बवासीर , भगंदर एवं कब्ज में लाभकारी त्रिफला गुग्गुल बनाने की विधि
- त्रिफला चूर्ण 120 ग्राम
- पीपल का चूर्ण 40 ग्राम
- शुद्ध गुग्गुल 200 ग्राम
- उपरोक्त तीनो को एक साथ कूटकर घी के साथ लगभग 360 - 360 मिलीग्राम की गोलियां बना ले ।
मात्रा और अनुपान
दो से चार गोली सुबह - शाम त्रिफला क्वाथ या गोमूत्र के साथ दे
त्रिफला गुग्गुल के गुण व उपयोग
त्रिफला गुग्गुल के सेवन से सब प्रकार के वातजशूल , भगंदर , सूजन , बवासीर आदि रोग बहुत शीघ्र अच्छे हो जाते हैं । भगन्दर और बवासीर में कब्ज हो जाने से अधिक कष्ट होता हैं , किन्तु त्रिफला गुग्गुल के सेवन से कब्ज नही हो पाता , बल्कि पुराना कब्ज भी दूर हो जाता हैं । अतः यह विशेष लाभदायक है ।
यह दवा थोड़ी रेचक , वायुशामक और रसायन हैं । बवासीर या भगन्दर ये दोनों रोगी को बैचेन कर देने वाले कष्टदायक रोग है । यदि बादी बवासीर हुआ हो , तो मस्से फूल जाते है , थोड़ा - सा दस्त होता भी है , तो बहुत कठिनता से । यदि खूनी बवासीर हुआ , तो इसमें से रक्त निकलना प्रारंभ हो जाता हैं । इसी तरह भगन्दर में कब्ज होने से रोग और भी बढ जाता हैं , जिससे अत्यधिक दर्द तथा पूय - स्त्राव होने लगता हैं । त्रिफला गुग्गुल का इन रोगों में उपयोग करने से बहुत शीघ्र एवं उत्तम लाभ होता हैं ।
त्रिफला गुग्गुल ( स्वनिर्मित )
हरड़ , बहेडा और आंवला - प्रत्येक का चूर्ण एक - एक भाग , शुद्ध गंधक तीन भाग , शुद्ध गूगल तीन भाग लेकर गंधक को बारीक पीसकर सब द्रव्य एक साथ मिला ले और एरण्ड तैल के साथ अच्छी तरह कुटाई करके लगभग 360 - 360 मिलीग्राम की गोलियां बनाकर सुरक्षित रख ले ।
मात्रा व अनुपान
दो से चार गोली सुबह- शाम त्रिफला क्वाथ या गर्म जल के साथ ले ।
स्वनिर्मित त्रिफला गुग्गुल के गुण व उपयोग
स्वनिर्मित त्रिफला गुग्गुल का उचित पथ्य पालनपूर्वक उपयोग करने से सभी प्रकार के वातजशुल , भगन्दर , शोथ , बवासीर ( अर्श ) और रक्त विकृति नष्ट होती हैं । यह ग्रन्थोक्त त्रिफला गुग्गुल से विशेष लाभदायक है । यह उत्तम शौच लाने वाला , पाचनशक्ति बढ़ाने वाला तथा वायु - नाशक और रक्तशोधक है । वातरक्त और कुष्ट रोग में भी लाभप्रद है ।
0 Comments