स्त्री - रोग [ Disease of The Women ]
1 - अतिरजः ( Menorrhiagia )
2 - ऋतुरोध ( Amenorrhoea )
3 - प्रसूति - पीड़ा ( Labour pains )
4 - प्रसव के बाद दर्द ( Pain After Labour )
5 - बच्चा बिना कष्ट उत्पन्न करने के लिये
6 - आँवल न निकलना
7 - कष्ट रज ( Dysmenorrhoea )
कुछ व्याधियां तो स्त्री - पुरूष , बाल - वृद्ध सभी को समान रूप से आक्रांत करती हैं किंतु कुछ व्याधियां ऐसी भी होती है , जो नारी की जीवन - चर्या , उपांगों की बनावट , मासिक - धर्म के आवर्तन तथा कभी - कभी गर्भ धारण करने या सामान्य होने की स्तिथी के कारण केवल उन्हें अपने चंगुल में फँसाये रखती हैं । अतः नारी के विशिष्ट रोगों की ( उनके लक्षण , गुण - धर्म , देश - काल व परिस्थितियों के अनुसार ) होमिओपैथीक औषधीय योग का वर्णन किया गया है ।
1 - अतिरजः ( Menorrhiagia )
अतिरजः के लक्षण -
- स्त्रियों को स्वाभाविक अवस्था से अधिक मात्रा में रक्त स्त्राव होना
- नियमित दिनों से अधिक ऋतु में रक्त - स्त्राव
- गर्भावस्था में अस्वाभाविक रक्त बहना
अतिरजः का होमियोपैथिक उपचार
- हेमामेलिस [ HAMAMELIS ] 3X - 1 बून्द
- फीकस रिलीजिओसा [ FICUS RELIGIOSA ] पीपल - 2X - 2 बून्द
- मिलीफोलियम [ MILLEFOLIUM ] 2X - 2 बून्द
- एक्वा [ WATER ] 30 ml
उपरोक्त दवाओं का योग गर्भाशय से किसी भी कारण से रक्त स्त्राव होने पर प्रतिदिन तीन बार दे ।
2 - ऋतुरोध ( Amenorrhoea )
एक बार ऋतु होने के बाद किसी कारण से उसका बन्द हो जाना ही " ऋतुरोध " कहलाता है ।
ऋतुरोध के कारण
- नियमित होने वाले मासिक धर्म मे ठंड लगने
- मैथुन दोष
- रुधिर की कमी
- अति - भ्रमण
- मानसिक - भय
- क्रोध व उद्वेग
- अनियमित खान - पान आदि के कारण
ऋतुरोध के लक्षण
- वमनेच्छा
- स्तन - शूल
- श्वास कष्ट
- निंद्रा
- थकान व मूर्च्छा
- जरायु - दाह
- शरीर मे सूजन
- मानसिक विकृति
- स्वर भंग
- हिस्टीरिया
- शरीर मे दर्द आदि लक्षण प्रकट होते है ।
ऋतुरोध का होमियोपैथीक उपचार
मिश्रण - 1
- गोसेपियम हर्ब [ GOSSYPUM ] 30 कपास - 10 बून्द
- पल्सेटिला [ PULSATILA ] 30 - 10 बून्द
- एक्वा 30 ml
उपरोक्त योग प्रतिदिन तीन - चार बार प्राथमिक व द्वितीयक ऋतुरोध में दे ।
मिश्रण - 2
- एपिस मेल [ APIS MEL ] 30
- गोसेपियम हर्ब [ GOSSYPUM ] 30
- पल्सेटिला [ PULSATILA ] 30
- सीकल कार्ब [ SECALE CORNUTUM ] 30 अरगोट [ ERGOT ]
उपरोक्त दवाओं के 5 - 5 बून्द गर्म जल के साथ दिन में तीन बार ले ।
इस दवा का मुख्य कार्य रुके हुए मासिकधर्म को नियमित रखना है ।
प्रसूति पीड़ा व प्रसव में कठिनाई [ Labour Pain ]
प्रसव होने के समय होने वाली पीड़ा स्वाभाविक अवस्था से अधिक होती हैं , यह प्रसूति पीड़ा कहलाती हैं ।
प्रसव पीड़ा का होम्योपैथीक उपचार
उपचार क्र. 1
- काली फॉस [ Kali Phos ] 3x
- कैल्केरिया फॉस [ Calcarea Phos ] 3x
- कैल्केरिया फ्लोर [ Calcarea Flor ] 3x
- मेग फॉस [ Mag Phos ] 3x
उपरोक्त औषधियों की 2 - 2 गोली प्रतिदिन चार बार दे । यह योग प्रसव पीड़ा के साथ अन्य पीड़ाओं में भी लाभदायक है ।
उपचार क्र. 2
- गोसीपीयम [ Gossypum ] Q - 7 बून्द 25 ml गर्म जल के साथ हर घंटे बाद दे ।
प्रसव के बाद का दर्द [ Pains After Labour ]
प्रसवोपरांत जरायु [ Uterus ] अपनी स्वाभाविक स्तिथि में आने के लिये स्वतः संकुचित होती हैं । अतः प्रसूता को प्रसवोपरांत दर्द होता हैं ।
प्रसव के बाद दर्द के कारण
इस प्रकार का दर्द पहला बच्चा पैदा करने पर कम व अधिक बच्चो वाली स्त्रियों को अधिक होता हैं । यह दर्द गर्भाशय की मांसपेशियों के तंतुओं के सिकुड़कर अपनी स्वाभाविक अवस्था मे आ जाने के कारण होता हैं । आँतो में मल रुक जाने व मूत्राशय में मूत्र भर जाने से भी पीड़ा अधिक होती हैं ।
प्रसव के बाद के दर्द का उपचार
1 - वाइबनम ओप्युलस [ Viburnum Opulus ] Q - 2 -2 बून्द 10 ml पानी मे हर तीन घंटे बाद ।
2 - आर्निका [ Arnica ] 30 , काफिया क्रूडा [ Coffea Cruda ] 30 , व सिमीसीफ्युगा [ Cimicifuga Racemosa ] 30 - 3 - 3 बून्द , मैग्नेशिया फॉस [ Mag Phos ] 30 - 6 बून्द तथा मिल्क शुगर - एक ड्राम के योग की 6 मात्राएँ बनाये । हर दो घण्टे बाद एक - एक मात्रा गर्म जल से दे । इससे प्रसवोपरांत तीर्व दर्दो में आराम होता हैं व गंदा स्त्राव निकल जाता हैं ।
बच्चा बिना कष्ट के उत्पन्न करने के लिए होम्योपैथीक उपचार
आँवल न निकलना
उपचार - 1
- बच्चा बिना कष्ट के उत्पन्न करने के लिए पल्सेटिला [ Pulsatilla ] 30 , सबाईना [ Sabina ] 3x व सीकेल कोर [ Secale Cor ] 6 - प्रत्येक 1 - 1 बून्द तथा मिल्क शुगर 5 ग्रेन का योग गर्म पानी के साथ हर आधा घंटे बाद दे यह एक मात्रा है ।
उपचार - 2
- विस्कम एल्बम [ Viscum Alb ] 3x - 1 बून्द , कैंथरिस [ Cantharis ] Q - 7 बून्द तथा पानी एक औंस का योग हर आधा घंटे बाद दे यह एक मात्रा है ।
कष्टरजः , मासिकधर्म दर्द से आना [ Dysmenorrhoea ]
कष्टरजः के कारण [ Causes of Dysmenorrhoea ]
- गर्भाशय का मुड़ जाना
- गर्भाशय में अबुर्द बन जाना
- गर्भाशय या डिम्बग्रंथियो का ठीक रूप से विकसित न होना
- स्नायु - दुर्बलता
- हिस्टीरिया
- गठिया या बाय
- पीलिया
- जरायु में रक्त - संचय
- गर्भाशय की स्थान - च्युति
- अत्यधिक मानसिक उद्वेग
- ऋतु के समय मैथुन
- सर्दी लगना आदि के कारण से यह रोग हो जाता हैं वास्तव में इसका सही कारण बताना कठिन है ।
कष्टरजः के लक्षण [ Symptoms of Dysmenorrhea ]
- ऋतु के समय अति तीर्व दर्द
- बैचेनी
- इसकी पीड़ा इतनी तेज होती हैं कि कभी - कभी रोगिणी बेहोश हो जाती है ।
- ऋतु - स्त्राव के साथ - साथ या पहले दर्द पेडू से प्रारम्भ होकर अन्य स्थानों में फैल जाता हैं ।
कष्टरजः का उपचार[ Treatment of Dysmenorrhea ]
उपचार - 1
- अशोका [ Ashoka ] Q व एब्रोमा अग [ Abroma Aug ] Q - प्रत्येक 30 बून्द तथा एक्वा 30 ml का योग प्रतिदिन तीन बार ले कष्टरजः और कष्टरजः कारक व्याधियों में यह लाभदायक है ।
विशेष - उपरोक्त योग रोगमुक्ति के 6 दिन पश्च्यात तक सेवन करे ।
उपचार - 2
- एब्रोमा अग [ Abroma Aug ] 3x , कालोफाइलम [ Caulophilum ] 3x - 1-1 बून्द , अशोका [ Ashoka ] Q - 5 बून्द , वाइवरनम ऑफ [ Vibrunum ] Q - 5 बून्द , पल्सेटिला [ Puls ] 30 - 3 बून्द तथा एक्वा - 30 ml का योग कष्टरजः में प्रतिदिन चार बार दे ।
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