विभिन्न दुर्घटनाएं एवम उनकी आकस्मिक चिकित्सा
ऐसे रोग जिनमें आकस्मिक चिकित्सा की जरूरत पड़ती है , प्रायः विभिन्न प्रकार की दुर्घटनाओ की खबर आये दिन अखबार में आती रहती हैं । उनमें से अधिकतर घरेलू तो कुछ बाह्य दुर्घटनाएं ही हुआ करती है , जो असावधानी वश घटित हो जाती है ।
ऐसी दुर्घटनाओं के समय प्रायः लोग सिर्फ तमाशबीन बनने के अलावा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को कोई सहायता नही पहुंचा पाते है । परंतु प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की तात्कालिक चिकित्सा की सामान्य जानकारी तो रखनी ही चाहिए ताकि आपातकाल में प्राथमिक उपचार देकर रोगी की प्राणरक्षा की जा सके । हमारे ब्लॉग में प्रमुख दुर्घटनाओं से ग्रस्त व्यक्ति को आवश्यक प्राथमिक चिकित्सा की संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है ।
दम घुटना
दम घुटना उस स्थिति को कहते है जब गले पर बाहर से कोई दबाव डाले बिना अन्य किसी कारण से श्वास क्रिया में रुकावट उत्पन्न हो , जैसे किसी बाह्य पदार्थ के आने से श्वास नलिका में रुकावट हो व वक्ष को जोर से दबाकर रखने में जब श्वसन नही आती तो दम घुटने लगता है
दम घुटने के प्रमुख कारण
कार्बन मोनोऑक्साइड , कार्बन डाइऑक्साइड , हाइड्रोजन सल्फाइड गैस अथवा अत्यधिक धुँआ के फेफड़ो में पहुंचने पर श्वासावरोध होने लगता है और दम घुटने लगता है ।
कभी - कभी कमरे के दरवाजे खिड़की बन्द करके अधिक व्यक्तियों के एक कमरे में सोने से तथा दुर्बल रोगी को जब बहुत मनुष्य घेर लेते हैं तो दम घुटने लगता हैं ।
शीत प्रदेशों में बंद कमरे में आग ( सिगड़ी ) लेकर सोने से ऑक्सीजन की कमी हो जाती है जिससे दम घुटने लग जाता हैं । सिनेमाहॉल व भीड़ वाले स्थानों में भी दम घुटने की संभावना रहती हैं ।
दम घुटने की प्राथमिक चिकित्सा
भोजन के अंश व अन्य बाह्य पदार्थ श्वास नलिका में अटक जाय तो रोगी के सिर को नीचे झुकाकर मुख पूरा खोलकर खाँसना चाहिए जिससे श्वास के झटके के साथ श्वास खींचने से भी पदार्थ का निष्कासन हो जाता हैं । यदि बच्चे के गले मे सिक्का आदि अटक जाय तो उसका पैर पकड़कर पीठ पर दोनों कन्धों के मध्य में मुक्का मारने से फेफड़ों पर जोर पड़कर अवरोधक पदार्थ का निष्कासन हो जाता है तथा कुत्रिम श्वास देना प्रारंभ कर देना चाहिए ।
गला घुटना
किसी व्यक्ति द्वारा गला दबा देने पर या किसी वस्तु द्वारा गले पर बाहर से दबाव पड़ने से श्वास क्रिया में रुकावट आने को श्वासावरोध कहते है नवजात शिशु में भी कभी - कभी इस प्रकार का श्वासावरोध उत्पन्न हो जाता है ।
गला घुटने के लक्षण
गला घुटने से यकायक श्वास कष्ट हो जाने श्वसन क्रिया में कठिनाई , आँखे बाहर की ओऱ निकल आना या मुख मन्डल नीला होना तथा ह्रदय की गति एकदम मन्द हो जाना आदि लक्षण होते है ।
गला घुटना की प्राथमिक चिकित्सा
दम घुटने व श्वासावरोध की प्रमुख तत्कालीन चिकित्सा कुत्रिम श्वसन देना है । फिर ह्रदय पर मालिश करनी चाहिए । सुविधा हो तो तत्काल ऑक्सीजन सुंघाना चाहिए । ह्रदयामृत इंजेक्शन देने से भी श्वसन क्रिया में लाभ होता है । ऐलोपैथिक का माईकोरन सूचिवेध तथा ड्रॉप्स का प्रयोग किया जाता है । यूनानी औषधि दवा उलमिरक मोतीदिल जवाहर वाली खास को मोती पिष्टी के साथ दूध से दे तो तत्काल लाभ होता हैं । तथा कुछ दिनों तक लगातार प्रयोग करे इससे ह्रदय दौर्बल्य आदि भी दूर हो जाता है । खमीरा गाजवान अम्बरी जवाहर वाला खास के अकेले व कुश्ता नुकरा के साथ देना भी लाभदायक है । रोगी को खुले वातावरण में रखना चाहिए ।
वर्षा ऋतु में नदियों में बाढ़ आ जाने से तथा तालाब कुँआ आदि में डूब जाने की दुर्घटना प्राणघातक होते हुए भी जन सामान्य है । प्रतिवर्ष सहस्त्रों व्यक्ति डूब कर मृत्यु के मुख में समा जाते है । अतः प्राण रक्षा हेतु तत्काल उपचार की आवश्यकता होती हैं ।
" डूबते को तिनके का सहारा " कहावत है अर्थात डूब रहे व्यक्ति को थोड़ा सा भी सहारा मिल जाय तो वह बच जाता हैं । अतः कोई व्यक्ति डूब रहा है तो नाव , रस्सी , हवा भरा हुआ टयूब द्वारा उसे बचाना चाहिए । पानी मे रस्सी फेंके व हवा भरा हुआ ट्यूब , हवा भरे हुए तिरपाल के " एयरटाइट " तकिये को रस्सी से बांधकर फेंकना चाहिए जिससे डूबता हुआ व्यक्ति उसको पकड़कर पानी की ऊपरी सतह पर आ सके औऱ फिर रस्सी को खींचकर उसको किनारे पर ले आना चाहिए । यदि तैरना अच्छी तरह आता हो और शरीर में इतनी शक्ति हो कि एक और साथी को जबरदस्ती पकड़कर ला सकते है तो तत्काल डूबते हुए को बचाने के लिए पानी मे कूद जाना चाहिए तथा उसके सिर के व बदन के कपड़े को मजबूती से पकड़कर किनारे ले आना चाहिए । डूबता हुआ व्यक्ति अपने बचाव के लिए आने वाले को अपनी सुरक्षा के लिए जोर से पकड़ लेता है या वह इतना घबराया हुआ रहता है कि बचाने वाले से चिपक जाता हैं और इस तरह बचाने वाला डूबने वाले कि चपेट में आ जाता हैं । अतः बचाने वाले को इससे सतर्क रहना चाहिए । इतना समीप न जावे की खुद ही फँस जावे ।
डूबने वालो की प्राथमिक चिकित्सा
जैसे ही डूबते हुए व्यक्ति को पानी से निकाला जाए उसके शरीर को पौंछ कर कुत्रिम श्वास देना प्रारंभ कर देना चाहिए । मुख से मुख मिलाकर कुत्रिम श्वास देना उत्तम है । डूबने से आमाशय और फेफड़ों में जल भर जाता हैं अतः उल्टा लिटाकर गर्दन को एक तरफ मोड़कर पानी को बाहर निकाल दे । यदि ह्रदय या नाड़ी का स्पंदन न मालूम हो तो तत्काल ह्रदय की मालिश करनी चाहिए ।
डूबने की विशेष चिकित्सा
हॉस्पिटल में रोगी को प्रवेश देकर ऑक्सीजन सिलेंडर मंगवा कर श्वसन मार्ग द्वारा ऑक्सीजन देने से शीघ्र ही श्वसन क्रिया में गति आ जाती है और रोगी के प्राण बच जाते है । नाड़ी की गति मन्द होने पर तथा ह्रदय का स्पंदन स्पष्ट न होने पर मार्तण्ड व प्रताप फार्मा का " ह्रदयमृत " व " कोरोमिन " इंजेक्शन मांसपेशी में देना चाहिए ।
जवाहर मोहरा , मुक्तापिष्टी , सिद्ध मकरध्वज की 1- 1 रत्ती की मात्रा तुलसी स्वरस और मधु ( शहद ) से 3 - 3 घण्टे पंर चटावे । शीघ्र ही रुग्ण को स्वास्थ्य लाभ होने लगेगा ।
बिजली का झटका
जिन नगरों में बिजली होती हैं और जिन स्थानों के ऊपर से बिजली तार गुजरते हैं वहाँ कभी - कभी लोगों को विद्दयुत प्रवाहित तार के संपर्क में आ जाने से बिजली के झटके लग जाते है । बिजली की धारायें दो प्रकार की होती हैं । ( 1 ) ए सी और ( 2 ) डी सी ।
इसमे डी सी की अपेक्षा ए सी अधिक खतरनाक है । कारण ए सी का करेण्ट लगने से मनुष्य बिजली के तारों से अपने को अलग नही कर पाता है यदि सावधानी से न छुडाया जाय तो छुड़ाने वाले में भी करेण्ट प्रवाहित हो जाता हैं । इस प्रकार ए सी करेण्ट से शरीर जल जाता हैं । और प्राणान्त हो जाता हैं , जबकि डी सी करेण्ट से मनुष्य अपने को अलग कर सकते है । बिजली का कम वोल्टेज शरीर के तंतुओ में कंपन करा कर तथा अधिक वोल्टेज श्वास क्रिया बन्द कर मारक बन सकता है
बिजली का झटका लगने के लक्षण
बिजली का करेण्ट लगते ही मनुष्य स्तब्ध हो जाता है । यदि कोई व्यक्ति विद्धुत प्रवाहित तार से लगा हुआ पृथ्वी या फर्श पर स्तब्ध पड़ा है , तो वहाँ धुंए और आग के चिन्ह दिखाई दे सकते है । पर यदि ऐसे चिन्ह दिखाई न भी दे तो भी यह निश्चिन्त जानना चाहिए कि तार से विद्युत धारा प्रवाहित हो रहा है जिससे व्यक्ति स्तब्ध पड़ा है । स्तब्ध व्यक्ति की नाड़ी और श्वास का लोप हो जाता हैं । श्वासावरोध होकर श्वास की गति प्रारंभ में तीर्व होकर बाद में लुप्त हो जाती है जिससे रोगी की त्वचा तथा नाखून दिखाई देते है । रक्तचाप ( बी . पी . ) गिर जाता हैं पर ह्रदय की गति आगे तक चलती रहती हैं । रोगी का शरीर मरे हुए की तरह अकड़ जाता हैं पर यह नही समझना चाहिए कि मर गया है कारण बिजली के प्रभाव के कारण रोगी में ऐसी अकड़न हो जाती हैं । यदि यथाशीघ्र करेण्ट से छुड़ा दिया गया हो तो सिरदर्द , घबराहट आदि लक्षण होते है तथा बिजली लगे स्थान पर जले हुए के समान काले - काले धब्बे दिखाई देते है ।
बिजली का झटका लगने पर प्राथमिक चिकित्सा
( 1 ) बिजली का झटका खाये हुए व्यक्ति को बिजली के तार से अलग करना पहला कार्य है पर इस कार्य मे बड़ी सावधानी की जरूरत है । अन्यथा बचाने वाला भी झटके की चपेट में आ जाता हैं । अतः पहले ऐसा उपाय कर लेना चाहिए जिससे छुडाने वाले पर कोई प्रभाव बिजली का न पड़े । एतदर्थ रबर के दस्ताने और सूखे कपड़े लपेटकर बिल्कुल सूखी लकड़ी , रबर व सूखी छड़ी की सहायता से छुड़ाना चाहिए तुरन्त बिजली का मेन स्विच या उस तार के सम्पर्क में आये तार का विद्दयुत प्रवाह बन्द कर देना चाहिए ।
( 2 ) रोगी के कपड़े ढीले कर दीजिए और उसको पर्याप्त मात्रा में स्वछ हवा उपलब्ध करावे । कुत्रिम श्वास विधि तथा ह्रदय पर मालिश का प्रयोग तब तक जारी रखना चाहिए जब तक श्वसन क्रिया एवम ह्रदय गति स्वाभाविक न हो जाय ।
( 3 ) जब रोगी श्वास लेने लगे तब उसे कम्बल से लपेट कर गर्म रखना चाहिए तथा ऑक्सीजन देकर उसकी स्थिति को सुधारते रहना चाहिए । हदयामृत व कोरोमिन इंजेक्शन देना चाहिए । सिद्ध मकरध्वज व मुक्तापिष्टी मधु ( शहद ) से चटानी चाहिए ।
बिजली का झटका से बचने के उपाय
बिजली के लटके हुए तार को न छुइये , बिजली का उपकरण किसी विश्वस्त दुकान से ही चैक कराकर ही खरीदिये तथा बिजली का कोई भी ऐसा उपकरण प्रयुक्त न कीजिये जिसके तारो का आवरण टूटा हुआ हो एवं बिजली के किसी उपकरण को प्रयोग में लाने के लिये ठीक ठाक करने से पहले सारे स्विच बन्द कर दीजिए ।
बिजली गिरना
वर्षा ऋतु में आकाश से जो बिजली गिरती है उसके भी वैसे ही लक्षण होते हैं जैसे बिजली के करेण्ट लगने से होता है । बिजली प्रायः ऊँचे मकानों में पानी , बिजली और तुफानो के दिनों में गिरती है । इसके गिरने पर तत्काल चिकित्सा करने से कुछ लोग बच जाते हैं अन्यथा तत्काल मृत्यु हो जाती है ।
बिजली गिरने के लक्षण
बिजली गिरने से व्यक्ति की त्वचा जलकर झुलस जाती है व काली हो जाती है । रोगी बेहोश हो जाता है । ह्रदय की ध्वनि सुनाई नही देती या मन्द - मन्द सुनाई देती है ।
बिजली के गिरने से बचने के उपाय
वर्षा के मौसम में कमरे की खिड़किया बन्द रखे बिजली उपकरणों को यथा संभव बंद रखे । मकान के बाहर जाने का मौका मिले तो किसी पेड़ के निचे , तालाब या नदी के किनारे खड़ा होना खतरनाक है । बिजली के खम्बे के पास कदापि खड़ा नही होना चाहिए , कारण उसके पास बिजली गिरने का बड़ा खतरा रहता हैं । भींगे कपड़े से जल्दी करेण्ट मारता है अतः इसका भी ख्याल रखे ।
बिजली गिरने पर प्राथमिक चिकित्सा
बिजली मारे व्यक्ति को तत्काल किसी सुरक्षित स्थान पर ले जाकर कुत्रिम श्वास देना शुरू कर दे तथा जब तक पूर्ण होश में न आवे , कुत्रिम श्वास देते रहना चाहिए । ह्रदय उत्तेजना के लिए शरीर को गर्म करने का उपाय करें । बिजली के झटके लगने से जो चिकित्सा दी जाती हैं वही इसमें भी देनी चाहिए ।
पाला मारना
वायुमंडल के तापक्रम के जीरो डिग्री से नीचे चले जाने के कारण शीत लहर चलकर बर्फ गिरने लगती है । पर्वतीय शीत प्रदेशों में पाला गिरने के दिनों में व्यक्ति इससे आक्रान्त हो जाते है । मुख्य रूप से कान , नाक , हाथ इत्यादि अवयव विशेषतः आक्रांत होते है और शीत से ठिठुर कर सुन्न हो जाते हैं । वह स्थान बर्फ के समान अत्यंत ठंडा हो जाता है । अत्यंत कम तापक्रम पर रक्तगत हीमोग्लोबिन से ऑक्सीजन अलग नही होता हैं जिससे शरीर के सेल्स तथा संचालक केंद्रों को प्राणवायु न मिलने से व्यक्ति को पाला मारता है ।
पाला मारने पर आने वाले लक्षण
अत्यंत शीत लगने पर त्वचा के नीचे अलग - अलग रक्त जमने से नीले रंग के धब्बे दिखाई देते है । अंगुलियों , कर्ण , नासाग्र इत्यादि स्थानों की रक्त वाहिनिया अकस्मात संकुचित हो जाने से कृष्ण वर्ण की हो जाती हैं । त्वचा पर कभी - कभी सफेद रंग के फफोले पड़ जाते है उस स्थान की मांसपेशिया कड़ी हो जाती है तथा रोगी में तन्द्रा उत्तपन्न हो जाने से वह मुर्छित हो जाता हैं एवं आक्षेपों के बाद उसकी मृत्यु हो जाती हैं ।
शरीर पर शीत का प्रभाव बाल्यावस्था एवं वृद्धावस्था में अधिक होता हैं । अत्यधिक शारिरिक परिश्रम , चिरकाल रोग , दौर्बल्य , चिरकाल अस्वस्थता और चिरकालीन अनशन की अवस्थाओ में शीत का प्रभाव शरीर पर अधिक पड़ता हैं । स्थूल शरीर पर शीत का प्रभाव कम पड़ता हैं ।
पाला मारने पर प्राथमिक चिकित्सा
पाला मारने पर प्राथमिक चिकित्सा
रोगी को कम्बल से ढक देना चाहिए और चारो तरफ गर्म पानी की बैग रखकर शरीर की धीरे - धीरे ऊष्मा बढ़ानी चाहिए । शरीर पर गर्म तैल की मालिश और सेंक भी उपयोगी है । चाय , काफी , उष्ण दूध तथा ब्रांडी , मृत संजीवनी सुरा आदि उत्तेजक पदार्थ देना चाहिए । परन्तु सिगरेट , तम्बाखू आदि का सेवन नही कराना चाहिए । इससे रक्त वाहिनियां संकुचित होकर रक्त संचार में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं । जिस भाग में पाला मारा हो उस पर दबाव नही पड़ना चाहिए बल्कि फलालेन के कपड़े से ढककर रखना चाहिए ।
पाला मारने पर आयुर्वेद औषधियों का प्रयोग
सिद्ध मकरध्वज वटी , कस्तूरी भैरव रस , योगेन्द्र रस का प्रयोग करना चाहिए । तापीकर मृगनाभि ( प्रताप फार्मा ) इंजेक्शन का प्रयोग अत्यंत लाभकारी है । दशमूलारिष्ट , द्राक्षारिष्ट , मृत संजीवनी सुरा का प्रयोग करना चाहिए । ऑक्सीजन देना बडा लाभदायक है ।
पाला मारने पर बचने के उपाय
शीत लहर चलने के समय घर के अन्दर रखना चाहिए तथा कमरे में रूम हीटर या अंगीठी रखकर वातावरण उष्ण रखे एवं शरीर पर पर्याप्त ऊनी कपड़े पहने रखें । दस्ताने , मोजे , कंटोप तथा जूते पहने रखे । जहां तक हो सके ठंडे पानी से दूर रहे ।
उपवास या अनशन
शरीर को नियमित भोजन की आवश्यकता पड़ती हैं पर यदि अनशन द्वारा आवश्यक भोजन यकायक और पूर्ण रूप से बन्द कर दिया जाय तो संकटकालीन स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं । उपवास व चिरकाल अनशन में धीरे - धीरे भोजन कम कर दिया जाता हैं । इससे भी शारिरिक शक्ति का हास हो जाता हैं आकस्मिक पूर्ण अनशन से स्थिति ज्यादा खतरनाक हो जाती है ।
उपवास व अनशन के द्वारा आने वाले लक्षण
अनशन करने से प्रायः 30 से 48 घंटे में तीर्व क्षुधा लगती है और पेट मे हल्का दर्द होता है जो दबाने से दूर हो जाता है । चार दिन बाद शरीर की वसा का क्षय एवम शोषण प्रारंभ हो जाता है । आंखे चमकदार और अंदर को घुसी हुई रहती है पुतलियां प्रसारित हो जाती है और जिव्हा शुष्क फटी हुई सी रहती है । प्रश्वास दुर्गंध युक्त तथा स्वर धीमा और स्पष्ट सुनाई देता है । रोगी की त्वचा शुष्क , झुर्रीदार और दुर्गंध युक्त रहती है । तापक्रम कम , नाड़ी दुर्बल और तीर्व होती है । मूत्र में ऐसीटोन आता है जिससे मूत्र गहरे रंग का होता है । शारिरिक भार घटने लगता है तथा स्वाभाविक भार से 1/5 भाग कम हो जाय तो रोगी की मृत्यु हो जाती है ।
उपवास व अनशन की प्राथमिक चिकित्सा
अधिक समय तक अनशन रख लेने के बाद रोगी को पहले निम्बू का रस , संतरे का रस , उष्णोदक , थोड़ी - थोड़ी मात्रा में दूध देना चाहिए फिर धीरे - धीरे भोजन की मात्रा बढ़ाते रहे रोगी को पूर्ण विश्राम दे , शीत से बचाकर रखें । शिराओ द्वारा ग्लूकोज देना उत्तम हैं । अनशन किये हुए रोगी को यकायक अधिक भोजन नही देना चाहिए तथा गरिष्ट तथा मसालेदार सब्जी नही देनी चाहिए , जैसे - जैसे भोजन हजम होता रहे और रुचि बढ़ती रहे उसी अनुसार भोजन की मात्रा बढ़ाई जानी चाहिए । आजकल " मोटापा " से बचने के लिए खास तौर पर स्त्रियां " डायटिंग " का सहारा लेती हैं । पर जिनका रक्तचाप धीमा हो उनका मोटापा तो नही रुकता पर वे दुर्बल खूब हो जाती है । थोड़ा सा चलने पर भी उनका श्वास फूल जाता है । ऐसी स्थिति में अन्न का प्रयोग धीरे - धीरे कम करके एक या दो बार फलाहार या रसाहार लेना चाहिए ।
ताप द्वारा ऐंठन
जो लोग अत्यधिक ताप के स्थानों , बड़ी - बड़ी फैक्टरियो , रेल का इन्जन चलाना व कड़ी धूप में खेती का कार्य आदि ऐसे कार्यो में लगे रहते हो जिससे उनको अधिक पसीना आता रहता हो और अधिक रूप में निकले हुए पसीने की पूर्ति के लिए अत्यधिक जल पीते हो उनको खासकर गर्मी के दिनों में अधिक काम करने के फलस्वरूप थकावट उत्तपन्न हो जाती हैं तथा पैर की पिंडलियों तथा उदर में ऐंठन होती हैं तथा रोगी थकावट व चक्कर महसूस करता है व कभी - कभी मूर्छित भी हो जाता हैं ।
ताप द्वारा ऐंठन का प्राथमिक उपचार
प्रारंभिक अवस्था में नमक से युक्त जलीय पदार्थ निम्बू की शिकंजी व शीतल पेय ही लेना चाहिए । परन्तु गम्भीर अवस्था मे शिरा द्वारा नार्मल सलाइन चढ़ानी चाहिए । आयुर्वेद के लवण भास्कर चूर्ण , मुस्तादि चूर्ण , यवक्षारादि चूर्ण इस तरह की जालियांश पूर्ति करने के लिये उत्तम उपादान है । जिन लोगो को ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक पसीना आता हैं उन्हें नमक का कुछ अधिक सेवन करना चाहिए ।
गर्मी से थकान
अत्यधिक गर्मी से युक्त वातावरण का प्रभाव मानव शरीर पर पड़ता है खासकर पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियां अधिक प्रभावित होती है । प्रारंभ में शरीर मे थकावट , बेहोशी तथा ठंडे पसीने निकलते हैं । नाड़ी तथा श्वास की गति भी मन्द हो जाती हैं । त्वचा के नीचे रक्त संचय हो जाता हैं । जिसके परिणामस्वरूप रक्त संचार में रक्त की कमी होने से मस्तिष्क तथा ह्रदय में बहुत कम रक्त पहुँचता है जिससे रोगी मुर्छित हो जाता है ।
गर्मी से थकान होने पर प्राथमिक चिकित्सा
( 1 ) रोगी के शरीर मे नमक की काफी कमी हो जाती है । जिसकी पूर्ति के लिये नमक के पानी के घोल व संतरा तथा निम्बू का रस नमक मिलाकर पिलाना चाहिए । गम्भीर अवस्था मे नॉर्मल सलाइन चढ़ानी चाहिए । यदि रोगी बेहोश रहता हो तो एनिमा द्वारा नमक का घोल शरीर मे चढ़ाते है । पीने के लिए कॉफी देनी चाहिए ।
( 2 ) यथा सम्भव ठण्डे आरामदेह स्थान पर रोगी को रखना चाहिए । शरीर के वस्त्रों को ढीला कर देना चाहिए तथा पंखे इत्यादि द्वारा शरीर पर हवा करनी चाहिए एवं हाथ , पैर , सिर पर कपड़े की भींगी हुई पट्टी रखनी चाहिए ।
( 3 ) स्प्रिट ऐमोनिया एरोमेटिक 10 - 20 बून्द पानी मे मिलाकर पिलाते रहना चाहिए तथा सुंघाते भी रहना चाहिए । अमृतधारा भी 5 - 10 बून्द पानी मे मिलाकर पिलाये तथा इसे सुंघने को भी दे । इससे मूर्छा दूर हो जाएगी ।
( 4 ) ठण्डे पानी मे ग्लूकोज डालकर पिलाना अति उत्तम है । चंदन का शर्बत रूह अफजा व शर्बते आजम से तत्काल तृषा की शान्ति होकर शरीर मे स्फूर्ति का संचार होता हैं तथा थकावट दूर होती है । शीत उपचार करना लाभदायक है ।
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