योग और आपका भोजन ( Yoga & Your Food )
योगशास्त्र पूरी तरह से विज्ञान पर ही टिका हुआ है। इसलिए सबका जानना जरूरी है कि इस मानव शरीर की रचना ईश्वर ने इस तरीके से की है कि अगर वह शरीर के यंत्रों का पूरा ज्ञान प्राप्त कर लें और यत्नपूर्वक योग के पहले और दूसरे चरणों के अनुसार जीवनयापन शुरू कर लें तो इस जीवन से मुक्त होना पूरी तरह से संभव है।मगर इस काम में सबसे बड़ी रुकावट होती है हमारी जीभ।
जीभ को नियंत्रण में रखने के अलावा कोई चारा नहीं है- इसलिए कहा गया है-
रसना के जीते बिना, कोई न जितेन्द्रिय होय।
रसनेनिद्रय जीत के पुरुष, सवेन्द्रिय जीत सोय।
अर्थात जिस व्यक्ति का भोजन अलग-अलग तरह का होता है उसका बर्ताव भी अलग-अलग तरह का हो जाता है।हमारे यहां अक्सर एक बात कही जाती है, `जैसा अन्न वैसा तन´ मतलब कि जो भोजन हम करते है उसका असर हमारे शरीर पर ही नही बल्कि हमारे दिमाग पर भी पड़ता है। हमारी भोजन करने की जो आदतें होगी उसी तरह हमारी सोचने और समझने की आदत भी पड़ जाती है। इसी कारण से योगकत्ताओं ने कुछ खास तरह के नियमों पर जोर दिया है।
योग के अनुसार भोजन को 3 वर्गों में बांटा गया है-
योग और आपका भोजन |
रसना के जीते बिना, कोई न जितेन्द्रिय होय।रसनेनिद्रय जीत के पुरुष, सवेन्द्रिय जीत सोय।
1-राजसी
2-तामसी
3-सात्त्विक
आजकल के समय के आधुनिक भोजन को पौष्टिकता के आधार पर 5 से 7 वर्गों मे बांटा गया है। लेकिन यौगिक वर्गीकरण भोजन पकाने या बनाने की विद्या पर आधारित है।
राजसी भोजन
राजसी मतलब तला हुआ और रसदार भोजन होता है जिसे मिठाई और अलग-अलग मेवों के साथ परोसा जाता है। राजसी शब्द की शुरूआत राजा-महाराजाओं के खाने-पीने के तरीकों से हुई थी। राजसी भोजन काफी भारी और गाढ़ा होता है। अगर लगातार काफी दिनो तक ऐसे भोजन को किया जाए तो व्यक्ति की भोजन पचाने की क्रिया खराब हो जाती है।
तामसीक भोजन
तामसी भोजन तला हुआ और बहुत तेज मिर्च-मसालों से बना हुआ होता है। ऐसा भोजन करने वाला व्यक्ति हमेशा गुस्से में ही रहता है। ये माना जाता है कि योग चिकित्सा का लाभ उठाना हो तो राजसी और तामसी भोजन बहुत ही कम मात्रा में करना चाहिए।
सात्विक भोजन
सात्त्विक भोजन बिल्कुल सादा भोजन होता है, जिसे बहुत ही कम मसालों और तेल में बनाया जाता है। ऐसा भोजन पूरी तरह से शाकाहारी होता है। इसमे कच्ची सब्जियों और फलों का इस्तेमाल किया जाता है।
योगासन का पहला सिद्धांत है सात्त्विक भोजन करना।योगासन का दूसरा सिद्धांत है संतुलित भोजन करना। इस सिद्धांत के मुताबिक व्यक्ति को जितनी भूख हो उससे आधा ही भोजन करना चाहिए और आधा पानी तथा हवा से पेट भरना चाहिए। इससे भोजन पचाने की क्रिया मजबूत हो जाती हैं। ज्यादा भोजन करने के कारण आमाशय की मांसपेशियां ढीली पड़ जाती है। इसलिए भोजन कम करों तो वो ही अच्छा है।
संतुलित भोजन करने से शरीर में मोटापा और चर्बी नही बढ़ते। दिमाग हर समय तेज चलता है और शरीर में मेहनत करने की ताकत भी बढ़ जाती है।
योगासन का तीसरा सिद्धांत भोजन करने की कला पर आधारित है। अगर भोजन को आराम से चबाचबाकर खाया जाए तो कम भोजन भी पेट भरने जैसी संतुष्टि देता है। इस तरह से किया गया भोजन जल्दी पचता है। इसके साथ भोजन पचाने की जगह पर भी ज्यादा जोर नही पड़ता है। भोजन करते समय कभी भी पानी नही पीना चाहिए। भोजन करने से आधे घंटे पहले या भोजन करने के 1 घंटे बाद पानी पीना लाभकारी होता है।
योगासन का चौथा सिद्धांत है कि चाहे जितनी भी भूख लगे पूरे दिन में ज्यादा से ज्यादा 3 बार ही भोजन करना चाहिए जैसे सुबह उठने के बाद नाश्ते में फल और दूध, फिर दोपहर में भोजन और आखिरी में रात में भोजन। जो लोग शाम के समय योगासन करते है उन्हें दोपहर का भोजन थोड़ा जल्दी कर लेना चाहिए ताकि शाम तक भोजन अच्छी तरह से पच जाए। रात का भोजन सोने से कम से कम 2 घंटे पहले कर लेना चाहिए। इससे नींद अच्छीआती है।इन सारे सिद्धांतों का नियमित रूप से पालन करने वाला व्यक्ति हमेशा मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहता है।
अभ्यास के समय शरीर हल्का, शांत, स्वच्छ एवं सामान्य होना चाहिए। अभ्यास के लिए हल्के कपड़े पहनने चाहिए और हल्का भोजन करना चाहिए। शौच से आने के बाद मंजन करने के बाद हाथ-मुंह धोने का योगासन का अभ्यास करें।
योगासन के अभ्यास के क्रम में नशीले पदार्थों का सेवन न करें। योगाभ्यास के लिए स्वस्थ शरीर का होना आवश्यक है।थकावट और चिंता से शरीर को मुक्त रखें। योग का अभ्यास हमेशा खाली पेट ही करें। अभ्यास के तुरंत बाद नहाना नहीं चाहिए और अभ्यास के दो घंटे बाद भोजन करें।
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