विभिन्न प्रकार की मोच और उनका विशिष्ट उपचार
मोच आना
मोच एक ऐसी चोट है जो जोड़ के अचानक मुड़ जाने से आती है अतः संधि स्थानों का अधिक खिंच जाना या उसके सूत्र का टूट जाना मोच या लचक कहलाता है ।
दौड़ने , कूदने या ऊँचा नीचा पांव पड़ने से प्रायः ऐसा सम्भव है । प्रायः कलाई या टखने के जोड़ो में मोच आ जाती हैं ।
मोच के लक्षण
मोच आ जाने के कारण आघात स्थान पर तीर्व वेदना होती हैं स्थानिक शोथ हो जाता हैं तथा आघात स्थान को हिलाने डुलाने में कठिनाई होती हैं । यह लक्षण स्थानिक अस्थिभंग की शंका उत्पन्न करते हैं । जिसका एक्स - रे द्वारा ज्ञान कर लेना चाहिए ।
मोच आने पर प्राथमिक चिकित्सा
सर्वप्रथम पीड़ित को पूर्ण आराम देने की कोशिश करनी चाहिए । मोच के भाग को ऊँचा रखना चाहिए । यदि किसी व्यक्ति के पैर में मोच आ गई हो तो उसके जूते इत्यादि को उतारने की अपेक्षा उक्त स्थान पर पट्टी बांध देनी चाहिए और बीच - बीच मे उस पट्टी को भिगोते रहना चाहिए ताकि वह पट्टी और मजबूती से जोड़ को पकड़ ले । मोच आये हुए भाग को आधे घंटे तक पानी में डुबोये रखिये । यदि पास में नदी या नाला बहता हो तो उसमें आघातित अंग को डुबोये रखना चाहिए । पहले ठण्डे पानी से फिर गर्म पानी से भिगोने पर दर्द और सूजन नही बढ़ते ।
मोच की विशिष्ट चिकित्सा
मोच में अधिक सूजन होने पर हमेशा उस स्थान का एक्स - रे लेना चाहिए जिससे जोड़ो के बन्धन की स्थिति तथा सन्धियों एवं उक्त स्थान की अस्थियों की स्थिति का पता चल जाता हैं । शोध युक्त सन्धि को आराम देने के लिए पट्टी बांध कर रखनी चाहिए या गोलार्ड लोशन लगाना चाहिए सूजन को कम करने के लिए ए .बी .सी . या स्लोन्स लिनीमेंट या इमिलेन्स एम्ब्रोकेशन को सरसों के तेल में मिलाकर मालिश करनी चाहिए । गर्म सेंक से भी आराम पहुँचाता है । इन चिकित्साओं के अतिरिक्त इंफ़्रा - रेड तथा डायथर्मि का भी प्रयोग करने से पर्याप्त लाभ पहुँचाता है ।
मोच की आयुर्वेद चिकित्सा
अस्थि सन्धान लेप - हल्दी और चुना का लेप व हड़जोड़ हल्दी , आमाहल्दी लाख एलुवा समभाग को गर्म पानी मे पकाकर लेप करना चाहिए । इससे शोथ और वेदना का तत्काल शमन होता हैं । लाक्षादि गुग्गुल 2 -2 गोली तथा विषमुश्ठी 1 -1 गोली दिन में दो तीन बार देनी चाहिए । इससे वेदना का तत्काल शमन होता है । वेदना नाश के लिए आधुनिक वेदनानाशक औषधियों नोवल्जियम , कोडोपायरिन , सैरिडान या अन्य वेदनाहर औषधियों का भी प्रयोग किया जा सकता है । दूधिया तैल , महानारायण तैल व पंचगुण तैल की मालिश कर पट्टी बांध देनी चाहिए ।
शोथहर गुटिका - छोटी हरड़ तथा आँवला का चूर्ण 1 -1 किलो , कलमीशोरा 200 ग्राम , नीला थोथा 100 ग्राम और हरड़ , आँवला , कलमीशोरा को मिलाकर नीलाथोथा का जल मिलाकर गोला बनाकर एक दिन रहने देवे फिर शिखराकार गोली व वर्तिया बनावे ।
व्रतियों का उपयोग - वर्ति को पानी मे पीसकर लेप करें दिन में तीन चार बार लेप लगाया जाता है । आगन्तुक शोथ , चोट लगने , मुड़ने , मोच पड़ने , दंश स्थान , कर्णमूल ग्रंथि शोथ , सन्धि शोथ तथा सभी शोथो पर सहस्त्रानुभूत है ।
कलाई की मोच
कलाई की मोच में एक इंच की चिपकने वाली पट्टी को कलाई के आधार से चिपकाते हुये पूरी कलाई की सन्धि तक उसको चिपका दे । प्रत्येक चिपकने वाली पट्टी के टुकड़े का आधा इंच भाग दूसरे टुकड़े से ढका रहे । इस प्रकार छः टुकड़ों में सम्पूर्ण कलाई को बांध देवे । यह चिपकना इस प्रकार का होना चाहिए कि कलाई का जोड़ पूर्ण रूप से स्थिर हो जाय परन्तु यह पट्टी इतनी न कस जाय कि हाथ के रक्तसंचार में बाधा उत्पन्न हो जाय अन्यथा वेदना बढ़ सकती हैं ।
घुटने की मोच
इसमे भी एक इंच वाली चिपकने वाली पट्टी को घुटने के पंद्रह सेंटीमीटर ऊपर से चिपकाना प्रारंभ करते है तथा धीरे - धीरे घुटने के निचे तक चिपकाते जाते है । तथा पैर के दूसरी और भी टेप चिपका देते है । तथा इसी प्रकार तीसरा और चौथा लपेट देते हैं । घुटने को पर्याप्त रूप से लचीली पट्टी से भी स्थिर किया जा सकता हैं । इसके लिए तीन इंच चौड़ी पट्टी घुटने के कई इंच निचे से बांधते हुए ऊपर की ओर बढ़ते जाते है । इस पट्टी से जोड़ में संचित जालियांश का भी यथाशीघ्र शोषण हो जाता हैं ।
एड़ी की मोच
यह एक सामान्य मोच की अवस्था है जो सड़क पर या घर चलते फिरते कभी - कभी किसी चीज में पैर के फंस जाने के कारण या फिसलकर गिर जाने के कारण हो जाया करती हैं । एड़ी के बाहर की दिशा में मुड़ जाने से या उसके अंदर के बांधने वाले तंतुओ के टूट जाने से एड़ी में मोच आ जाती हैं तथा प्रायः एड़ी की हड्डी का भी कभी - कभी भग्न हो जाता हैं
एड़ी की मोच का उपचार
मोच आये पैर को ऊपर उठा देना चाहिए ताकि पैर पूर्ण विश्राम की अवस्था में आ जाये । इसके उपरांत बर्फ के पानी से तथा ताजे पानी से भीगी पट्टी को 12 से 36 घण्टे तक कंप्रेस ( Compress ) करते हैं । तीर्व शोथ और वेदना हरण के बाद लचीली पट्टी बांध दे ।
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