वात रोग नाशक एवं पाचन शक्ति वर्द्धक हिंग्वाष्टक चूर्ण बनाने की विधि
- सोंठ
- काली मिर्च
- पीपल
- अजवायन
- सेंधा नमक
- सफेद जीरा
- काला जीरा
उपरोक्त सातो द्रव्यों को बराबर लेकर महीन चूर्ण करे । बाद में घी में भुनी हुई हींग का चूर्ण एक द्रव्य का आठवां भाग लेकर चूर्ण में मिलाकर रख ले ।
कुछ लोग समस्त चूर्ण का आठवां भाग शुद्ध हींग मिलाते हैं , किन्तु हींग उष्ण एवं तिष्ण होने के कारण उसे इतनी अधिक मात्रा में सेवन करने में दिक्कत होती है ।
हिंग्वाष्टक चूर्ण की मात्रा और अनुपान
लगभग 3 - 3 ग्राम गरम जल के साथ ले ।
हिंग्वाष्टक चूर्ण के गुण और उपयोग
इस चूर्ण को भोजन के समय प्रथम ग्रास में घी में मिलाकर खाने के बाद यथेष्ट भोजन करने से अग्नि प्रदीप्त होती है और वात रोगों का नाश होता है । इससे वात - प्रधान मंदाग्नि अच्छी हो जाती हैं । पेट मे वायु जमा होना , खट्टी या वैसे ही डकारे ज्यादा आना , भूख न लगना , अजीर्ण आदि की यह उत्तम दवा है ।
यह चूर्ण उत्तम दीपन और पाचक है । अजीर्ण , पेट फूलना , पेट मे वायु भर जाना , पेट दर्द , दस्त होना आदि रोगों में यह चूर्ण लगभग तीन ग्राम और शंख भस्म लगभग 480 मिलीग्राम देने से बहुत लाभ करता है । मंदाग्निनाशक , शूलनाशक योगों में यह श्रेष्ठ योग है ।
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