अपरस या सोरियेसिस
सोरियेसिस ( Psoriasis ) रोग प्रतिरक्षा संबंधित असंक्रामक , आनुवंशिक रोग है जो त्वचा या जोड़ो में होता है । सोरियेसिस जीवनभर होने वाला त्वचा रोग है ।
Psoriasis is an immune mediated , on contagious , genetic disease manifesting in the SKIN and or the joint . Psoriasis is a life long skin disease.
सोरा ( Psora ) खाज रोग - असाध्य रोगों की जड़
डॉ. हैनिमैन को बारह वर्ष के कठिन परिश्रम के बाद सोरा रोग का पता चला । यह सोरा सभी असाध्य रोगों का जड़ है । सोरा रोग शरीर के सभी महत्वपूर्ण अंगों पर प्रभाव डालता है । सबसे पहले इसके मानसिक लक्षणो पर एक नजर डालते हैं जो कि महत्वपूर्ण हैं -
- सोरा रोग की मानसिक व्याकुलता अक्सर पूर्णिमा के समय या औरतों में मासिक धर्म शुरू होने के पहले प्रकट होता है । रोने से रोग कभी - कभी घट जाता है । रोगी कभी - कभी स्वयं को मारना चाहता है जबकि उसे किसी प्रकार की घबराहट या विचार नही होता है उसे सिर्फ सोरा रोग के उपचार से ही बचाया जा सकता हैं ।
- रोगी डर से भरा रहता है । उसे अंधेरा से एवं अकेलापन से डर लगता हैं । रोगी को साधारण पीड़ा से असाध्य रोग होने का डर बन जाता हैं । उसे डर लगता हैं कि उसका रोग असाध्य हैं एवं इससे उसकी मौत हो जाएगी । रोगी को डर लगता हैं कि भविष्य में क्या होगा । उसे छोटी - छोटी बातों से डर लगता हैं । डर से शरीर कांपता हैं अत्यधिक कमजोरी होती हैं एवं पसीना छूटता हैं
- रोगी को किसी अजनबी से मिलने पर चक्कर व बेहोशी तक हो जाती हैं । सोरा रोगी फूल के सुगंध , पकते हुए भोजन के गंध , मौसम परिवर्तन , बुरी खबर व खुशी के प्रति काफी संवेदनशील होता है या आसानी से मानसिक रुप से बैचेन हो जाता है ।
- एक पल में रोगी आसानी से जोश से भर जाता हैं एवं दूसरे ही पल वह रोने भी लगता हैं । सोरा रोगी में काफी चमक , फुर्तीला ( active ) एवं तेज चाल वाला होता हैं । रोगी अपने दोस्तों के लिए सिर दर्द का कारण बना रहता है । वह हमेशा परेशान रहता है । दूसरों की गलतियां ढूँढने में लगा रहता हैं । हमेशा शिकायत करता है । अपने जीवन से असंतुष्ट रहता है । ह्रदय में अचानक तेज दर्द के साथ घबराहट होती है समय बहुत तेजी से या बहुत धीरे - धीरे बीतता है ।
- सोरा - स्वभाव , अनुभूति , विचार से बैचेन होता है और इसी कारण वह अपने काम मे बैचेन रहता है । वह सोचता हैं कि वह अमीर नही है वह अमीर बनने की कोशिश करने लगता हैं । जीवन मे शांति नही है । मगर यह मानसिक अशान्ति के कारण वह बहुत तेज ( inteligente ) होता हैं क्योंकि अशान्त मस्तिष्क का अर्थ है संवेदनशीलता और संवेदनशीलता यानि किसी बात को आसानी से समझने की शक्ति ।
सोरा का अन्य अंगों पर प्रभाव
- अन्य महत्वपूर्ण अंगों पर इसका प्रभाव डर एवं निराशा के साथ ह्रदयघात । कभी - कभी अत्यधिक खुशी के कारण ह्रदय में तेज दर्द एवं धड़कन ।
- फेफड़ो में अल्प ऑक्सीयता ( हाइपोक्सिया hypoxia ) , रक्त में पर्याप्त ऑक्सीजन की कमी ( anoxia ) , ब्रोंकाइटिस । ठंड से , जाड़े में वृद्धि एवं प्राकृतिक स्त्राव व गर्मी से हास होना ।
- त्वचा - एक्जिमा , पपड़ीदार , उभरा मुंहासा , गंदी व भद्दी त्वचा , जाड़ा व शाम के समय बढ़ता है । त्वचा खुजलाने से लाल , खुरदरा एवं उभार जो सूखा होता है ।
- आमाशय व आंत सम्बन्धी - ग्रहणी शोथ , पित्ताशय शोथ , उबकाई , ह्रदय के पास जलन , पेट का फूलना , जठर शोथ , दोपहर 10 से 11 बजे के बीच अस्वभाविक भूख , थोड़ा सा खाते ही पेट भरा होने की अनुभूति , गड़गड़ाहट , अफारा । गर्म भोजन , पेय एवं डकार से आराम । मीठा खाने की इच्छा , दूध अपच
- अंतः स्त्रावी संस्थान - अत्यधिक प्यास , अत्यधिक भूख , अत्यधिक पेशाब , मधुमेह रोग , किडनी संबंधित बीमारियां ।
- जनन संबंधी संस्थान - गर्भशय एवं अंडाशय के क्रियाओ की गड़बड़ी के कारण मासिक में दर्द । प्रोस्टेट ग्रंथि से पतला प्रमेहजस्त्रव , वीर्यपात , बांझपन , सेक्स इच्छा की कमी के कारण ।
सोरियेसिस के कारण
Causes of Psoriasis in hindi
सोरियेसिस के स्पष्ट कारण का पता अभी तक मालूम नही है । लेकिन इसका कारण आनुवंशिक माना जाता है । अधिकांश अनुसंधानकर्ताओं का मत है कि रोग प्रतिरक्षा प्रणाली ( Immune System ) गलती से शुरू होकर त्वचा कोशिकाओं के विकास को काफी तेज कर देता हैं । सामान्य कोशिका परिपक्व होकर 28 से 30 दिन बाद गिर जाती हैं लेकिन सोरिक कोशिका मात्र 3 से 4 दिन में ही परिपक्व होकर गिरने के बदले ( falling off ) जमा होकर विक्षती ( lesions ) बन जाता हैं ।
रिस्क फैक्टर्स ऑफ ट्रिगर्स सोरायसिस
Risk factors to trigger Psoriasis
Risk factors to trigger Psoriasis
- मानसिक तनाव
- त्वचा आघात
- कुछ खास दवाओं से संक्रमण एवं रिएक्शन जैसे मलेरिया रोधी दवा आदि
- क्षतिग्रस्त त्वचा
- टीकाकरण
- सूर्य से आघात
- खरोंच
- पर्यावरण , खानपान एवं एलर्जी
सोरायसिस के प्रकार
1 - Plague Psoriasis
2 - Guttate Psoriasis
3 - Inverse Psoriasis
4 - Pustular Psoriasis
5 - Erythroderma Psoriasis
1 - PLAGUE OR PLAQUE PSORIASIS
Psoriasis Vulgaris |
- चकत्ता सबसे ज्यादा पाया जाता हैं । सबसे ज्यादा प्रचलित ।
- वैज्ञानिक नाम - Psoriasis Vulgaris
- लक्षण - उभरा हुआ , सूजा , लाल घाव , जो सफेद पपड़ी ( Silvery Scale ) से ढका होता है । खासकर केहुनी , घुटना , सिर एवं पीठ के नीचे के भाग पर कही भी हो सकता है । यह सबसे पहले छोटा सा लाल दाग के रूप में प्रकट होता है जो बाद में बड़ा सा विक्षती का आकार लेता है । विक्षती कि ऊपर सफेद पपड़ी जमता है । यह पपड़ी ( Scales ) मृत कोशिकाओं का बना होता है । यह अक्सर गिरता रहता है । रोगी की त्वचा बिल्कुल सूखी , दर्द , खुजली एवं फटा हुआ पाया जाता है ।
2 - GUTTATE PSORIASIS
Guttate Psoriasis |
- खुरण्ट त्वचा पर छोटा लाल दाग ।
- बचपन या युवावस्था में होता हैं ।
- त्वचा पर छोटा , लाल दाग , बून्द आकार के रूप मे पाया जाता हैं
- यह पेट एवं हाथ पैर पर पाया जाता हैं ।
- रोग अचानक प्रकट होता हैं ।
- यह श्वसन संस्थान के संक्रमण , स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण , टान्सिल का प्रदाह , तनाव , त्वचा पर आघात एवं खाद्य दवाओं ( मलेरिया रोधी एवं बीटा ब्लॉकर्स ) के कारण हो सकता हैं ।
- स्ट्रेप्टोकोकस संक्रमण सबसे ज्यादा पाया जाता हैं
3 - INVERSE PSORIASIS
Inverse Psoriasis |
- यह रोग काँख ( armpit ) , वस्तिप्रदेश ( groin ) औरतों में छाती के नीचे एवं त्वचा के मोड़ने वाले स्थान पर पाया जाता हैं ।
- रोग त्वचा के रगड़ने एवं पसीना के कारण होता हैं ।
- छोटा , लाल विक्षती के रूप मे प्रकट होकर मुलायम एवं चमकीला होता हैं ।
- मोटे व्यक्ति में खासकर पाया जाता हैं क्योंकि उनके शरीर में काफी मोड़दार त्वचा ( skin folds ) होते है ।
4 - ERYTHRODERMIC PSORIASIS
Erythtrodermic Psoriasis |
- शरीर के बड़े भाग पर गाढ़ा लाली ।
- यह सूजनयुक्त अपरस रोग है ।
- शरीर के हर भाग को प्रभावित करता है ।
- त्वचा पर लाल - लाल दाने एवं पपड़ी होने के साथ - साथ तीर्व खुजली एवं दर्द होता हैं ।
- Ven Zumbusch के साथ - साथ भी यह रोग होता हैं ।
- रोग शुरू में अचानक भी प्रकट हो सकता हैं ।
- रोग का कारण अस्पष्ट है ।
- रोगवृद्धि का कारण धूप से झुलसना , रोग उपचार बीच मे ही बंद करने से , एलर्जी पैदा करने वाले कारण , कार्टिसोन आदि हैं ।
5 - PUSTULAR PSORIASIS
Pustular Psoriasis |
- सफेद छाला , लाल त्वचा से घिरा हुआ ।
- सफेद फुंसी जैसा जो चारो ओर से लाल त्वचा से घिरा होता हैं ।
- पस कोशिका संक्रमण न होने वाले सफेद रक्त कोशिकाओं से बना होता हैं ।
- खासकर हाथ एवं पैर में होता हैं ।
- लक्षण चक्र के रूप में होता हैं - त्वचा का लाल होना , फुंसी का बनना एवं अंत मे पपड़ी बनना ।
- यह रोग अचानक भी हो सकता हैं या Plague Psoriasis ही Pustular Psoriasis में बदल सकता हैं ।
- टोपीकल ऐजेन्ट , अल्ट्रावायलेट किरण , गर्भधारण , स्टीरॉयड , तनाव आदि से रोग बढ़ता है ।
सोरा रोग का कारण आर्थ्राइटिस भी होता हैं । इसे सोरियेटिक आर्थ्राइटिस ( Psoriatic Arthritis ) भी कहते है । सबसे पहले इसकी जानकारी एक फ्रांसीसी चिकित्सक बैरन जीन लुइस एल्बर्ट ने दी थी । रोगी को जोड़ो में दर्द , कड़ापन एवं सूजन होती हैं । चलना फिरना कठिन हो जाता हैं ।
सोरियेसिस व अपरस -
रोग निदान विज्ञान व खानपान
अपरस रोग का मूल कारक हैं सोरा दोष । यह एक असाध्य रोग है जो सभी विषदोष ( Miasmatic ) रोगों में सबसे पुराना व सभी असाध्य रोगों की जननी हैं । अपरस सोरा व साइकोसिस विषदोष से संबंधित हैं ।
सोरा विषदोष संबंधित अपरस
त्वचा सूखी गंदी या अस्वस्थ दिखती है । हमेशा खुजली होती हैं । सूखी त्वचा पर पपड़ी बनती है एवं झड़ती है । खुजली एवं दाना की तरह उभार होता है जो खुली हवा एवं शाम के समय बढ़ता है एवं खरोंच से घटता है । खरोंच के बाद जलन व दर्द होता है । सभी सोरा दोष ठंडक से बढ़ता है एवम गर्मी से बढ़ता है । मानसिक - रूप से रोगी काफी सचेत रहता हैं । अपने कार्यो में तेज व सजग होता हैं । काफी तेजी से काम करता हैं और बहुत जल्द ही शारिरिक एवं मानसिक रूप से थक जाता हैं । सोरिक रोगी का लक्षण हैं कि थकान के कारण वह लेटना पसंद करता हैं , मानसिक लक्षण में बैचेनी व घबराहट होती हैं ।
साइकोटिक लक्षण
साइकोसिस विषदोष जन्य अपरस रोगी शक से भरा होता हैं । रोगी के त्वचा पर गांठ या मांस का जमाव होता हैं । नाखून में धार , मोटा व भारी होता हैं । मस्सा व तिल इसी वंशगत रोग के लक्षण हैं ।
सिफलिस दोष के लक्षण
मानसिक रूप से सुस्त , मन्द बुद्धि आदि । एक निश्चित विचार जो किसी भी सूरत में बदल नही सकता । भुलक्कड़ , भूल जाता हैं कि अभी वह क्या बोलने वाला है । सारी परेशानियां रात में बढ़ती है । सर्दी , प्रदरस्त्राव से घट जाता हैं मगर प्राकृतिक स्त्राव जैसे पसीना , पेशाब से कभी नही घटता है । नाखून पेपर की तरह चम्मच आकार का आसानी से मुड़े व टूटे ।
ऊत्तक विकृति विज्ञान
( HISTOPATHOLOGY )
त्वचा के पांच परतों में से सबसे ऊपरी एपीडर्मिक परत ( नीचे के सतह के ऊतकों में ) एपिडर्मिस के नीचे के सतह के ऊतकों में समान कोशिकाओं का बहुत तेजी से निर्माण ही मुख्य कारण है । एपिडर्मिस के सतह के परतों में रोग निर्माण प्रक्रिया शुरू होती हैं जहाँ किरेटिनोसाइट्स ( Keratenocytes ) का निर्माण ( Manufacturer ) होता हैं ।
किरेटिनोसाइट्स त्वचा का अपरिपक्व ( Immmature ) कोशिका हैं जो किरेटिन पैदा करता हैं । किरेटिन एक कड़ा प्रोटीन है जो त्वचा , बाल व नाखून को बनाने में मदद करता हैं । कोशिकाओं के विकास के सामान्य प्रक्रिया के अनुसार , किरेटिनोसाइट्स परिपक्व होता हैं और नीचे के सतह को छोड़कर एपिडर्मिस के सबसे ऊपरी सतह पर आकर झड़ जाता हैं । इस प्रक्रिया में एक महीने का समय लगता हैं ।
अपरस रोग में , किरेटिनोसाइट्स बहुत तेजी से अपनी तरह नये कोशिकाओं का निर्माण करता हैं एवं मात्र चार दिनों में नीचे की सतह से चलकर ऊपरी सतह पर आता हैं । त्वचा इतनी ही तेजी से ऐसी कोशिकाओं को नही झड़ने देता हैं । अतः ये सब मोटे , सूखे धब्बे की तरह जमा होते है ।
चाँदी जैसा , हल्का सुनहरा मृत त्वचा , धब्बे का ऊपरी परत बन जाता हैं । त्वचा के नीचे का सतह डर्मिस सूजा हुआ व लाल होता हैं । डर्मिस में स्नायु , रक्त एवं लसिका वाहिकाएं होती हैं जो किरेटिनाइट्स को रक्त एवं रोगक्षम कारको को उचित स्थान पर ले जाता हैं जो कारक सूजन एवं लालीपन का कारक हैं ।
सामान्य रोग प्रतिरक्षण प्रणाली
- शरीर की रक्षा प्रणाली संक्रमण के विरुद्ध लड़ती है एवं घाव व क्षतिग्रस्त भाग को ठीक करती हैं । सूजन इसी प्रक्रिया के दौरान आती है ।
- घाव या बाहरी आक्रमण होने पर श्वेत रक्त कोशिका बैक्टेरिया , वाइरस आदि के बाहरी आक्रमण के विरुद्ध लड़ती हैं ।
- आक्रमण स्थल पर रक्त कोशिकाओं का जमाव होता हैं । जो घाव या आक्रामक कारको से लड़ने के लिए कुछ पदार्थ पैदा करते है ।
- आस पास का स्थान सूज जाता हैं एवं कुछ स्वस्थ ऊतकों को भी क्षति पहुँचता हैं ।
- इस कार्य को अन्य पदार्थ भी नियंत्रित करते है ।
संक्रमणरोधी पदार्थ
- संक्रमणरोधी मूल पदार्थ हैं - श्वेत रक्त कोशिकाएं ( WBC ) खासकर लिम्फोसाइट्स व न्यूट्रोफिल्स । लिम्फोसाइट्स दो तरह के होते है T - कोशिका व B - कोशिका .
- B - कोशिका एंटीबॉडीज़ बनाता हैं जो संक्रमक अवयव ( एंटीजन ) पर प्रहार करता हैं । एंटीबॉडीज़ B - कोशिका के साथ या स्वतंत्र रूप से मौजूद रहता हैं ।
- T - कोशिका के सतह पर एक खास प्रकार का ग्राही ( Receptors ) होता हैं जो खास प्रकार के एन्टीजन की पहचान करता हैं ।
- T - कोशिका भी Killer T - cells या Helper T - cells ( TH cells ) में विभाजित है ।
- Killer T -cells ऐंटी ( बैक्टीरिया या अन्य ) पर सीधे आक्रमण करता है ।
- Helper T - cells भी एन्टीजन की पहचान करता है लेकिन इसका दो मुख्य कार्य है । यह B - cells या अन्य श्वेत रक्त कोशिकाओं को एन्टीजन से लड़ने के लिए उत्तेजित करता है ।
- यह साइटोकाइन्स ( Cytokines ) पैदा करता है जो रक्षाप्रणाली में सूजन के लिए महत्वपूर्ण कार्य करता है ।
Helper T - cells , Cytokinesis Inflammatory Response
अपरस में T - Cells की महत्वपूर्ण भूमिका है ।
TH कोशिका एंटीबॉडीज़ पैदा करने के लिए B - cells को उत्तेजित करता है । अपरस रोग में , T - कोशिका , B - कोशिका को अपना ही एंटीबॉडीज़ ( Autoantibodies ) , ( Self Antibodies ) बनाने को निर्देश देता है जो अपने ही शरीर के कोशिकाओं के विरुद्ध कार्य करता है । सोरिक आर्थराइटिस में जोड़ो के कोशिकाएं भी प्रभावित होती हैं ।
सहायक T - कोशिका एवं साइटोकाइन्स
TH कोशिका रोग निरोधक पदार्थ साइटोकाइन्स ( Cytokines ) का निर्माण करता हैं जो रोगोपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । मगर साइटोकाइन्स का अत्यधिक निर्माण होने पर त्वचा को सूजन व चोट जैसा गहरा नुकसान होता है । अपरस रोग में CRo-alpha साइटोकाइन्स , Interlukim 8 ( IL - 8 ) , 11 ( IL-11 ) , 12 ( IL-12 ) आदि महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
न्यूट्रोफिल्स ( Neutrophils ) 30 अलग - अलग केमिकल्स को उत्तेजित करता है ।
आनुवंशिक कारक
( Genetic factors )
- जीन्स का एक समूह अपरस रोग के प्रति संवेदनशील होने के लिए परिस्थिति तैयार करता हैं
- Human Leucocyte Antigen ( HLA )
- यह एंटीजन्स के हानिकारक भाग को लेकर कोशिका के सतह पर पहुँचा देता हैं । इससे शरीर मे रोग संक्रमण रोधी पदार्थ इसकी पहचान कर हमेशा के लिए खत्म कर देता हैं । HLA के कार्य मे गड़बड़ी होने से अपरस सहित अन्य रोगरोधी बीमारिया होती हैं । उदाहरण के तौर पर अपरस रोगी HLA कारक HLA - CW6 वाले औसत उम्र से कम उम्र में ही रोगी हो जाते है ।
- अनुसंधानकर्ताओं ने चार महत्वपूर्ण जीन्स की खोज की है जो अपरस रोग का कारक हैं वह है - PSORs 1 - 4
- पर्यावरण , तनाव , आघात , संक्रमण आदि परोक्ष रूप से अपरस रोग होने में सहायक व रोग को और गंभीर बनाने में मददगार साबित होता है ।
- एड्स , पेप्टिक अल्सर मुख्य कारक H - Pylori आदि के कारण अपरस रोग होता हैं ।
- शोधकर्ताओं के अनुसार वसा का चयापचय प्रक्रिया पर अपरस रोगी में प्रभाव पड़ता हैं अतः अपरस रोगी को वनस्पति या जीवो के वसा पदार्थ से परहेज करना चाहिए ।
- खुजली व त्वचा के झड़ने से बचने के लिए सोडियम ( नमक ) का प्रयोग कम करना चाहिए ।
- शराब के प्रयोग को सीमित करे ।
अपरस रोग में होम्योपैथिक औषधियों का प्रयोग
- मेजेरियम
- पेट्रोलियम
- मॉर्गन पी
- गन पावडर
- मूल अर्क - हाइड्रोकोटाइल , सिम्फाइटम , इचीनेशिया , कैस्टर ऑयल का प्रयोग लाभदायक साबित हुआ है ।
अपरस में पथ्य व अपथ्य
( आहार तालिका )
पथ्य
( निम्न पदार्थो का आहार में सेवन करे )
- छाछ
- हरी पत्तेदार सब्जियां
- मूंग दाल
- पुराना चावल व गेँहू
- मसूर दाल
- सहजन
- टिण्डा
- परवल
- लौकी
- गुनगुना पानी
- काला नमक
- ग्रीन टी
- दलिया
- सभी अंकुरित वस्तुएँ
- खट्टे फलों को छोड़कर सभी फल
- ब्रोकली
- गोबी
- करेला
- बादाम गीरी
अपथ्य
( निम्न पदार्थों का सेवन न करे )
- दही
- उडद डाल
- खटाई
- मांस
- अंडा
- मटर
- सोयाबीन
- चना
- टमाटर
- बैंगन
- दूध
- मैदा
- आलू
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