस्था में अक्सर युवक का मन इधर-उधर भटकता ही रहता है। विपरीत सेक्स के प्रति उसका मन हर समय बेचैन रहता है। जिस कारण वह गंदी किताबों को पढ़ने लगता है। उन किताबों में जो कुछ लिखा या दिखाया गया होता है वह किसी भी युवक को गलत दिशा में ले जाने के लिए काफी होता है और युवक न चाहते हुए भी हस्तमैथुन आदि करने पर विवश हो जाता है जो उसके लिए आगे चलकर यौन रोग बन जाता है। इसके लिए युवकों को चाहिए कि इन गंदी किताबों को पढ़ने से परहेज करे और अच्छी तथा ज्ञान देने वाली किताबों को पढ़ने की आदत डाले। यह बात तो सभी अच्छी तरह से जानते हैं कि जिसका चरित्र अच्छा होगा वह हर क्षेत्र में ही कामयाब ही होता है।


    परिवार का योगदान-


               किसी भी व्यक्ति के चरित्र को बनाने या बिगाड़ने में उसके परिवार का बहुत ज्यादा योगदान होता है। परिवार वह स्थान है जहां पर व्यक्ति को कहीं पर भी जाने के बाद लौटकर आना पड़ता है। अगर व्यक्ति किसी परेशानी में आ जाता है तो पूरे परिवार की यह जिम्मेदारी हो जाती है कि उसकी परेशानी को दूर किया जाए। घर का कोई युवक जब एकदम गुमसुम या परेशान सा रहने लगे तो घर के लोगों को समझ जाना चाहिए कि जरूर वह किसी दुविधा में है। उस समय घर के सबसे बड़े बेटे या युवक के पिता का यह कर्तव्य बनता है कि प्यार से उसकी परेशानी के बारे में बातें करें। अगर उसकी समस्या किसी यौन संबंधी परेशानी को लेकर है तो उसका उपचार कराना चाहिए। किसी भी हाल में उसको उसकी समस्या के कारण परेशान नहीं किया जाना चाहिए। इसके साथ ही घर का माहौल भी ऐसा होना चाहिए कि उसका घर के सभी सदस्यों पर अच्छा असर पड़े।


    एड्स-


               एड्स का पूरा नाम एक्वायईड इम्यून डेफिशियंसी सिंड्रोम है। इसका नाम कुछ समय पहले तक सिर्फ सुनने को ही मिलता था लेकिन आज यह पूरी दुनिया मे फैल रहा है। इस रोग को यौन रोगों का बाप कहना किसी नजरिये से गलत नहीं होता क्योंकि जहां किसी भी यौन रोग का इलाज किसी न किसी जरिये से हो ही जाता है वहीं एड्स जैसे भयंकर रोग का इलाज ढूंढने में वैज्ञानिक अभी तक नाकाम ही साबित हुए हैं। यह समझ लीजिए कि अगर किसी व्यक्ति को एड्स हुआ तो वह उस व्यक्ति की मृत्यु पर ही समाप्त होता है।


    एड्स क्या है?


               एड्स संभोग करने के दौरान फैलने वाला रोग है और यह रोग होने के बाद बहुत तेजी से फैलता है। एड्स से बचाव का न तो कोई टीका ही बना है और न ही किसी औषधि का निर्माण हुआ है। कुछ समय तक भारत में इस रोग के बहुत ही कम रोगी देखने को मिलते थे लेकिन अब यह रोग भारत में भी तेजी से अपनी जड़ें फैला रहा है। एड्स का वायरस शरीर में घुसते ही खून में मौजूद सफेद कोशिकाओं पर हमला कर देता है और तेजी के साथ उन्हें नष्ट कर देता है। शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति इन्हीं सफेद कोशिकाओं के द्वारा ही बनती है। एडस के वायरस जब इस रोगों से लड़ने की शक्ति को तेजी से समाप्त कर देते हैं तो शरीर पर दूसरे रोग आक्रमण कर देते हैं। धीरे-धीरे करके शरीर में रोग तो बढ़ते जाते हैं लेकिन समाप्त एक भी नहीं होते। इन रोगों के कारण व्यक्ति तेजी से मृत्यु की ओर बढ़ जाता है, उसके शरीर का वजन दिन-प्रतिदिन कम होने लगता है, कमजोरी आने लगती है और एक दिन वह व्यक्ति दुनिया से ही चला जाता है।


    एड्स रोग के फैलने के कारण-


               एड्स के बारे में पहले ही बताया जा चुका है कि यह एक प्रकार के वायरस के फैलने के कारण होता है। यह वायरस बैक्टीरिया से भी छोटे होते हैं। इसका पूरा नाम है ह्यूमन टी लिफाट्रिपिक वायरस टाइप-3, संक्षेप में इसे H.I. T.V-3 भी कहा जाता है। भारत में पहले सेक्स संबंधों में खुलापन नहीं था इसलिए यह रोग पहले यहां पर ज्यादा नहीं फैलता था। लेकिन कुछ समय में सेक्स संबंधों में खुलापन आने के कारण यहां पर भी यह रोग तेजी से फैल रहा है। इस रोग के फैलने के कारण इस प्रकार हैं-


    1 - समलैंगिक और उभयलैंगिक।

    2 - वह पुरुष, स्त्रियां या वेश्याएं जो बहुत से व्यक्तियों के साथ संभोग क्रिया करती हैं।

    3 - बाहर के देश से आने वाले वे लोग जो एड्स रोग से ग्रस्त होते हैं वह जब यहां पर किसी स्त्री के साथ संभोग करते हैं तो वे उसे भी अपना यह रोग दे जाते हैं।

    4 - ऐसे भारतीय जो एड्स रोग से ग्रस्त नहीं हैं लेकिन किसी काम-काज के सिलसिले में बाहर आते-जाते रहते हैं। जब वह मौज-मस्ती के लिए वहां की स्त्री के साथ सेक्स करते हैं तो वह वहां से इस रोग को भारत में ले आते हैं और यहां पर इस रोग को फैला देते हैं।

    5 - ऐसे लोग जो नशा आदि करने के लिए इंजेक्शन का उपयोग करते हैं वह कभी-कभी किसी एड्स से पीड़ित व्यक्ति के द्वारा इस्तेमाल किया गया इंजेक्शन भी अपने लगा लेते हैं। इसके कारण वह व्यक्ति भी एड्स रोग से ग्रस्त हो जाता है।

    एड्स से बचाव-


               एड्स रोग की अभी तक कोई असरकारक चिकित्सा सामने नहीं आई है और न ही इससे बचने का कोई टीका आदि निकला है। लेकिन जिस जी-जान से वैज्ञानिक इसका इलाज ढूंढने में लगे हुए हैं आशा है वह इसमें जरूर सफल होंगे। वैसे इस रोग से बचाव के कुछ उपाय हैं जिनको अपनाकर इस रोग को होने से रोका जा सकता है-


    1 - अजनबी लोगों, वेश्याओं तथा कालगर्ल के साथ किसी भी प्रकार के शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए।

    2 - अप्राकृतिक संभोग क्रिया जैसे गुदामैथुन, मुखमैथुन, समलैंगिक मैथुन आदि से दूर रहना चाहिए।

    3 - किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा इस्तेमाल किये गए इंजेक्शन आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए। किसी अस्पताल या क्लीनिक में डाक्टर से इंजेक्शन लगवाने से पहले देख लेना चाहिए कि वह इंजेक्शन पहले किसी और स्थान पर इस्तेमाल तो नहीं किया गया है। अगर हो सके तो इंजेक्शन बाहर कैमिस्ट की दुकान से स्वयं ही खरीदकर ले जाना चाहिए।

    4 - वैसे अगर चाहे तो डाक्टर से कहकर इंजेक्शन की जगह पर गोली या कैप्सूल ले लेना चाहिए क्योंकि ऐसी बहुत कम दवाएं होती हैं जो गोली या कैप्सूल के रूप में नहीं दी जा सकती हैं।

    5 - किसी भी स्त्री के साथ अगर शारीरिक संबंध बनाने हो तो उस समय कंडोम का उपयोग जरूर करना चाहिए। कंडोम शारीरिक संबंधों के समय एड्स को रोकने में सबसे कारगर माना जाता है।

    6 - वैसे तो नशा हर प्रकार का बेकार होता है लेकिन खास करके नसों में लगाए जाने नशे के इंजेक्शन से दूर ही रहना चाहिए।

    7 - शेव करवाते समय पहले इस्तेमाल किये गए ब्लेड या रेजर आदि का उपयोग अपने ऊपर नहीं करवाना चाहिए।

    8 - अगर किसी दुर्घटना आदि के कारण खून चढ़वाने की जरूरत पड़ती है तो उस समय बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है। जो खून आप पर चढ़ाया जा रहा हो वह जांच किया हुआ होना चाहिए कि वह कहीं किसी H.I.V. से संक्रमित व्यक्ति का खून तो नहीं है।


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